संदीप कुमार बसु
संदीप कुमार बसु
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पूरा नाम | संदीप कुमार बसु |
जन्म | 1944 |
जन्म भूमि | कोलकता, पश्चिम बंगाल |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | अणु विज्ञान |
पुरस्कार-उपाधि | गोयल पुरस्कार, 2003 पद्म श्री, 2001 |
प्रसिद्धि | आणविक जीव विज्ञानी |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | संदीप कुमार बसु 1991 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी, नई दिल्ली के निदेशक बने। वहां पर वह 2005 तक कार्यरत रहे। |
अद्यतन | 15:33, 14 जनवरी 2022 (IST)
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संदीप कुमार बसु (अंग्रेज़ी: Sandip Kumar Basu, 1944) भारतीय आणविक जीव विज्ञानी और नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के जे.सी. बोस चेयर के धारक हैं, जिन्हें लीशमैनियासिस, तपेदिक, वायरल संक्रमण, बहुऔषध प्रतिरोधी कैंसर और धमनीकाठिन्य के उपचार प्रोटोकॉल में नवाचारों का श्रेय दिया जाता है। उन्हें 2001 में भारत सरकार द्वारा चौथे सर्वोच्च भारतीय नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
परिचय
संदीप कुमार बसु का जन्म भारत के पश्चिम बंगाल के कोलकता में सन 1944 को हुआ। उन्होंने सन 1962 में प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता से स्त्रातक की उपाधि प्राप्त की। 1964 में उन्होंने जीव विज्ञान में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ साइंस, कलकत्ता से मास्टार की उपाधि प्राप्त की। सन 1968 में माइक्रोबियल चयापचय का विनियमन पर कलकत्ता विश्वविद्यालय से पीएचडी पूर्ण की। वह अपनी पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च के लिए यूएसए के केएसी स्कूल ऑफ मेडिसिन लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, इरविन स्कूल ऑफ मेडिसिन सार्वजनिक स्वास्थ अनूसंधान संस्थान, न्यूयॉर्क में और माइकल रीझ अस्पताल शिकागो में शामिल हुए।
कार्य
संदीप कुमार बसु सन 1975 से 1983 तक टेक्सास साउथपेस्टार्न मेडिकल स्कूल में एक संकाय सदस्य के रूप में कार्यरत रहे। उसके बाद वह भारत में कलकत्ता के भारतीय रासायनिक जीवविज्ञान संस्थान में शामिल हुए। संदीप कुमार बसु ने 1986 में इंस्टीटयूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी, चंडीगढ़ के निदेशक के रूप में काम किया। वह 1991 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी, नई दिल्ली के निदेशक बने। वहां पर वह 2005 तक कार्यरत रहे। उसके बाद इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर के रूप में 2010 तक कार्यरित थे।
संदीप कुमार बसु ड्रग्स के रिसेप्टर आधारित इंट्रासेल्यूलर डिलीवरी पर शोध से जुड़े रहे हैं। उनके द्वारा रिसेप्टर मध्यास्थता के एक नए दृष्टीकोण की शुरुवात हुई है। उनके शोध से नई दवा के लक्ष्यों की खेाज हुई है और रोगजनकों पर रोगाणुरोगी मुरमाइल डाप्टाइड के चिकित्सीय प्रवाव का प्रदर्शन किया गया है। उनको कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन रिसेप्टर्स के मार्ग की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। इतना ही नहीं, उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबियप्पा टेक्नोलॉजी में एक स्थायी परिसर कि स्थापना भी की है। वह भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार समिती के पूर्व सदस्य हैं। नासा के उपाध्याक्ष भी रहे हैं।
पुरस्कार व सम्मान
- 2001 में भारत सरकार का पद्म श्री
- रैनबैक्सी चिकित्सा विज्ञान पुरस्कार
- फिक्की लाइफ अवॉर्ड
- 1996 में भसीन फाउंडेशन बायोटेक्नोलॉजी अवॉर्ड
- 1999 में दो पुरस्कार- बी. आर. आंबेडकर पुरस्कार और आर. के. दत्ता मेमोरियल अवॉर्ड
- 2003 में गोयल पुरस्कार
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