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'''विश्व कछुआ दिवस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''World Turtule Day'') प्रत्येक वर्ष [[23 मई]] को मनाया जाता है। विश्वभर में कछुओं की घटती संख्या को देखते हुए लोगों में इनके संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए प्रतिवर्ष विश्व कछुआ दिवस मनाया जाने लगा है। 23 मई को पूरा विश्व मिलकर इस दिन को मनाता है। [[कछुआ]] एक ऐसा जानवर है, जिसे कई सारे लोग शुभ मानते हैं और उनकी कई प्रजातियों को घर पर भी रखा जा सकता है। बाजारों में महंगे- महंगे भावों में भी कछुओं की बिक्री होती है।
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==इतिहास==
 
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सन् [[2000]] से विश्व कछुआ दिवस का आयोजन होने लगा। कछुओं की विभिन्न प्रजातियों को बचाने के लिए [[अमेरिका]] के एक गैर लाभकारी संगठन अमेरिकन टॉर्टवायज रेस्क्यु की स्थापना की गई। इस संगठन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य विश्वभर के कछुओं का संरक्षण है। विभिन्न देश के लोग सन् 2000 के बाद से ही कछुओं की रक्षा के प्रति जागरूक हो गए।<ref name="pp">{{cite web |url=https://www.amarujala.com/photo-gallery/lifestyle/world-turtule-day-2021-history-importance-and-meaning-of-world-turtle-day-in-hindi?pageId=5 |title=जानिए विश्व कछुआ दिवस का इतिहास|accessmonthday=17 मई|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=amarujala.com |language=हिंदी}}</ref>
 
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पिछले कुछ सालों में कछुए दिखना ही बंद हो गए थे। कछुओं की समुद्री प्रजाति [[लॉकडाउन]] में आराम से [[समुद्र]] किनारे रह पा रही है। गर्मियों में समुद्री तटों पर इतनी भीड़भाड़ होती थी कि कछुए डर के कारण ही बाहर नहीं आ पाते थे, लेकिन लॉकडाउन कोई कहीं जा ही नहीं पा रहा था तो ऐसे में कछुए भी स्वतंत्र जीवन जी पा रहे थे। कछुओंं के धंधे में भी कमी हुई है।
 
पिछले कुछ सालों में कछुए दिखना ही बंद हो गए थे। कछुओं की समुद्री प्रजाति [[लॉकडाउन]] में आराम से [[समुद्र]] किनारे रह पा रही है। गर्मियों में समुद्री तटों पर इतनी भीड़भाड़ होती थी कि कछुए डर के कारण ही बाहर नहीं आ पाते थे, लेकिन लॉकडाउन कोई कहीं जा ही नहीं पा रहा था तो ऐसे में कछुए भी स्वतंत्र जीवन जी पा रहे थे। कछुओंं के धंधे में भी कमी हुई है।
 
==200 मिलियन पुरानी प्रजाति==
 
==200 मिलियन पुरानी प्रजाति==
कहा जाता है कि कछुओं की प्रजाति विश्व की सबसे पुरानी जीवित प्रजातियों में से है, ये लगभग 200 मिलियन पुरानी है और ये प्राचीन प्रजातियां चिड़ियों ,सांपों और छिपकलियों से भी पहले धरती पर अस्तित्व में आ चुकी थी। जीववैज्ञानिकों के मुताबिक, कछुए इतने लंबे समय तक सिर्फ इसलिए खुद को बचा सके क्योंकि उन्हें एक ऐसा कवच दिया गया है जो कि उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है। [[कछुआ]] [[पृथ्वी]] पर सबसे अधिक दिनों तक जीवित रहने वाला जीव माना जाता है। रेंगने वाले यानी सरीसृप जीवों की श्रेणी में आने वाले इस जीव की उम्र 150 वर्ष से भी अधिक मानी जाती है। सबसे अधिक वर्षो तक जीवित रहने वाला कछुआ हनाको कछुआ था, जो लगभग 226 वर्षो तक जीवित रहा। इसकी मृत्यु [[17 जुलाई]] [[1977]] को हुई थी।<ref name="pp"/>
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कहा जाता है कि कछुओं की प्रजाति विश्व की सबसे पुरानी जीवित प्रजातियों में से है, ये लगभग 200 मिलियन पुरानी है और ये प्राचीन प्रजातियां चिड़ियों, सांपों और छिपकलियों से भी पहले धरती पर अस्तित्व में आ चुकी थी। जीववैज्ञानिकों के मुताबिक, कछुए इतने लंबे समय तक सिर्फ इसलिए खुद को बचा सके क्योंकि उन्हें एक ऐसा कवच दिया गया है जो कि उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है। [[कछुआ]] [[पृथ्वी]] पर सबसे अधिक दिनों तक जीवित रहने वाला जीव माना जाता है। रेंगने वाले यानी सरीसृप जीवों की श्रेणी में आने वाले इस जीव की उम्र 150 वर्ष से भी अधिक मानी जाती है। सबसे अधिक वर्षो तक जीवित रहने वाला कछुआ हनाको कछुआ था, जो लगभग 226 वर्षो तक जीवित रहा। इसकी मृत्यु [[17 जुलाई]] [[1977]] को हुई थी।<ref name="pp"/>
 
