अबरन कौं क्या बरनिये -कबीर
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अबरन कौं क्या बरनिये, मोपै बरनि न जाइ। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! जो अवर्णनीय है उसका वर्णन कैसे हो सकता है? मेरे लिए उसका वर्णन सम्भव नहीं है। वह वर्णन से परे है। लोग अनेक कोशिश करके थक गए किन्तु उसका वर्णन करने में असफल ही रहे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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