आशा पारेख
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पूरा नाम | आशा पारेख |
जन्म | 2 अक्टूबर, 1942 |
जन्म भूमि | महुआ, गुजरात |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | अभिनय |
मुख्य फ़िल्में | 'मैं तुलसी तेरे आँगन की', 'फिर वही दिल लाया हूँ', 'कटी पतंग', 'मौसम', 'कन्यादान', 'आन मिलो सजना', 'तीसरी मंजिल', 'लव इन टोक्यो', 'मेरा गाँव मेरा देश', 'आया सावन झूम के', 'बिन फेरे हम तेरे', 'उपकार' आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | फ़िल्म फेयर अवार्ड (1970) पद्मश्री (1992) |
प्रसिद्धि | फ़िल्म अभिनेत्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | आशा पारेख ने फ़िल्म 'आसमान' (1952) में एक बाल कलाकार की भूमिका से अपने फ़िल्मी कैरियर को शुरू किया था। |
आशा पारेख (जन्म- (अंग्रेज़ी: Asha Parekh, जन्म- 2 अक्टूबर, 1942, महुआ, गुजरात) भारतीय हिन्दी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री, निर्देशक और निर्माता हैं। वह 1959 से 1973 तक हिन्दी फ़िल्मों की शीर्ष अभिनेत्रियों में से एक रही हैं। 60 के दशक में अपनी अभिनय प्रतिभा से सभी को अचम्भित कर देने वाली अभिनेत्री आशा पारेख ने शम्मी कपूर, शशि कपूर, धर्मेन्द्र, देवानंद, अशोक कुमार, सुनील दत्त और राजेश खन्ना जैसे मंझे हुए कलाकारों के साथ काम किया। अपने लम्बे फ़िल्मी कैरियर में आशा पारेख ने विभिन्न भूमिकाएँ निभाईं। संजीदा अभिनेत्री के तौर पर अपनी एक अलग पहचान बनाने वाली आशा पारेख को शास्त्रीय नृत्य में भी दक्षता प्राप्त हैं। उन्हें 30 सितम्बर, 2022 को भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
जन्म तथा परिवार
आशा पारेख का जन्म 2 अक्टूबर, 1942 को एक मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था। उनके पिता हिन्दू और माता मुस्लिम थीं। इनकी माता एक सामाजिक कार्यकर्ता और आज़ादी के आन्दोलन में सक्रिय थीं। आशा पारेख का पारिवारिक माहौल बेहद धार्मिक था। विभिन्न धर्मों से संबंध होने के बावजूद उनके माता-पिता साईं बाबा के भक्त थे। छोटी-सी आयु में ही आशा जी भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने लगी थीं।
शिक्षा
बचपन से ही आशा जी को नृत्य का बेहद शौक़ था। पड़ोस के घर में जब भी संगीत बजता, तो घर में उनके पैर थिरकने लगते थे। बाद में उनकी माँ ने कथक नर्तक मोहनलाल पाण्डे से उन्हें प्रशिक्षण दिलवाया। बड़ी होने पर पण्डित गोपीकृष्ण तथा पण्डित बिरजू महाराज से 'भरतनाट्यम' में भी उन्होंने कुशलता प्राप्त की।
फ़िल्मों में प्रवेश
आशा पारेख ने फ़िल्म 'आसमान' (1952) में एक बाल कलाकार के रूप कार्य करके अपने फ़िल्मी कैरियर को शुरू किया। इस फ़िल्म के बाद से उन्हें 'बेबी आशा पारेख' के रूप में पहचान मिलने लगी। एक स्टेज प्रोग्राम में आशा पारेख के नृत्य से प्रभावित होकर निर्देशक विमल रॉय ने बारह वर्ष की आयु में आशा पारेख को अपनी फ़िल्म 'बाप-बेटी' में ले लिया। इस फ़िल्म को कुछ ख़ास सफलता प्राप्त नहीं हुई। इसके अलावा उन्होंने और भी कई फ़िल्मों में बाल कलाकार की भूमिका निभाई। आशा पारेख ने फ़िल्मी दुनियाँ में कदम रखते ही स्कूल जाना छोड़ दिया था।
सफलता की प्राप्ति
