इहि औसरि चेत्या नहीं -कबीर
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इहि औसरि चेत्या नहीं, पसु ज्यों पाली देह। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! इस मानव-जीवन रूपी सुन्दर अवसर को पाकर भी यदि तूने परमार्थ के विषय में नहीं सोचा और पशुओं के समान केवल देह को पालने में लगा रहा और राम-नाम के महत्व को नहीं पहचाना तो अन्त में तुझे नष्ट होकर मिट्टी में मिल जाना होगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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