एक खड़े ही ना लहैं -कबीर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
| ||||||||||||||||||||
|
एक खड़े ही ना लहैं, और खड़े बिललाइ। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! कुछ दरबार ऐसे होते हैं जहाँ कुछ लोग खड़े रहते हुए भी कुछ पाने से वञ्चित रहते हैं और वहीं खड़े-खड़े बिलखते रहते हैं। परन्तु मेरा प्रभु ऐसा कृपालु है कि वह सोये हुए को भी जगाकर देता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख