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− | + | '''मंदोदरी''' रामकथा-काव्यों में मन्दोदरी का चरित्र वर्णित हुआ है। | |
− | + | *इसके पिता का नाम मयासुर था तथा माता [[रम्भा]] नामक [[अप्सरा]] थी। | |
− | + | *मन्दोदरी का विवाह [[रावण]] से हुआ था तथा इससे रावण के [[मेघनाद|इन्द्रजित]] नामक पुत्र भी उत्पन्न हुआ था। | |
− | *इसके पिता का नाम मयासुर था तथा माता [[रम्भा]] नामक अप्सरा थी। | + | *मंदोदरी [[पंचकन्या|पंचकन्याओं]] में से एक थी। |
− | *मन्दोदरी का विवाह [[रावण]] से हुआ था तथा इससे रावण के [[इन्द्रजित]] नामक पुत्र भी उत्पन्न हुआ था। | + | <blockquote>अहल्या द्रौपदी तारा कुंती मंदोदरी तथा। <br /> |
− | * | + | पंचकन्या: स्मरेतन्नित्यं महापातकनाशम्॥<ref>[[ब्रह्म पुराण]] 3.7.219</ref></blockquote> |
− | + | ==रामचरितमानस में मंदोदरी== | |
− | + | *मन्दोदरी एक ऐसी रानी है, जिसने यथा समय नीति के अनुसार रावण को समझाने की चेष्टा की । वह राम की शूरवीरता से परिचित थीं अतः उसने कहा- | |
− | + | अति बल मधु कैटभ जेहि मारे । महाबीर दितिसुत संघारे ।। | |
− | + | जेंहि बलि बाँधि सहसभुजमारा । सोई अवतरेउ हरन महि मारा।।<ref>[[रामचरितमानस]], लंकाकांड, पृ. 761-62</ref> | |
− | < | + | *उसने रावण को अनेक तरह से समझाया, पर रावण अपनी हठ पर अड़ा रहा । ऐसी स्थिति में उसने भी यह मान लिया था कि उसका प्रति काल के वश में है अतः उसे अभिमान हो गया है, यथा- |
− | + | नाना विधि तेहि कहेसि बुझाई । सभाँ बहोरि बैठ सो जाई ।। | |
− | {{रामायण}} | + | मन्दोदरी हृदय अस जाना । काल बस्य उपजा अभिमाना ।।<ref>रामचरितमानस, लंकाकांड, पृ. 763</ref> |
+ | *मन्दोदरी राजनीति की विशारद् और राज-काज की सहायिका भी थी । उसने नगरवासियों के विचारों को जानने के लिए दूतियों तक को नियुक्त कर रखा था । समय की प्रतिकूलता को जानकर ही उसने रावण को समझाने का प्रयास किया था, पर रावण की हठ के कारण वह असफल रही । | ||
+ | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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+ | ==संबंधित लेख== | ||
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10:30, 19 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण
मंदोदरी रामकथा-काव्यों में मन्दोदरी का चरित्र वर्णित हुआ है।
- इसके पिता का नाम मयासुर था तथा माता रम्भा नामक अप्सरा थी।
- मन्दोदरी का विवाह रावण से हुआ था तथा इससे रावण के इन्द्रजित नामक पुत्र भी उत्पन्न हुआ था।
- मंदोदरी पंचकन्याओं में से एक थी।
अहल्या द्रौपदी तारा कुंती मंदोदरी तथा।
पंचकन्या: स्मरेतन्नित्यं महापातकनाशम्॥[1]
रामचरितमानस में मंदोदरी
- मन्दोदरी एक ऐसी रानी है, जिसने यथा समय नीति के अनुसार रावण को समझाने की चेष्टा की । वह राम की शूरवीरता से परिचित थीं अतः उसने कहा-
अति बल मधु कैटभ जेहि मारे । महाबीर दितिसुत संघारे ।। जेंहि बलि बाँधि सहसभुजमारा । सोई अवतरेउ हरन महि मारा।।[2]
- उसने रावण को अनेक तरह से समझाया, पर रावण अपनी हठ पर अड़ा रहा । ऐसी स्थिति में उसने भी यह मान लिया था कि उसका प्रति काल के वश में है अतः उसे अभिमान हो गया है, यथा-
नाना विधि तेहि कहेसि बुझाई । सभाँ बहोरि बैठ सो जाई ।। मन्दोदरी हृदय अस जाना । काल बस्य उपजा अभिमाना ।।[3]
- मन्दोदरी राजनीति की विशारद् और राज-काज की सहायिका भी थी । उसने नगरवासियों के विचारों को जानने के लिए दूतियों तक को नियुक्त कर रखा था । समय की प्रतिकूलता को जानकर ही उसने रावण को समझाने का प्रयास किया था, पर रावण की हठ के कारण वह असफल रही ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ब्रह्म पुराण 3.7.219
- ↑ रामचरितमानस, लंकाकांड, पृ. 761-62
- ↑ रामचरितमानस, लंकाकांड, पृ. 763