सोम देव

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सोम वसुवर्ग के देवताओं में हैं ।

आपो ध्रुवश्च सोमश्च धरश्चैवानिलोज्नल: ।
प्रत्यूषश्च प्रभासश्च वसवोज्ष्टौ प्रकीर्तिता: ॥

  • ॠग्वेदीय देवताओं में महत्त्व की दृष्टि से सोम का स्थान अग्नि तथा इन्द्र के पश्चात् तीसरा है । ऋग्वेद का सम्पूर्ण नवाँ मण्डल सोम की स्तुति से परिपूर्ण है । इसमें सब मिलाकर 120 सूक्तों में सोम का गुणगान है । सोम की कल्पना दो रूपों में की गयी है-
  • स्वर्गीय लता का रस
  • आकाशीय चन्द्रमा ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मत्स्य पुराण, 5-21

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