कुणिंद
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कुणिंद भारत का एक प्रख्यात प्राचीन जनसमूह था, जिसका पहली और चौथी शती ई. के बीच अपना महत्वपूर्ण गणराज्य था। 'महाभारत में इसका उल्लेख 'पैशाच', 'अंबष्ठ' और 'बर्बर' नामक पर्वतीय जातियों के साथ हुआ है।[1]
- 'महाभारत' में कहा गया है कि वे शैलोदा नदी के दोनों तटों पर कुणिंद लोग निवास करते थे। उनका प्रदेश काफ़ी विस्तृत था और उनके कई सौ कुल थे।
- कुणिंदों ने युधिष्ठिर को 'राजसूय यज्ञ' के समय पिपीलिका सुवर्ण भेंट किया था।
- 'रामायण और पुराणों में भी कुणिंदों का उल्लेख हुआ है।
- वराहमिहिर के कथनानुसार कुणिंद उत्तर-पूर्व के निवासी थे। उन्होंने इनका उल्लेख कश्मीर, कुलूत और सैरिन्ध के साथ किया है।
- टॉल्मी ने भी कुणिंदों की चर्चा की है। उसके कथनानुसार ये लोग विपाशा नदी (व्यास), शतद्रु (सतलुज), यमुना और गंगा नदियों के उद्गम प्रदेश में रहते थे।
- इस प्रकार साहित्यिक सूत्रों के अनुसार कुणिंद लोग हिमालय के पंजाब और उत्तर प्रदेश से सटे निचले हिस्से में रहते थे।
- संभवत: कुमायूँ और गढ़वाल का क्षेत्र इनके अधिकार में था।
- कुणिंदों के गणराज्य के जो सिक्के मिले हैं, उनसे ज्ञात होता है कि वे लोग अपना शासन भगवान चित्रेश्वर (शिव) के नाम पर करते थे। चित्रेश्वर शिव: (भू-लिंग) का मंदिर कुमाऊँ में चित्रशिला नामक स्थान में आज भी विद्यमान है।
- ऐसा भी जान पड़ता है कि इस गणतंत्रीय राज्य ने राजतंत्र का रूप धारण कर लिया था। सिक्कों पर अमोघभूति नामक महाराज का उल्लेख मिलता है।
इन्हें भी देखें: महाभारत, वेदव्यास, श्रीकृष्ण एवं पाण्डव
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