आज के हिन्दी कवि अज्ञेय - विद्यानिवास मिश्र
आज के हिन्दी कवि अज्ञेय - विद्यानिवास मिश्र
| |
लेखक | विद्यानिवास मिश्र |
मूल शीर्षक | आज के हिन्दी कवि-अज्ञेय |
प्रकाशक | राजपाल एंड संस |
प्रकाशन तिथि | 19 सितम्बर, 2003 |
ISBN | 81-7028-401-5 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 144 |
भाषा | हिंदी |
विधा | निबंध संग्रह |
विशेष | विद्यानिवास मिश्र जी के अभूतपूर्व योगदान के लिए ही भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' और 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया था। |
आज के हिन्दी कवि अज्ञेय हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार और जाने माने भाषाविद विद्यानिवास मिश्र द्वारा रचित निबंध संग्रह है। इस पुस्तक में प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' के व्यक्तित्व और कृतित्व की व्याख्या की गई है।
सारांश
आधुनिक हिन्दी कविता पर ‘अज्ञेय’ की अद्वितीय काव्य-प्रतिभा की गहरी छाप है। प्रयोगवाद तथा नई कविता को साहित्-जगत् में प्रतिष्ठित करने का श्रेय ‘अज्ञेय’ को ही है। प्रतिभासम्मपन्न कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित निबन्धाकार, सम्पादक और सफल अध्यापक ‘अज्ञेय’ ने जो कुछ लिखा वह अपने ढंग का अनूठा है। अज्ञेय की रचनाओं समकालीन साहित्य को गहराई से प्रभावित किया। एक महत्त्वपूर्ण साहित्यकार के साथ ही ‘अज्ञेय’ एक अच्छे चित्रकार और सत्यान्वेषी पर्यटक भी थे। उन्होंने अग्र राजनीति में भी भाग लिया और क्रान्तिकारी आन्दोलन में कई बार लम्बी और कष्टमय जेल यात्राएं की हैं। दो बार अमरीका के केलिफोर्निया विश्वविद्यालय में भारतीय संस्कृति के अध्यापन का कार्य किया। फिर प्रसिद्ध साप्ताहिक ‘दिनमान’ का आरंभ और सम्पादन किया। फिर दो वर्ष ‘नवभारत टाइम्स’ के सम्पादक रहे। 1971-72 में जोधपुर विश्वविद्यालय में निदेशक पद पर कार्य किया। फिर ‘एव्रीमैन्स’ साप्ताहिक के संपादक रहे। 1976 में आप हाइटेलबर्ग विश्वविद्यालय के निमंत्रण पर जर्मनी गए। 1980 में आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। लेकिन मुख्य रूप से अज्ञेय’ कवि ही हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उनकी महत्त्वपूर्ण कविताएं संकलित हैं। साथ ही विद्वान् संपादक ने, जो कवि के अन्तरंग मित्र रहे, ‘अज्ञेय’ के जीवन और व्यक्तित्व का भी विस्तृत परिचय दिया है।
परिचय
हिन्दी कविता के इतिहास में 'अज्ञेय' का नाम इस प्रकार दुर्निवार बन गया है कि जो लोग इस नाम को निकालना भी चाहते हैं वे भी इसी नाम को भूल नहीं पाते। 1936-37 के आसपास हिन्दी की एक मान्य पत्रिका में यह आदेश दिया गया था कि ‘अज्ञेय’ की कहानी बिना देखे छापो, पर कविता अच्छी भी लगे तो नहीं; और सन् 1965 के अन्त में यह स्थिति है कि रूढ़िवादी आलोचक अज्ञेय के कवित्व को बहुत ननु-नच के साथ स्वीकार करने को तैयार हैं और नया कवि भी अपने को विच्छिन्न मानने में ही गौरव समझता है, पर हकीकत यह है कि यह नाम सबके ऊपर छाया हुआ है; इस नाम में ऐसा कुछ आतंक है, अज्ञेय के व्यक्तित्व और कृतित्व में ऐसा वैविध्य और ऐसी ढलाई है कि उसे वे नकार नहीं पाते। दुर्भाग्यवश या सौभाग्यवश मैं इस नाम से आतंकित कभी नहीं रहा। मेरे लिए उन का व्यक्तित्व कभी न तो बिजली का-सा धक्का देने वाला रहा है और न गुरूता का भार ही बनने वाला रहा है। मैंने उन्हें जब से जाना है, तब से भाई के रूप में जाना है और ऐसे भाई के रूप में जो भाई का अधिकार बिलकुल न जानता हो।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आज के हिन्दी कवि अज्ञेय (हिंदी) pustak.org। अभिगमन तिथि: 7 अगस्त, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख