आज नयन के बँगले में, संकेत पाहुने आये री सखि! जी से उठे, कसक पर बैठे, और बेसुधी- के बन घूमें, युगल-पलक ले चितवन मीठी, पथ-पद-चिह्न चूम, पथ भूले, दीठ डोरियों पर माधव को। बार-बार मनुहार थकी मैं, पुतली पर बढ़ता-सा यौवन, ज्वार लुटा न निहार सकी मैं ! दोनों कारागृह पुतली के, सावन की झर लाये री सखि! आज नयन के बँगले में, संकेत पाहुने आये री सखि !