टेस्सी थॉमस

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टेस्सी थॉमस
टेस्सी थॉमस
टेस्सी थॉमस
पूरा नाम डॉ. टेस्सी थॉमस
अन्य नाम अग्निपुत्री, भारत की मिसाइल वूमन
जन्म अप्रैल, 1964
जन्म भूमि केरल
पति/पत्नी सरोज कुमार
संतान पुत्र- तेजस
कर्म भूमि भारत
शिक्षा बी. टेक., एम. टेक.
विद्यालय त्रिचुर इन्जीनरिंग कॉलेज, कालीकट; डिफेन्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस टेक्नोलॉजी, पुणे
पुरस्कार-उपाधि 'लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अवार्ड' (2012), 'कल्पना चावला पुरस्कार', 'सुमन शर्मा पुरस्कार', 'इंडिया टुडे वुमन ऑफ़ द ईयर का ख़िताब' 2009
प्रसिद्धि मिसाइल वैज्ञानिक
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख ए पी जे अब्दुल कलाम, अग्नि प्रक्षेपास्त्र, ब्रह्मोस मिसाइल
अन्य जानकारी 2013 में भुवनेश्वर में आयोजित 'भारतीय विज्ञान कांग्रेस' के अधिवेशन को संबोधित करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने टेस्सी थॉमस को "भारत की वैज्ञानिक रत्न" की संज्ञा देते हुए देश की महिलाओं को विज्ञान के क्षेत्र में आकर काम करने का आह्वान किया था।

टेस्सी थॉमस (अंग्रेज़ी: Tessy Thomas, जन्म- अप्रैल, 1964, केरल) भारत की प्रसिद्ध महिला वैज्ञानिक हैं। उन्हें 'भारत की अग्निपुत्री' और 'मिसाइल वुमन ऑफ़ इण्डिया' कहा जाता है। उन्होंने अपना अब तक का सारा जीवन भारत की अग्नि मिसाइल के अनेक उन्नत एवं परिष्कृत संस्करणों के लिए अनुसन्धान करके फिर उन्हें विकसित करने में ही बिता दिया है। भारत की 3500 कि.मी. तक मार करने वाली अग्नि-4 मिसाइल के सफल परीक्षण के बाद से ही रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की महिला वैज्ञानिक डॉ. टेस्सी थॉमस को 'अग्निपुत्री' के नाम से ही सम्बोधित किया जाने लगा था।

परिचय

डॉ. टेस्सी थॉमस का जन्म अप्रैल, 1964 में केरल के एक कैथोलिक परिवार में हुआ था। इनका नाम शांति की दूत नोबेल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा के नाम पर रखा गया। टेस्सी थॉमस जब स्कूल में पढ़ा करती थीं, उन दिनों 'नासा' का अपोलो यान चाँद पर उतरने वाला था। इन्हें रोज़ाना उस यान के बारे में सुनकर प्रेरणा मिल रही थी कि ये भी एक दिन ऐसा एक रॉकेट बनायें, जो इसी तरह आसमान की ऊंचाई को छू सके। टेस्सी थॉमस का ये उन दिनों एक सपना था। अग्नि-5 की सफलता से टेस्सी थॉमस की मेहनत, लगन और प्रतिभा का ही सपना पूरा नहीं हुआ है, बल्कि एक वह सपना भी पूरा हुआ है, जो इस देश को स्वदेशी रॉकेट और मिसाइल तकनीक से वैज्ञानिक और सामरिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा देखने के लिए बरसों पहले भारत के शीर्ष वैज्ञानिकों विक्रम साराभाई और सतीश धवन ने देखा था।

शिक्षा

टेस्सी थॉमस ने त्रिचुर इन्जीनरिंग कॉलेज, कालीकट (केरल) से बी. टेक. किया और इसके बाद एम. टेक. के लिए पुणे स्थित 'डिफेन्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस टेक्नोलॉजी' की प्रवेश परीक्षा पास की। वे ये परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले तीन छात्रों में से एक थीं और पहली महिला भी। उनकी इसी प्रतिभा के कारण उन्हें 'गाइडेड मिसाइल एंड वेपन टेक्नोलॉजी' के विशेष कोर्स के लिए चुना गया। 1985 में राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा में प्रथम आकर टेस्सी थॉमस ने 21 वर्ष की आयु में ही देश के 'रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन' में कदम रखा और इस क्षेत्र में पुरुषों के प्रभुत्व को भी तोड़ा।