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[[भारत]] में कछुओं के सामने सबसे बड़ा खतरा तस्करी है। उन्हें हर साल बड़ी संख्या में पूर्वी एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई बाजारों में तस्करी कर लाया जाता है। इन देशों में इनकी तस्करी की जाती है। जीवित नमूनों के अलावा, समुद्री कछुए के अंडों को खोदा जाता है और दक्षिण एशियाई देशों में व्यंजनों के रूप में बेचा जाता है। [[पश्चिम बंगाल]] राज्य कछुओं की तस्करी के केंद्र बिंदु के रूप में उभरा है। सरकार के प्रयासों के बावजूद, भारत में कछुए की तस्करी एक आकर्षक व्यवसाय के रूप में बनी हुई है।

12:27, 17 मई 2022 के समय का अवतरण

विश्व कछुआ दिवस
विश्व कछुआ दिवस
तिथि 23 मई
व्यापकता विश्व स्तर पर
शुरुआत 2000 से
उद्देश्य विश्वभर में कछुओं की घटती संख्या को देखते हुए लोगों में इनके संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करना।
अन्य जानकारी सबसे अधिक वर्षो तक जीवित रहने वाला कछुआ हनाको कछुआ था, जो लगभग 226 वर्षो तक जीवित रहा। इसकी मृत्यु 17 जुलाई 1977 को हुई थी।
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विश्व कछुआ दिवस (अंग्रेज़ी: World Turtule Day) प्रत्येक वर्ष 23 मई को मनाया जाता है। विश्वभर में कछुओं की घटती संख्या को देखते हुए लोगों में इनके संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए प्रतिवर्ष विश्व कछुआ दिवस मनाया जाने लगा है। 23 मई को पूरा विश्व मिलकर इस दिन को मनाता है। कछुआ एक ऐसा जानवर है, जिसे कई सारे लोग शुभ मानते हैं और उनकी कई प्रजातियों को घर पर भी रखा जा सकता है। बाजारों में महंगे- महंगे भावों में भी कछुओं की बिक्री होती है।

इतिहास

सन् 2000 से विश्व कछुआ दिवस का आयोजन होने लगा। कछुओं की विभिन्न प्रजातियों को बचाने के लिए अमेरिका के एक गैर लाभकारी संगठन अमेरिकन टॉर्टवायज रेस्क्यु की स्थापना की गई। इस संगठन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य विश्वभर के कछुओं का संरक्षण है। विभिन्न देश के लोग सन् 2000 के बाद से ही कछुओं की रक्षा के प्रति जागरूक हो गए।[1]

लॉकडाउन से कछुओं को मिली राहत

पिछले कुछ सालों में कछुए दिखना ही बंद हो गए थे। कछुओं की समुद्री प्रजाति लॉकडाउन में आराम से समुद्र किनारे रह पा रही है। गर्मियों में समुद्री तटों पर इतनी भीड़भाड़ होती थी कि कछुए डर के कारण ही बाहर नहीं आ पाते थे, लेकिन लॉकडाउन कोई कहीं जा ही नहीं पा रहा था तो ऐसे में कछुए भी स्वतंत्र जीवन जी पा रहे थे। कछुओंं के धंधे में भी कमी हुई है।

200 मिलियन पुरानी प्रजाति

कहा जाता है कि कछुओं की प्रजाति विश्व की सबसे पुरानी जीवित प्रजातियों में से है, ये लगभग 200 मिलियन पुरानी है और ये प्राचीन प्रजातियां चिड़ियों, सांपों और छिपकलियों से भी पहले धरती पर अस्तित्व में आ चुकी थी। जीववैज्ञानिकों के मुताबिक, कछुए इतने लंबे समय तक सिर्फ इसलिए खुद को बचा सके क्योंकि उन्हें एक ऐसा कवच दिया गया है जो कि उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है। कछुआ पृथ्वी पर सबसे अधिक दिनों तक जीवित रहने वाला जीव माना जाता है। रेंगने वाले यानी सरीसृप जीवों की श्रेणी में आने वाले इस जीव की उम्र 150 वर्ष से भी अधिक मानी जाती है। सबसे अधिक वर्षो तक जीवित रहने वाला कछुआ हनाको कछुआ था, जो लगभग 226 वर्षो तक जीवित रहा। इसकी मृत्यु 17 जुलाई 1977 को हुई थी।[1]

तस्करी

भारत में कछुओं के सामने सबसे बड़ा खतरा तस्करी है। उन्हें हर साल बड़ी संख्या में पूर्वी एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई बाजारों में तस्करी कर लाया जाता है। इन देशों में इनकी तस्करी की जाती है। जीवित नमूनों के अलावा, समुद्री कछुए के अंडों को खोदा जाता है और दक्षिण एशियाई देशों में व्यंजनों के रूप में बेचा जाता है। पश्चिम बंगाल राज्य कछुओं की तस्करी के केंद्र बिंदु के रूप में उभरा है। सरकार के प्रयासों के बावजूद, भारत में कछुए की तस्करी एक आकर्षक व्यवसाय के रूप में बनी हुई है।

अन्य खतरे

कई मानव निर्मित मुद्दों से कछुओं को भी खतरा है। प्रमुख खतरों में से एक आवास विनाश है। गंगा और देश की अन्य प्रमुख नदियों में पाए जाने वाले कछुए आवास विनाश का सामना कर रहे हैं क्योंकि ये नदियाँ तेजी से प्रदूषित हो रही हैं। समुद्री कछुए भी समुद्र और समुद्र तटों के प्रदूषण से पीड़ित हैं। प्लास्टिक खाकर हर साल कई कछुए मर रहे हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 जानिए विश्व कछुआ दिवस का इतिहास (हिंदी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 17 मई, 2022।

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