वाचिक कविता अवधी -विद्यानिवास मिश्र
वाचिक कविता अवधी -विद्यानिवास मिश्र
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लेखक | विद्यानिवास मिश्र |
मूल शीर्षक | वाचिक कविता अवधी |
प्रकाशक | भारतीय ज्ञानपीठ |
प्रकाशन तिथि | 1 जनवरी, 2005 |
ISBN | 81-263-0788-8 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 96 |
भाषा | हिंदी |
विधा | निबंध संग्रह |
विशेष | विद्यानिवास मिश्र जी के अभूतपूर्व योगदान के लिए ही भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' और 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया था। |
वाचिक कविता अवधी हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार और जाने माने भाषाविद विद्यानिवास मिश्र का निबंध संग्रह है।
सारांश
भारतीय काव्य किसी न किसी रूप में वाचिक संस्कार से अभी तक सुवसित है। कविता की वाचिकता अभी भी है, और वह लोक में आदर भी पाती है। दूसरे शब्दों में, लोक-जीवन से उसका निकट का संबंध है। यह दूसरी बात है कि वाचिकता का जो रिश्ता अनुष्ठान की पवित्रता से था, वह कम भी हुआ है। बहुत कम लोग हैं जो रस लेकर वाचिक काव्य को सुनते हैं। फिर भी, आज के बदलते परिवेश में भी, इसके रंगत बनी रहे, यही ‘वाचिक कविता’- श्रृंखला का प्रयोजन है। इसी श्रृंखला में इस पुस्तक का प्रकाशन किया गया है। प्रख्यात विद्वान डॉ. विद्यानिवास मिश्र द्वारा सम्पादित इस पुस्तक में अवधी की वाचिक परंपरा से जीवन्त-जाग्रत कविताएँ संकलित हैं। ये कविताएँ हृदयस्पर्शी तो हैं ही, अभिव्यक्ति के सलोनेपन के कारण अच्छी से अच्छी, बाँकी से बाँकी कविता के सामने एक चुनौती भी हैं। गीत की दृष्टि से समृद्ध अवधी की वाचिक परम्परा का यह संकलन सर्वथा प्रासंगिक है। भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित ‘वाचिक कविता : भोजपुरी’ श्रृंखला की पहली कड़ी है। इसी श्रृंखला की दूसरी कड़ी के रूप में प्रस्तुत है यह महत्त्वपूर्ण कृति ‘वाचिक कविता : अवधी’ का नया संस्करण।
पुस्तक के कुछ अंश
- सम्पादकीय
वाचिक कविता की दूसरी कड़ी में भोजपुरी के बाद अवधी का संकलन प्रस्तुत है। यह सत्य है कि भोजपुरी, अवधी, मैथिली, बघेली, कन्नौजी के संस्कार-गीतों के पाठ प्राय: एक जैसे हैं। कुछ सूक्ष्म अन्तर अवश्य हैं। वह अन्तर कुछ तो क्षेत्रीय हैं और कुछ नवोन्मेष के कारण हैं। ‘वाचिक कविता:अवधी’ संकलन में प्रयत्न यह किया गया है कि पुनरुक्ति कम हो और एक तरह से यह अवधी वाचिक कविता भोजपुरी की पूरक हो। वाचिक कविता इस मायने में विशिष्ट होती है कि उसकी विम्ब योजना और सादृश्य-योजना में अपने ढंग का टटकापन तो होता ही है-जैसे ‘दिया कै टेम जरै छतिया’- छाती दीपक की बाती की तरह जलती रहती है; या जैसे ‘अखियाँ त उनकै जैसे अमवा कै फँकिया/ ओठवन चुएला गुलाब’- उनकी आँखें जैसे आम की फाँक हों और होंठ ऐसे मानो उनसे गुलाब का रंग टपक रहा हो।
बिम्ब साहचर्य के आधार पर एक-से-एक मनोरम और हृदयस्पर्शी चित्र जैसे यहाँ मिलते हैं वैसे लिखित काव्य-परम्परा में नहीं मिलते। प्रवास में रहने की अवधि को वे इस प्रकार मापते हैं कि प्रिय ने, जब उन्हें रेख उठी थी तो यह पेड़ लगाया था। उसी समय मुझे विवाह करके लाये थे। नीम का पेड़ फल-फूल गया, प्रवासी प्रिय नहीं आये।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाचिक कविता अवधी (हिंदी) pustak.org। अभिगमन तिथि: 9 अगस्त, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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