अग्नि-5 की परियोजना निदेशक

विश्व ने डॉ. टेस्सी थॉमस को तब पहचाना ही नहीं बल्कि इनका लोहा भी माना, जब इन्होंने 19 अप्रैल, 2012 को देश की सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी मिसाइल परियोजना में अग्नि-5 की प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में अग्नि-5 की स्ट्राइक रेंज 5,000 किलोमीटर की मिसाइल का सफल परीक्षण कर दिखाया। भारत के लिए मात्र यह एक वैज्ञानिक उपलब्धि ही नहीं थी अपितु यह देश की सामरिक शक्ति और रक्षा कवच का भी पूरे विश्व को परिचय दिया गया था। आज भारत 'अंतर महाद्विपीय मिसाइल प्रणाली'[1] की क्षमता से लैस ऐसा विश्व में पांचवा देश है, जो 5000 कि.मी. तक अपनी मिसाइल की मार से किसी भी शत्रु को उसके घर में ही ढेर कर सकता है और अपने नागरिकों को सुरक्षित रखने में सक्षम है। इसका सारा श्रेय डॉ. टेस्सी थॉमस को ही जाता है।

अग्नि-2 और अग्नि-5 तक के सभी संस्करणों को विकसित करने में डॉ. टेस्सी थॉमस की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। किसी संस्करण में उन्हें असिस्टेंट डायरेक्टर तो किसी में एसोसिएट डायरेक्टर तो कभी एडिशनल डायरेक्टर के रूप में काम करने का मौका दिया गया और अग्नि-5 के संस्करण के लिए उन्हें मिशन-डायरेक्टर के रूप में कार्य करने का मौका दिया गया, जिसे उन्होंने सफलता के साथ पूरा किया। आज वे अग्नि परियोजना की निदेशक हैं। अग्नि-5 के परीक्षण के लिए डॉ. टेस्सी थॉमस को मिशन डायरेक्टर नियुक्त किया गया था, जिसमें इसका डिजाईन, निर्माण और अचूक परीक्षण का पूर्ण कार्यभार उन्हीं के कंधों पर रखा गया था। इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए टेस्सी थॉमस ने लगातार तीन वर्षों तक काम किया। इस प्रोजेक्ट में लगभग दर्ज़न भर देश में फैली रक्षा और सार्वजनिक क्षेत्र की प्रयोगशालाओं के छोटे-बड़े लगभग 1000 वैज्ञानिकों के साथ समन्वय करके जोखिम भरी तकनीकों पर काम के साथ उनका नेतृत्व डॉ. टेस्सी थॉमस ने सफलता पूर्वक किया।

अग्नि मिसाइल परियोजना देश की एक बहुत बड़ी वैज्ञानिक परियोजना है, जिसमें देश की दर्जनों प्रयोगशालाएँ शामिल हैं। इसमें एक हज़ार से भी ज्यादा वैज्ञानिक शामिल हैं। लगभग 200 महिला वैज्ञानिक भी अपनी विशेषज्ञताओं के साथ इस परियोजना में शामिल हैं और उनमें से लगभग आधा दर्जन महिला वैज्ञानिक, इंजीनियर तो डॉ. टेस्सी थॉमस के साथ सीधे उसी प्रयोगशाला में कार्यरत हैं, जहाँ से ये इस महत्वपूर्ण परियोजना का नेतृत्व कर रही हैं। उनकी प्रयोगशाला हैदराबाद में 'एडवांस सिस्टम लेबोरेटरी', भारत ही नहीं, दुनिया की सबसे संवेदनशील प्रयोगशालाओं में गिनी जाती है। डॉ. टेस्सी थॉमस वैसे तो मिसाइल परियोजना से 1988 में जुड़ी थीं, लेकिन 2008 से इस परियोजना की डायरेक्टर हैं। जब अग्नि-5 परियोजना पर अंतिम चरण में काम चल रहा था तो उनकी कोर टीम के कई सदस्य और वे स्वयं लगभग महीनों तक अपने घर नहीं गए थे, जिनमें आधा दर्ज़न वे महिला वैज्ञानिक भी शामिल थीं, जो टेस्सी थॉमस के साथ सीधे जुड़ी थीं। इसका एक बड़ा कारण ये भी था कि अग्नि-3 का पहला परीक्षण विफल हो चूका था और उस विफलता की पुनरावृत्ति ये वैज्ञानिक दुबारा नहीं होने देना चाहते थे।

