आचार्य विश्वनाथ
आचार्य विश्वनाथ संस्कृत काव्य शास्त्र के मर्मज्ञ और आचार्य थे। इनका पूरा नाम 'आचार्य विश्वनाथ महापात्र' था। आचार्य मम्मट के प्रसिद्ध ग्रंथ 'काव्यप्रकाश' की इन्होंने 'काव्यप्रकश दर्पण' नाम से टीका भी लिखी थी। आचार्य विश्वनाथ रस को साहित्य की आत्मा मानने वाले पहले संस्कृत आचार्य थे। 'साहित्य दर्पण' में उनका सूत्र वाक्य "रसात्मकं वाक्यं काव्यम्" आज भी साहित्य का मूल माना जाता है।
परिचय
आचार्य विश्वनाथ ने 'साहित्य दर्पण' के प्रथम परिच्छेद की पुष्पिका में जो विवरण दिया है, उसके आधार पर उनके पिता का नाम चंद्रशेखर और पितामह का नाम नारायणदास था। महापात्र उनकी उपाधि थी। वे कलिंग के रहने वाले थे। उन्होंने अपने को 'सांधिविग्रहिक', 'अष्टादशभाषावारविलासिनीभुजंग' कहा है, पर किसी राजा के राज्य का नामोल्लेख नहीं किया है। 'साहित्य दर्पण' के चतुर्थ परिच्छेद में अलाउद्दीन ख़िलजी का उल्लेख पाए जाने से ग्रंथकार का समय अलाउद्दीन के बाद या समान संभावित है। जंबू की हस्तलिखित पुस्तकों की सूची में 'साहित्य दर्पण' की एक हस्तलिखित प्रति का उल्लेख मिलता है, जिसका लेखन काल 1384 ई. है, अत: 'साहित्य दर्पण' के रचयिता का समय 14वीं शताब्दी ठहरता है।
कृतियाँ एवं महत्त्व
रस को साहित्य की आत्मा मानने वाले आचार्य विश्वनाथ पहले संस्कृत आचार्य थे। 'साहित्य दर्पण' में उनका सूत्रवाक्य "रसात्मकं वाक्यं काव्यम्" आज भी साहित्य का मूल माना जाता है और बार बार उद्धृत किया जाता है। साहित्य में रस की स्थापना करने वाले उनके इस दर्शन को विश्वव्यापी ख्याति मिली और इस ग्रंथ का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। 'साहित्य दर्पण' और 'काव्य प्रकाश' की टीका के अतिरिक्त विश्वनाथ द्वारा अनेक काव्यों की भी रचना भी की गई है, जिनका पता 'साहित्य दर्पण' और 'काव्यप्रकाश दर्पण' से लगता है। उनकी कुछ कृतियों के नाम निम्न प्रकार हैं-
- राघव विलास
- संस्कृत महाकाव्य
- कुवलयाश्वचरित्
- प्राकृत भाषाबद्ध काव्य
- नरसिंहविजय
- संस्कृत काव्य
- 'प्रभावतीपरिणय' और 'चंद्रकला' नाटिका तथा 'प्रशस्ति रत्नावली' जो सोलह भाषाओं में रचित करंभक है, का उल्लेख इन्होंने स्वयं किया है।
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