राई नृत्य
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राई नृत्य बुंदेलखंड के प्रसिद्ध नृत्यों में से एक है। यह नृत्य गुजरात के प्रसिद्ध गरबा नृत्य के समान ही प्रसिद्ध है। राई नृत्य बारहों महीने नाचा जाता है। बुंदेलखंडी जनमानस का हर्ष और उल्लास इस लोक नृत्य में अभिव्यक्त होता है।
- राई नृत्य में बेड़नियाँ नाचती हैं और बेड़नी के अभाव में स्त्री-वेशधारी पुरुष नाचते हैं।
- इस नृत्य के साथ फागें गाई जाती हैं। राई के गीत ख्याल, स्वाँग आदि और भी कई प्रकार के होते हैं।
- मृदंग की थाप पर घुंघरुओं की झंकारती राई और उसके साथ नृत्यरत स्वांग न केवल अपढ़ और ग्रामीणों का मनोरंजन करते हैं, बल्कि शिक्षित और सवर्ण भी इसे देखकर आह्लादित हो जाते हैं।
- नाचने वाली बेड़नी के साथ मृदंग बजाने वाला नाचता है और नाचते हुये बेड़नी के समीप जाकर नृत्य करता है।
- राई नृत्य में राई जलती हुई मशाल को लेकर बेड़नी के मुख के पास किये रहता है, जिससे दर्शकों को उसका चेहरा, स्पष्ट भावभंगिमाओं के साथ दिखाई देता है।
- इस कला के पुजारी बुंदेलखंड में बहुत हैं।[1]
- राई नृत्य के साथ यहाँ विशेषतः सुप्रसिद्ध लोक कवि ईसुरी की फागें गाई जाती हैं। ईसुरी की फागों को प्रसिद्धि रंगरेजन नर्तकी और गायक धीरे पण्डा ने दिलाई थी। यहाँ के एक फाग का उदाहरण इस प्रकार है-
'बजरई आधी रात बैरन मुरलिया जा सौत भई।
बन से तू काटी गई, छेदी तोय लुहार।
हरे बांस की बांसुरी मनो निकारो ने सार।
बैरन मुरलिया जा सौतन भई।
पोर-पोर सब तन कटे, हटे न औगुन तौर।
हरे बांस की बांसुरी ले गई चित्त बटौर।
बैरन मुरलिया तू सौत भई।'
- ईसुरी की फागों में न केवल श्रृंगार रस का प्राचुर्य है, अपितु लोकमंगल की भावना के अभिव्यंजक विविध रसों का भी समावेश है[1], जैसे शांत रस-
'बखरी रइयत है भारे की, दई पिया प्यारे की।
कच्ची भींत उठी माटी की, छाई पूस-चारे की।
बेबन्देज, बड़ी बेबाड़ा, जौ में दस द्वारे की।
एकउ नई किवार-किबरियाँ, बिना कुची तारे की।
’ईसुर’ चाये निकारो, जिदनाँ हमें कौन वारे की।'
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 आदिवासियों के लोक नृत्य (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 02 मई, 2014।