एक विनम्र और साधारण सी लगने वाली डॉ. टेस्सी थॉमस के जब अग्नि मिसाइल प्रयोगशाला से जुड़े होने का सवाल आता है तो वे अपनी प्रयोगशाला में अपने विषय 'सालिड प्रोपेलेट्स सिस्टम' (ठोस प्रणोदक प्रणाली) की देश में चोटी की विशेषज्ञ हैं। इसी विशेषता के कारण ही वे इस परियोजना की निर्देशक होने का गौरव पाती हैं। डॉ. टेस्सी थॉमस को अग्नि के परिष्कृत संस्करण विकसित करने की सम्पूर्ण जिम्मेदारियाँ इसलिए भी दी गयीं, क्योंकि उनकी रॉकेट (ठोस प्रणोदक प्रणाली) में जो विशेषज्ञता है, उसके बिना किसी रॉकेट या मिसाइल को हवा में नहीं उड़ाया जा सकता है। साथ ही टेस्सी थॉमस की 'गाइडेड मिसाइल सिस्टम' में भी विशेषज्ञता भी है, यही विशेषता किसी रॉकेट को मिसाइल में बदलती है और उसे अचूक निशाने के लिए तैयार करती है। इन दोनों विशेषज्ञताओं का एक साथ मिलन विश्व के एक दो वैज्ञानिकों में ही मिलता है, उनमें से एक डॉ. टेस्सी थॉमस भी हैं। ये भारत के लिए लाभान्वित होने का ही नहीं, बल्कि गौरवान्वित होने का भी विषय है।

आरईवीएस तकनीक का विकास

टेस्सी थॉमस के अनुसार एक ग़रीब देश की जनता के गाढ़े खून-पसीने की कमाई को सभी वैज्ञानिक किसी भी कीमत पर व्यर्थ नहीं होने देने के लिए कृतसंकल्पित थे। उनकी पूरी टीम ने अथक प्रयास किये, एक-एक तकनीक को कई बार कई अलग–अलग टीम ने जांचा-परखा, तब जाकर सभी में एक विश्वास का संचार हो पाया। अग्नि-5 की हर तकनीकी जाँच की अग्निपरीक्षा इतनी कठोर थी कि इसमें कभी कोई भी तकनीकी दिक्कत नहीं आई। लेकिन जिस दिन इसका परीक्षण/लांच निर्धारित किया गया, उस दिन मौसम का हाल बुरा हो गया और सभी वैज्ञानिकों को निराशा ने घेर लिया। डॉ. टेस्सी के अनुसार, उनकी माँ खुद बार-बार फ़ोन करके पूछती रहीं कि उडान में देरी का कारण क्या है? लेकिन मिशन टीम का हर सदस्य 'मिशन कमांड कण्ट्रोल सेंटर' से हिला नहीं, जो कई महीने से घर नहीं गए थे। अचानक उन सबकी हठ के आगे मौसम ने हार मान ली और मौसम ठीक हो गया। कुछ घंटों की देरी के बाद अग्नि-5 का सफल परीक्षण होकर रहा, और इस सफलता ने देश को आईसीबीएम क्षमता धारक देशों के क्लब की प्रथम पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया। ये सब देश की अग्निपुत्री डॉ. टेस्सी थॉमस के संकल्प से ही संभव हो पाया।

टेस्सी थॉमस को इस मौसम की मार के अनुभव ने एक और प्रेरणा दे डाली और उसका परिणाम यह हुआ कि टेस्सी ने एक महत्वपूर्ण मिसाइल तकनीक 'Re Entry Vheical System' (आरईवीएस) का भी स्वदेश में ही विकास कर लिया। जो भारत को विश्व के एक-दो देशों के पास होने पर इसलिए उपलब्ध नहीं हो पा रही थी कि उन देशों ने पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद भारत की कई प्रयोगशालाओं के प्रयोगों को उपकरण और तकनीक देने के लिए प्रतिबंध लगा दिए थे। यह अत्याधुनिक आरईवीएस तकनीक मिसाइल को विपरीत मौसम की परिस्थितियों में भी अनुकूल बना देती है और 3000 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में भी सक्रिय और अचूक निशाने तक पहुचने से नहीं रोक सकती है। यह तकनीक लम्बी दूरी की मिसाइल को वायुमंडल से बाहर जाकर फिर से वायुमंडल में आकर अपने लक्ष्य को भेदने में सक्षम बनाती है, जिससे शत्रु को मौसम ख़राब होने पर भी सर्दी, गर्मी और बरसात के किसी भी मौसम में उसी के पाले में जाकर सबक सिखाया जा सके। ये सभी मिसाइल तकनीक भारत की केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धियां ही नहीं हैं, बल्कि ये सब मिलकर भारत को एक सामरिक सुरक्षा कवच प्रदान करती हैं। जबकि भारत एक परमाणु शस्त्र संपन्न देश है। उसे कभी भी किसी भी स्थिति में अपने परमाणु शस्त्र को इन मिसाइलों के जरिये हजारों कि.मी. तक मार करने के लिए प्रयोग करना पड़ सकता है। तब यही तकनीक इस देश के हर नागरिक की सुरक्षा की गारंटी होगी, जो अग्निपुत्री के करकमलों से प्राप्त हुई है।

