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[[पुष्यभूति वंश|पूष्यभूति वंशीय]] शासक [[हर्षवर्धन]] (606-647) महान् विजेता एवं साम्राज्य निर्माता होने के साथ-साथ एक उच्च प्रतिभा के धनी नाटककार भी थे। हर्ष को [[संस्कृत]] में लिखित तीन नाटकों का रचियता माना जाता है-  
*[[पुष्यभूति वंश|पूष्यभूति वंशीय]] शासक [[हर्षवर्धन]] (606-647) महान विजेता एवं साम्राज्य निर्माता होने के साथ-साथ एक उच्च प्रतिभा के धनी नाटककार भी थे। हर्ष को [[संस्कृत]] में लिखित तीन नाटकों का रचियता माना जाता है-  
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# [[रत्नावली]]
1- '''रत्नावली''' -
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# [[नागानन्द]]
रत्नावली नाटक में चार अंक हैं। यह एक प्रसिद्ध नाटक है। जिसमें हर्ष ने एक आर्दश कथानक को भव्य रूप से प्रस्तुत किया है। चरित्र-चित्रण कुशलतापूर्वक किया गया है।
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# [[प्रियदर्शिका]]
  
2- '''नागानन्द''' -
 
नागानन्द पाँच अंकों का नाटक है, जिसका कथानक [[बौद्ध धर्म]] से लिया गया है। इसका नायक 'जीमूतवाहन' अपने आर्दश चरित्र के लिए प्रसिद्ध है। परोपकार के लिए आत्म-त्याग की भावना का पूर्ण परिपाक हमें यहाँ दिखाई देता है।
 
  
3- '''प्रियदर्शिका''' -
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प्रिदर्शिका चार अंकों का नाटक है, जिसमें 'वत्सराज उदयन' तथा महाराज दृढ़वर्मा की कन्या 'प्रियदर्शिका' की प्रणय कथा का नाटकीय चित्रण मिलता है।
 
*हर्ष की काव्य-शैली सरल तथा सुबोध है। उसके वर्णनों में विस्तार मिलता है। प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन भी सुन्दर है। प्रणय नाटकों के रूप में हर्ष का नाम अमर रहेगा।
 
 
 
 
 
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पूष्यभूति वंशीय शासक हर्षवर्धन (606-647) महान् विजेता एवं साम्राज्य निर्माता होने के साथ-साथ एक उच्च प्रतिभा के धनी नाटककार भी थे। हर्ष को संस्कृत में लिखित तीन नाटकों का रचियता माना जाता है-

  1. रत्नावली
  2. नागानन्द
  3. प्रियदर्शिका


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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