सोलह वर्ष की आयु में आशा पारेख ने दोबारा फ़िल्मी जगत् में जाने का निर्णय लिया, लेकिन फ़िल्म 'गूँज उठी शहनाई' के निर्देशक विजय भट्ट ने आशा जी की अभिनय प्रतिभा को नजरअंदाज़करते हुए उन्हें फ़िल्म में लेने से इनकार कर दिया। लेकिन अगले ही दिन फ़िल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने अपनी आगामी फ़िल्म 'दिल देके देखो' में आशा पारेख को शम्मी कपूर की नायिका की भूमिका में चुन लिया। यह फ़िल्म आशा पारेख और नासिर हुसैन को एक दूसरे के काफ़ी नजदीक ले आई थी। नासिर हुसैन ने उन्हें अपनी अगली छ: फ़िल्मों, 'जब प्यार किसी से होता है', 'फिर वही दिल लाया हूँ', 'तीसरी मंजिल', 'बहारों के सपने', 'प्यार का मौसम' और 'कारवाँ' में भी नायिका की भूमिका में रखा।
ख़ूबसूरत और रोमांटिक अदाकारा के रूप में लोकप्रिय हो चुकी आशा पारेख को निर्देशक राज खोसला ने 'दो बदन', 'चिराग', 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' जैसी फ़िल्मों में एक संजीदा अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया। इसी सुची में निर्देशक शक्ति सामंत ने 'कटी पतंग', 'पगला कहीं का' के द्वारा आशा पारेख की अभिनय प्रतिभा को और विस्तार दे दिया। आशा जी ने गुजराती और पंजाबी फ़िल्मों में भी अभिनय किया।
समकालीन अभिनेता
नासिर हुसैन के अलावा दूसरे बैनर्स में काम करने से आशा पारेख की छवि बदलने लगी थी। उन्हें सीरियसली लिया जाने लगा था। राज खोसला निर्देशित 'मैं तुलसी तेरे आंगन की', 'दो बदन' और 'चिराग' तथा शक्ति सामंत की 'कटी पतंग' ने उन्हें गंभीर भूमिकाएँ करने तथा अभिनय प्रतिभा दिखाने के अवसर प्रदान किए। इन सफलताओं ने आशा जी को शोहरत की बुलन्दियों पर पहुँचा दिया था। शम्मी कपूर, राजेश खन्ना, मनोज कुमार, राजेंद्र कुमार, धर्मेन्द्र और जॉय मुखर्जी जैसे उस दौर के मशहूर सितारों के साथ आशा पारेख ने काम किया। शम्मी कपूर के साथ उनकी कैमिस्ट्री खूब जमी और फ़िल्म 'तीसरी मंजिल' ने तो कई रिकॉर्ड क़ायम किए। आशा जी की समकालीन अभिनेत्री नंदा, माला सिन्हा, सायरा बानो, साधना आदि एक-एक कर गुमनामी के अंधेरे में खो गईं, लेकिन आशा जी अपनी समाज सेवा तथा इतर कार्यों के कारण लगातार चर्चा में बनी रहीं।
फ़िल्मी पारी का अंत
अपनी माँ की मौत के बाद आशा पारेख के जीवन में एक शून्यता आ गई। वर्ष 1995 में अभिनय से निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने के बाद आशा पारेख ने किसी फ़िल्म में अभिनय नहीं किया। उसे समाज सेवा के ज़रिये भरने की उन्होंने सफल कोशिश की। मुंबई के एक अस्पताल का पूरा वार्ड उन्होंने गोद ले लिया। उसमें भर्ती तमाम मरीजों की सेवा का उन्होंने काम किया और ज़रूरतमंदों की मदद की। फ़िल्मी दुनिया के कामगारों के कल्याण के लिए लंबी लड़ाइयाँ भी उन्होंने लड़ी हैं। 'सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन' की छह साल तक वे अध्यक्ष रहीं। 'केन्द्रीय फ़िल्म प्रमाणन मण्डल', मुंबई की चेयर परसन बनने वाली वह प्रथम महिला हैं।
मुख्य फ़िल्में
आशा पारेख ने अपने लम्बे फ़िल्मी सफर में असंख्य भूमिकाएँ निभाई हैं। उनकी कुछ प्रमुख फ़िल्मों के नाम इस प्रकार हैं-
- दिल दे के देखो - 1959
- घूंघट - 1960
- जब प्यार किसी से होता है - 1961
- घराना - 1961
- छाया - 1961
- फिर वही दिल लाया हूँ - 1963
- मेरे सनम - 1965
- तीसरी मंज़िल - 1966
- लव इन टोक्यो - 1966
- आये दिन बहार के - 1966
- उपकार - 1967
- कन्यादान - 1969
- आया सावन झूम के - 1969
- कटी पतंग - 1970
- आन मिलो सजना - 1970
- मेरा गाँव मेरा देश - 1971
- मैं तुलसी तेरे आंगन की - 1978
- बिन फेरे हम तेरे - 1979
- कालिया - 1981
- मंजिल मंज़िल - 1984
- हमारा खानदान - 1988
