आर. के. स्टूडियो

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आर. के. स्टूडियो
आर. के. स्टूडियो
आर. के. स्टूडियो
स्थापना 1948
संस्थापक राज कपूर
उद्योग फ़िल्म निर्माण
मुख्यालय चेम्बुर, मुंबई
संबंधित लेख राज कपूर, रणधीर कपूर, ऋषि कपूर, राजीव कपूर
अन्य जानकारी इस स्टूडियो में फ़िल्मों के कलाकारों द्वारा पहनी जाने वाली हर पोशाक को एक अलग कमरे में सुरक्षित रखा गया था। यही नहीं फ़िल्मों में इस्तेमाल की गई कुछ आइकोनिक चीज़ों को भी सहेज कर रखा गया था।

आर. के. स्टूडियो (अंग्रेज़ी: R. K. Studio) की स्थापना सन 1948 में 'द शो मैन' कहे जाने वाले राज कपूर ने की थी। उन्होंने अपना प्रोड्क्शन हाऊस खोलने के साथ ही साथ आर. के. स्टूडियो भी खोला था। आर. के. स्टूडियो की पहली फ़िल्म 'आग' थी। इसके अलावा 'बरसात', 'आवारा', 'श्री 420', 'मेरा नाम जोकर', 'सत्यम शिवम सुंदरम' और 'आ अब लौट चलें' जैसी फ़िल्मों के निशां यहां बाकी हैं।

राज कपूर का निर्देशन और संपादन

भारतीय सिनेमा के इतिहास का सबसे बड़ा शो मैन, महान् कलाकार और निर्माता-निर्देशक राज कपूर ने आर. के. फिल्म्स की स्थापना करके इस बैनर की पहली फ़िल्म 'आग' रिलीज़ की। राज कपूर स्वयं एक मंझे हुए अभिनेता थे, जिन्होंने फ़िल्म निर्देशन, निर्माण संबंधी संयोजन कौशल को अपने पिता पृथ्वीराज कपूर से ग्रहण किया था। उन्हें विरासत में नाट्यकला–कौशल पृथ्वीराज कपूर से प्राप्त हुआ था। पृथ्वी थियेटर में पिता के नेतृत्व में छोटे-छोटे कामों को करते, सीखते हुए वे एक महान् कलाकार बने थे। अभिनय के साथ-साथ, निर्देशन और संपादन कला में भी वे पारंगत थे। इसीलिए उनके द्वारा निर्मित सारी फ़िल्मों का निर्देशन और संपादन वे स्वयं करते थे।[1]

यथार्थपूर्ण फ़िल्मों का निर्माण

आर. के .स्टूडियो

राज कपूर के लिए फ़िल्म में गीत और संगीत का महत्व अत्यधिक हुआ करता था। विषय एवं कथा चयन में वे सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना को प्राथमिकता देते थे। सामान्य और निम्न वर्ग के सपनों को उन्होंने देश के नवनिर्माण की स्थितियों से जोड़कर यथार्थपूर्ण फ़िल्मों का निर्माण किया। उनकी प्रारम्भिक फ़िल्में अधिकतर निम्न वर्ग और निम्न मध्य वर्ग के भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों के प्रति सुधारवादी दृष्टि को प्रस्तुत करती हैं। इन फ़िल्मों में मानवीय संवेदनाएँ एवं स्त्री-पुरुष संबंधों के आधुनिक स्वरूप को बदलते भारतीय परिदृश्य में कलात्मक ढंग से प्रदर्शित किया गया था।

प्रमुख फ़िल्में

राज कपूर द्वारा निर्मित 'आग', 'जागते रहो', 'बरसात', 'आवारा', 'श्री 420', 'जिस देश में गंगा बहती है', 'आशिक', 'संगम', 'मेरा नाम जोकर', 'कल आज और कल', 'धरम करम' तक की फ़िल्मों में उन्होंने स्वयं नायक की भूमिका की थी। फ़िल्म 'बॉबी' के साथ राज कपूर ने पुत्र ऋषि कपूर को अपने निर्देशन में बनी फ़िल्मों में नायक के रूप में हिंदी सिनेमा में प्रवेश दिलाया। 'हिना', 'राम तेरी गंगा मैली' और 'आ अब लौट चलें' फ़िल्में राज कपूर के बाद आर. के. बैनर की शेष फ़िल्में हैं, जिनमें उनके पुत्र रणधीर कपूर ने भी निर्देशन का दायित्व सँभाला। आर. के. स्टूडियो और निर्माण संस्था आज भी मौजूद है, किन्तु अब वह उस भव्यता और सक्रियता से दूर हो चुका है।

