मैसूर का दशहरा

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मैसूर का दशहरा सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। मैसूर में छ: सौ सालों से अधिक पुरानी परंपरा वाला यह पर्व ऐतिहासिक दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण है ही, साथ ही यह कला, संस्कृति और आनंद का भी अद्भुत सामंजस्य है। महालया से दशहरे तक इस नगर की फूलों, दीपों एवं विद्युत बल्बों से सुसज्जित शोभा देखने लायक होती है। मैसूर में 'दशहरा उत्सव' का प्रारंभ चामुंडी पहाड़ियों पर विराजने वाली देवी चामुंडेश्वरी के मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और दीप प्रज्ज्वलन के साथ होता है। इस उत्सव में मैसूर महल को 97 हज़ार विद्युत बल्बों तथा 1.63 लाख विद्युत बल्बों से चामुंडी पहाड़ियों को सजाया जाता है। पूरा शहर भी रोशनी से जगमगा उठता है। जगनमोहन पैलेस, जयलक्ष्मी विलास एवं ललिता महल का अद्भुत सौंदर्य देखते ही बनता है।

सत्कर्मों की जीत का पर्व

पारंपरिक उत्साह एवं धूमधाम के साथ दस दिनों तक मनाया जाने वाला मैसूर का 'दशहरा उत्सव' देवी दुर्गा (चामुंडेश्वरी) द्वारा महिषासुर के वध का प्रतीक है। अर्थात यह बुराई पर अच्छाई, तमोगुण पर सत्गुण, दुराचार पर सदाचार या दुष्कर्मों पर सत्कर्मों की जीत का पर्व है। इस उत्सव के द्वारा अभी को माँ की भक्ति में सराबोर किया जाता है। शहर की अद्भुत सजावट एवं माहौल को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो स्वर्ग से सभी देवी-देवता मैसूर की ओर प्रस्थान कर आये हैं।[1]

इतिहास

मैसूर के दशहरे का इतिहास मैसूर नगर के इतिहास से जुड़ा है, जो मध्य काल के दक्षिण भारत के अद्वितीय विजयनगर साम्राज्य के समय से शुरू होता है। हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों द्वारा चौदहवीं शताब्दी में स्थापित इस साम्राज्य में नवरात्रि उत्सव मनाया जाता था। लगभग छह शताब्दी पुराने इस पर्व को 'वाडेयार राजवंश' के लोकप्रिय शासक कृष्णराज वाडेयार ने दशहरे का नाम दिया। समय के साथ इस उत्सव की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि वर्ष 2008 में कर्नाटक राज्य की सरकार ने इसे 'राज्योत्सव' (नाद हब्बा) का स्तर दे दिया।

यात्री विवरण

कई मध्यकालीन पर्यटकों तथा लेखकों ने अपने यात्रा वृत्तान्तों में विजयनगर की राजधानी 'हम्पी' में भी दशहरा मनाए जाने का उल्लेख किया है। इनमें डोमिंगोज पेज, फर्नाओ, नूनिज और रॉबर्ट सीवेल जैसे पर्यटक भी शामिल हैं। इन लेखकों ने हम्पी में मनाए जाने वाले दशहरा उत्सव के विस्तृत वर्णन किये है। विजयनगर शासकों की यही परंपरा वर्ष 1399 में मैसूर पहुँची, जब [गुजरात]] के द्वारका से 'पुरगेरे' (मैसूर का प्राचीन नाम) पहुँचे दो भाइयों यदुराय और कृष्णराय ने वाडेयार राजघराने की नींव डाली। यदुराय इस राजघराने के पहले शासक बने। उनके पुत्र चामराज वाडेयार प्रथम ने पुरगेरे का नाम बदलकर 'मैसूर' कर दिया और विजयनगर साम्राज्य की अधीनता स्वीकार कर ली। विजयनगर के प्रतापी शासकों के राज में वर्ष 1336 से 1565 तक मैसूर शहर सांस्कृतिक और सामाजिक ऊँचाई की शिखर की ओर बढ़ता गया। साथ ही दशहरे की परंपरा दिन प्रतिदिन सुदृढ और बेहतर होती गई।[1]

दशहरा महोत्सव की परंपरा

यह पूरे दक्षिण भारत के इतिहास का स्वर्ण युग था। इसी दौर में पुरंदरदास, कनकदास, सर्वज्ञ तथा भक्ति आंदोलन से जुड़ी अन्य विभूतियाँ सक्रिय रहीं। वर्ष 1565 में तलीकोट के युद्ध में विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद वाडेयार राजघराने के आठवें शासक राजा वाडेयार ने मैसूर का प्रशासनिक ढाँचा बदला। अब यह एक स्वतंत्र राज्य बन गया। श्रीरंगपट्टनम के प्रशासक श्रीरंगराय की महत्तवाकांक्षा कुछ समय के लिए राजा वाडेयार के लिए चुनौती बनी रही, लेकिन वर्ष 1610 में उन्होंने श्रीरंगपटना पर भी अपना नियंत्रण बना लिया। यहीं से उन्हें सोने का वह सिंहासन प्राप्त हुआ, जो कथित तौर पर विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक हरिहर को उनके गुरु विद्यारण्य द्वारा दिया गया था। राजा वाडेयार 23 मार्च, 1610 को इस सिंहासन पर आसीन हुए और उन्होंने 'कर्नाटक रत्नसिंहासनाधीश्वर' की उपाधि ग्रहण की। उन्होंने श्रीरंगपट्टनम को अपनी राजधानी बनाया और विजयनगर की पारंपरिक दशहरा महोत्सव की परंपरा को भी जीवित रखा। राजा वाडेयार की इच्छा थी कि इस उत्सव को भावी पीढ़ियाँ उसी प्रकार से मनाएँ, जिस प्रकार विजयनगर के शासक मनाया करते थे। इसके लिए उन्होंने निर्देशिका भी तैयार की थी, जिसमें स्पष्ट लिखा था कि किसी भी कारण से अर्थात राजघराने में किसी की मृत्यु भी हो जाए तो भी दशहरा मनाने की परंपरा कायम रहनी चाहिए। राजा अपने द्वारा बनाए गए निर्देश पर स्वयं भी कायम रहे। कहा जाता है कि 7 सितम्बर, 1610 में दशहरे से ठीक एक दिन पहले जब राजा के पुत्र नंजाराजा की मृत्यु हो गई, तब भी राजा वाडेयार ने बिना किसी अवरोध के 'दशहरा उत्सव' की परंपरा को कायम रखते हुए इसका उद्धाटन किया। राजा वाडेयार द्वारा बनाई गई परंपरा को उनके बाद वाडेयार राजघराने के वंशजों ने भी जीवित रखने की कोशिश की।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 मैसूर का दशहरा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 31 दिसम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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