- हम तो चले परदेस - 1988
- बँटवारा - 1989
- घर की इज्जत - 1994
- आंदोलन - 1995
पुरस्कार व सम्मान
दादा साहेब फाल्के पुरस्कार
गुजरे जमाने की बेहतरीन अदाकारा आशा पारेख को भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान 'दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से 30 सितम्बर, 2022 को सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विज्ञान भवन में आयोजित 68वें 'राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह' में 79 वर्षीय आशा पारेख को इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया। वरिष्ठ अभिनेत्री ने कहा कि वह अपने 80वें जन्मदिन से एक दिन पहले यह पुरस्कार पाकर धन्य महसूस कर रही हैं। पिछले साल, 2019 के लिए अभिनेता रजनीकांत को 'दादा साहेब फाल्के पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।
दादा साहेब फाल्के कमेटी के सदस्यों में मशहूर गायिका आशा भोंसले, अभिनेत्री हेमा मालिनी, अभिनेत्री पूनम ढिल्लो और गायक उदित नारायण झा शामिल हैं। इन सभी ने मिलकर कमेटी की बैठक की और आशा पारेख को चुना गया। आशा पारेख ने 10 साल की उम्र में ही फिल्मों में काम करना शुरू किया था। उन्होंने सबसे पहले प्रख्यात फिल्म निर्देशक विमल रॉय की 'मां' से बॉलीवुड में कदम रखा। उन्होंने 95 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है।[1]
अन्य सम्मान
आशा पारेख को फ़िल्म 'कटी पतंग' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का 'फ़िल्म फेयर अवार्ड' (1970), 'पद्मश्री' (1992), 'लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड' (2002) में प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त भारतीय फ़िल्मों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें 'अंतरराष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म अकादमी सम्मान' (2006), भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंडल महासंघ (फिक्की) द्वारा 'लिविंग लेजेंड सम्मान' भी दिया गया।
निर्देशन का कार्य
आशा पारेख ने 1990 में गुजराती सीरियल 'ज्योती' के साथ टेलिविजन निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा। 'आकृति' नामक प्रोडक्शन कंपनी की स्थापना करने के बाद आशा जी ने 'कोरा कागज', 'पलाश के फूल', 'बाजे पायल' जैसे सीरियल का निर्माण किया। 1994 से 2001 तक आशा पारेख सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन की अध्यक्षा और 1998-2001 तक 'केन्द्रीय सेंसर बोर्ड' की पहली महिला चेयर परसन रहीं।
अविवाहित
आशा जी ने विवाह नहीं किया है। वह कहती हैं- "यदि शादी हो गई होती तो आज जितने काम वह कर पाई हैं, उससे आधे भी नहीं हो पाते।" वहीदा रहमान, नंदा और आशा, इन तीन सहेलियों की दोस्ती पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री में मशहूर रही है। अपनी नृत्य कला को आशा पारेख ने जन-जन तक फैलाने के लिए हेमा मालिनी एवं वैजयंती माला की तरह नृत्य-नाटिकाएँ 'चोलादेवी' एवं 'अनारकली' तैयार कीं और उनके स्टेज शो पूरी दुनिया में प्रस्तुत किए। उन्हें इस बात का गर्व है कि अमेरिका के लिंकन थिएटर में भारत की ओर से उन्होंने पहली बार नृत्य की प्रस्तुति दी थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दिग्गज अभिनेत्री आशा पारेख को दादा साहेब फाल्के सम्मान (हिंदी) ndtv.in। अभिगमन तिथि: 27 सितंबर, 2021।
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