आफ़त की शोख़ियाँ हैं… तुम्हारी निगाह में मेहशर के फ़ितने खेलते हैं, जलवा-गाह में वो दुश्मनी से देखते हैं, देखते तो हैं मैं शाद हूँ के, हूँ तो किसी की निगाह में आती बात-बात मुझे, याद बार-बार कहता हूँ दौड़-दौड़ के क़ासिद से राह में इस तौबा: पर है नाज़ मुझे ज़ाहिद इस कदर टूट कर शरीक हूँ, हाल-ए-तबाह में मुश्ताक़ इस अदा के बहुत दर्द-मंद थे आए “दाग” तुम तो बैठ गये, एक आह में …….