राज कपूर के अरमानों और सपनों का महल

आर. के .स्टूडियो

बॉलीवुड के 'शो मैन' राज कपूर के अरमानों और सपनों का महल आर.के. स्टूडियो कभी बॉलीवुड की भी जान हुआ करता था। इस स्टूडियो में केवल राज कपूर के होम प्रोडक्शन की फिल्में ही नहीं, बल्कि अन्य बैनर की फिल्में भी बनती थीं। इस स्टूडियो में राज कपूर होली का विशेष आयोजन करते थे, जिसमें पूरा बॉलीवुड शामिल होता था। राज कपूर की मौत के बाद आर.के. स्टूडियो भी उदास हो गया था और 2017 में लगी आग ने स्टूडियो की सांसे भी छीन ली थीं। बाद में कपूर खानदान ने राज कपूर की इस निशानी को बेच दिया।[2]

बॉलीवुड के शोमैन राज कपूर ने ये स्टूडियो 1948 में खड़ा किया था। राज कपूर का यहां एक विशेष कमरा था, जिसमें बहुत चुनिंदा लोगों को अंदर जाने की इजाजत थी। मुंबई के चेम्बूर में बना आर. के .स्टूडियो केवल ईंट, पत्थर या कंक्रीट का ढांचा नहीं था, बल्कि ये राज कपूर के सपनों का महल था। राज कपूर के लिए ये मंदिर था। प्रतिदिन स्टूडियो में काम शुरू होने से पहले पूजा की जाती थी। राज कपूर के बड़े बेटे रणधीर कपूर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि राज साहब ने कहा था कि जब वह मरें तो उन्हें उनके स्टूडियो में ले आना, संभव है कि उस रोशनी की चमक के बीच वह फिर से उठ जाएं और चिल्लाएं- एक्शन, एक्शन।

साल 1946 में आई फ़िल्म 'वाल्मीकि' में राज कपूर ने 'नारद मुनि' का किरदार निभाया था। फ़िल्म भालजी पेंढारकर ने निर्देशित की थी। उन्होंने राज कपूर को पैसे देने चाहे, लेकिन पृथ्वीराज कपूर ने इंकार कर दिया। तब पैसे की जगह भालजी ने राज कपूर ने नाम चेम्बूर में कुछ ज़मीन कर दी थी। स्टूडियो के मुख़्य गेट पर बना चिह्न दरसल फ़िल्म 'बरसात' का वो सीन है जब नरगिस राज कपूर की बांहों में आकर गिर जाती हैं। साल 1988 में राज कपूर की मौत हुई और वह अपने सपनों का महल अपने बेटे के हवाले कर दुनिया छोड़ गए।

इस स्टूडियो में फ़िल्मों के कलाकारों द्वारा पहनी जाने वाली हर पोशाक को एक अलग कमरे में सुरक्षित रखा गया था। यही नहीं फ़िल्मों में इस्तेमाल की गई कुछ आइकोनिक चीज़ों को भी सहेज कर रखा गया था। 'जिस देश में गंगा बहती है' फ़िल्म से 'डफ़ली', 'श्री 420' से 'जूते और कोट' या फिर फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' का जोकर। 2017 में आर.के. स्टूडियो में आग लगी और सब कुछ जल कर राख हो गया था। बाद में कपूर खानदान ने आर.के. स्टूडियो को बेच दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी सिनेमा के विकास में फ़िल्म निर्माण संस्थाओं की भूमिका (हिंदी) sahityakunj.net। अभिगमन तिथि: 05 जुलाई, 2017।
  2. Error on call to Template:cite web: Parameters url and title must be specified (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 06 अप्रॅल, 2021।

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