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'''विक्रमोर्वशीयम्''' [[कालिदास]] द्वारा रचित पाँच अंकों का एक त्रोटक<ref>उपरुपक</ref> है। इसमें [[पुरुरवा|राजा पुरुरवा]] तथा [[उर्वशी|अप्सरा उर्वशी]] की प्रणय [[कथा]] वर्णित है।
  
* विक्रमोर्वशीयम् में [[शृंगार रस]] की प्रधानता है, पात्रों की संख्या कम है।  
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* विक्रमोर्वशीयम् में [[श्रृंगार रस]] की प्रधानता है, पात्रों की संख्या कम है।  
 
* इसकी [[कथा]] [[ऋग्वेद]]<ref>ऋग्वेद, 10/15</ref> तथा [[शतपथ ब्राह्मण]]<ref>शतपथ ब्राह्मण, 11/5/1</ref> से ली गयी है।  
 
* इसकी [[कथा]] [[ऋग्वेद]]<ref>ऋग्वेद, 10/15</ref> तथा [[शतपथ ब्राह्मण]]<ref>शतपथ ब्राह्मण, 11/5/1</ref> से ली गयी है।  
 
* महाकवि कालिदास ने विक्रमोर्वशीयम् नाटक को मानवीय प्रेम की अत्यन्त मधुर एवं सुकुमार कहानी में परिणत कर दिया है।  
 
* महाकवि कालिदास ने विक्रमोर्वशीयम् नाटक को मानवीय प्रेम की अत्यन्त मधुर एवं सुकुमार कहानी में परिणत कर दिया है।  

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विक्रमोर्वशीयम्
'विक्रमोर्वशीयम्' का आवरण पृष्ठ
कवि महाकवि कालिदास
मूल शीर्षक विक्रमोर्वशीयम्
मुख्य पात्र पुरुरवा और उर्वशी
प्रकाशक राजपाल प्रकाशन
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 2008
ISBN 978-81-7028-776
देश भारत
विधा नाटक
मुखपृष्ठ रचना अजिल्द
विशेष विक्रमोर्वशीयम् के प्राकृतिक दृश्य बड़े रमणीय हैं।

विक्रमोर्वशीयम् कालिदास द्वारा रचित पाँच अंकों का एक त्रोटक[1] है। इसमें राजा पुरुरवा तथा अप्सरा उर्वशी की प्रणय कथा वर्णित है।

  • विक्रमोर्वशीयम् में श्रृंगार रस की प्रधानता है, पात्रों की संख्या कम है।
  • इसकी कथा ऋग्वेद[2] तथा शतपथ ब्राह्मण[3] से ली गयी है।
  • महाकवि कालिदास ने विक्रमोर्वशीयम् नाटक को मानवीय प्रेम की अत्यन्त मधुर एवं सुकुमार कहानी में परिणत कर दिया है।
  • विक्रमोर्वशीयम् के प्राकृतिक दृश्य बड़े रमणीय हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उपरुपक
  2. ऋग्वेद, 10/15
  3. शतपथ ब्राह्मण, 11/5/1

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