अग्निपुत्री

जिस प्रकार डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम को "भारत का मिसाइल मेन" कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपना सारा जीवन देश के मिसाइल कार्यक्रम के अंतर्गत- पृथ्वी, आकाश, अग्नि, नाग, धनुष, त्रिशूल और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों के अनुसन्धान और विकास को समर्पित किया है, उसी प्रकार डॉ. टेस्सी थॉमस के लिए 'अग्निपुत्री' का नाम एकदम उपयुक्त है, क्योंकि उन्होंने इसी मिसाइल परियोजना में अग्नि मिसाइल के लगभग सभी संस्करणों को जन्म दिया है। वे डॉ. अब्दुल कलाम को अपना गुरु मानती हैं, जो भारत के मिसाइल कार्यक्रम और परियोजना के जनक रहे थे।

अपनी प्रतिभा, मेहनत एवं लगन से 1988 में डॉ. टेस्सी थॉमस भारत की मिसाइल परियोजना में शामिल हुई, तब डॉ. अब्दुल कलाम इस परियोजना का नेतृत्व कर रहे थे। टेस्सी थॉमस जो डॉ. कलाम को अपना गुरु मानती हैं और कहती हैं- "मीडिया उन्हें अग्निपुत्री या मिसाइल वुमन की कोई भी संज्ञा दे या इससे संबोधित करे, लेकिन डॉ. कलाम की प्रतिभा और लगन के साथ देशप्रेम के आगे वे आजीवन नतमस्तक ही रहेंगी।" डॉ. कलाम के साथ उन्होंने अनेक वर्षों तक कार्य किया। वह अनुभव ही उनके लिए आज भी काम आ रहा है, जो उन्होंने डीआरडीओ में डॉ. अब्दुल कलाम के नेतृत्व में मिसाइल परियोजना में उनके साथ काम करते हुए प्राप्त किए थे।

कुशल ग्रहणी

डॉ. टेस्सी थॉमस एक का दूसरा रूप और भी है। वे एक कुशल गृहिणी भी हैं, जब भी घर पर होती हैं तो कम से कम एक समय खुद खाना बनाती हैं। एक टीवी चैनल को तो उन्होंने समय बचाने के लिए अपनी रसोई से ही इंटरव्यू दे दिया था। उनके पति कोमोडोर सरोज कुमार भारतीय नौसेना में तैनात हैं। पुत्र का नाम तेजस है, जो भारत में स्वदेशी तकनीक से निर्मित हल्के लड़ाकू विमान 'तेजस' के नाम पर ही रखा गया है। टेस्सी थॉमस के माता-पिता विज्ञान पृष्ठभूमि से नहीं थे। पिता एक अकाउंटेंट और माता एक शिक्षिका थीं, लेकिन शुरू से ही टेस्सी को गणित और विज्ञान में ही रूचि थी, जिसने उनको आज इस मुकाम तक पहुँचाया है।

पुरस्कार व सम्मान

एक महिला वैज्ञानिक होने के नाते किसी भी प्रकार की विशेष छूट या सुविधा का टेस्सी थॉमस हर समय विरोध करती हैं। उनका मानना है कि- "विज्ञान में प्रतिभा सर्वश्रेष्ठ होती है, यहाँ कोई जेंडर कमज़ोर या मज़बूत नहीं होता बल्कि प्रतिभा ही उसे मज़बूत बनाती है और विज्ञान में इसलिए कोई जेंडर नहीं होता है।"[2] ये उनकी पंक्तियाँ या सूक्ति वह वाक्य है, जो दुनिया की सभी प्रयोगशालाओं में उनके नाम के साथ सुनाई या गाई जाती है।

2013 में भुवनेश्वर में आयोजित 'भारतीय विज्ञान कांग्रेस' के अधिवेशन को संबोधित करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने टेस्सी थॉमस को "भारत की वैज्ञानिक रत्न" की संज्ञा देते हुए ही देश की महिलाओं को विज्ञान के क्षेत्र में आकर काम करने का आह्वान किया था। डॉ. टेस्सी थॉमस की तुलना उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता विजेता मैडम क्यूरी से कर डाली थी। डॉ. टेस्सी थॉमस को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चूका है। भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हाथों उन्हें 'लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अवार्ड-2012' से नवाजा गया है। साथ ही 2001, 2007, 2008 में डीआरडीओ की ओर से उन्हें विशेष तकनीकों के विकास के लिए पांच बार पुरस्कृत किया गया है। 'कल्पना चावला पुरस्कार', 'सुमन शर्मा पुरस्कार' जैसे वैज्ञानिक क्षेत्र के प्रतिष्ठित पुरस्कार और 'इंडिया टुडे वुमन ऑफ़ द ईयर का ख़िताब' 2009 में दिया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Inter-Continental Ballistic Missile System – ICBM
  2. No , Not At All. Science Has No Gender

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