अहीर

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अहीर एक पशुपालक जाति है, जो उत्तरी और मध्य भारतीय क्षेत्र में फैली हुई है। इस जाति के साथ बहुत ऐतिहासिक महत्त्व जुड़ा हुआ है, क्योंकि इसके सदस्य संस्कृत साहित्य में उल्लिखित आभीर के समकक्ष माने जाते हैं। हिन्दू पौराणिक ग्रंथ 'महाभारत' में इस जाति का बार-बार उल्लेख आया है। कुछ विद्वानों का मत है कि इन्हीं पशुपालकों ने, जो दक्षिणी राजस्थान और सिंध (पाकिस्तान) में बिखरे हुए हैं, कृष्ण को गोपालक या गोपाल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो अब भगवान कृष्ण की कथा का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं।

  • 'अहीर' भारत की प्राचीन जाति है, जो अराजकता के लिए काफ़ी प्रसिद्ध रही है।
  • जाटों का इससे रक्त सम्बन्ध तथा सामाजिक सम्बन्ध मराठों और गूजरों जैसा निकटतम है।
  • यादव प्राय: 'अहीर' शब्द से भी नामांकित होते हैं, जो संभवत: आभीर जाति से संबद्ध रहे होंगे।
  • कुछ लोग आभीरों को अनार्य कहते हैं, परन्तु 'अहीरक' अर्थात् आहि तथा हरि अर्थात् नाग एवं हाथी के सदृश अर्थात् कृष्ण वर्णी रहे होंगे या अहि अर्थात् सांप तथा हम अर्थात् घोड़े अर्थात् काले तथा तेज शक्तिशाली जाति अहीर कहलाई होगी। यदि इन्हें अभीर जाति से संबंधित किया जाये तो ये विदेशी ठहरते हैं।[1]
  • श्रीकृष्ण को जाट और गूजर दोनों ही पूर्व-पुरुष मानते हैं। यद्यपि अहीरों में परस्पर कुछ ऐसी दुर्भावनाएं उत्पन्न हो गई हैं कि वे स्वयं एक शाख वाले, दूसरी शाख वालों को, अपने से हीन समझते हैं। लेकिन जाटों का सभी अहीरों के साथ चाहे वे अपने लिए यादव, गोप, नंद, आभीर कहें, एक-सा व्यवहार है। जैसे खान-पान में जाट और गूजरों में कोई भेद नहीं, वैसे ही अहीर और जाटों में भी कोई भेद नहीं।
  • इतिहास में इनके रहने का भी स्थान निकट-निकट बतलाया गया है। भारत से बाहर भी जहां कहीं जाटों का अस्तित्व पाया जाता है, वहीं अहीरों की बस्तियां भी मिलती हैं। चीन में जहां जाट को 'यूची' नाम से याद किया गया है, वहीं अहीरों को 'शू' नाम से पुकारा गया है।
  • ईरान में जाटाली प्रदेश के निकट ही अहीरों की बस्तियां भी पाई जाती हैं। भारत की मौजूदा आर्य क्षत्रिय जातियों में अहीर सबसे पुराने क्षत्रिय हैं। जब तक जाट, राजपूत, गूजर और मराठा नामों की सृष्टि भी नहीं हुई थी, अहीरों का अभ्युदय हो चुका था।
  • ब्रज में अहीरों की एक शाखा गोपों का कृष्ण-काल में जो राष्ट्र था, वह प्रजातंत्र प्रणाली द्वारा शासित 'गोपराष्ट्र' के नाम से जाना जाता था।
  • नन्द, जिसके कि यहां श्रीकृष्ण का पालन-पोषण हुआ था या तो अहीर थे या जाट। अरबी यात्री अलबरूनी ने नन्द को जाट ही लिखा है। कुछ भी बात हो, लेकिन इससे यह सिद्ध होता है कि जाट और अहीरों के पुरखे किसी एक ही भंडार के हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यदुवंश (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 11 मई, 2014।

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