ऐलुमिनियम

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ऐलुमिनियम



ऐलुमिनियम की वर्णक्रम रेखाएँ
साधारण गुणधर्म
नाम, प्रतीक, संख्या ऐलुमिनियम, Al, 13
हिन्दी नाम स्फटयातु
समूह, आवर्त, कक्षा 13, 3, p
मानक परमाणु भार 26.9815386g·mol−1
इलेक्ट्रॉन विन्यास 1s2, 2s2 2p6, 3s2 3p1
इलेक्ट्रॉन प्रति शेल 2, 8, 3
भौतिक गुणधर्म
अवस्था ठोस
घनत्व (निकट क.ता.) 2.70 g·cm−3
तरल घनत्व
(गलनांक पर)
2.375 g·cm−3
गलनांक 933.47 K, 660.32 °C, 1220.58 °F
क्वथनांक 2792 K, 2519 °C, 4566 °F
संलयन ऊष्मा 10.71 किलो जूल-मोल
वाष्पन ऊष्मा 294.0 किलो जूल-मोल
विशिष्ट ऊष्मीय
क्षमता
24.200

जूल-मोल−1किलो−1

वाष्प दाब
P (Pa) 1 10 100 1 k 10 k 100 k
at T (K) 1482 1632 1817 2054 2364 2790
परमाण्विक गुणधर्म
ऑक्सीकरण अवस्था 3, 2[1], 1[2]
(उभयधर्मी ऑक्साइड)
इलेक्ट्रोनेगेटिविटी 1.61 (पाइलिंग पैमाना)
आयनीकरण ऊर्जाएँ
(अधिक)
1st: 577.5 कि.जूल•मोल−1
2nd: 1816.7 कि.जूल•मोल−1
3rd: 2744.8 कि.जूल•मोल−1
परमाण्विक त्रिज्या 143 pm
सहसंयोजक त्रिज्या 121±4 pm
वैन्डैर वाल्स त्रिज्या 184 pm
विविध गुणधर्म
क्रिस्टल संरचना केन्द्रीय मुख घनाकार
चुम्बकीय क्रम प्रतिचुम्बकीय
वैद्युत प्रतिरोधकता (20 °C) 28.2 nΩ·m
ऊष्मीय चालकता (300 K) 237 W·m−1·K−1
ऊष्मीय प्रसार (25 °C) 23.1 µm·m−1·K−1
ध्वनि चाल (पतली छड़ में) (r.t.) 5,000 m·s−1
यंग मापांक 70 GPa
अपरूपण मापांक 26 GPa
स्थूल मापांक 76 GPa
पॉयज़न अनुपात 0.35
मोह्स कठोरता मापांक 2.75
विकर्स कठोरता 167 MPa
ब्राइनल कठोरता 245 MPa
सी.ए.एस पंजीकरण
संख्या
7429-90-5
समस्थानिक
समस्थानिक प्रा. प्रचुरता अर्द्ध आयु क्षरण अवस्था क्षरण ऊर्जा
(MeV)
क्षरण उत्पाद
26Al ट्रेस 7.17×105 y β+ 1.17 26Mg
ε - 26Mg
γ 1.8086 -
27Al 100% 27Al 14 न्यूट्रॉन के साथ स्थिर

ऐलुमिनियम (अंग्रेज़ी:Aluminium) एक रासायनिक तत्त्व है जो धातुरूप में पाया जाता है। ऐलुमिनियम का संकेत AI तथा परमाणु संख्या 13 होती है। ऐलुमिनियम का परमाणु भार 26.98 होता है। ऐलुमिनियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2, 2s2 2p6, 3s2 3p1 है। ऐलुमिनियम का हिन्दी नाम 'स्फटयातु ' है।

नामकरण

लैटिन भाषा के शब्द ऐल्यूमेन और अंग्रेजी के शब्द 'ऐलम' का अर्थ फिटकरी है। इस फिटकरी में से जो धातु पृथक् की जा सकी, उसका नाम ऐल्यूमिनियम पड़ा।

प्राप्ति

  • प्रकृति में ऐलुमिनियम स्वतंत्र अवस्था में नहीं पाया जाता है, लेकिन इसके यौगिक काफ़ी मात्रा में मिलते हैं। संयुक्त अवस्था में यह धातु विभिन्न अयस्कों के रूप में पायी जाती हैं।
  • ऐलुमिनियम के मुख्य खनिज, बॉक्साइट, ऐभ्रो, फेलस्पार, लापिस, लाजुली, क्रामोलाइट, ऐलुनाइट, नीलम आदि हैं।
  • ऐलुमिनियम बॉक्साइट, कोरंडम, डायस्पोर, फेलस्पार, अबरख, काओलीन, क्रायोलाइट आदि रूपों में मिलता है।
  • ऐलुमिनियम भू-पर्पटी में सबसे अधिक पाया जाने वाला धातु है। ऑक्सीजन और सिलिकॉन के बाद सबसे अधिक पाया जाने वाला यह तीसरा तत्त्व है।

निष्कर्षण

  • औद्योगिक रूप में ऐलुमिनियम बॉक्साइट से प्राप्त किया जाता है।
  • बॉक्साइट (Al2O3.2H2O) ऐलुमिनियम का मुख्य अयस्क है, जो ऐलुमिनियम के जलयोजित ऑक्साइड के रूप में पाया जाता है। चूँकि यह अयस्क सर्वप्रथम फ्रांस के बॉक्स नामक स्थान पर पाया गया था, इसलिए इस अयस्क का नाम बॉक्साइट रखा गया।
  • ऐलुमिनियम धातु का निष्कर्षण मुख्यतः बॉक्साइट अयस्क से विद्युत अपघटन विधि द्वारा किया जाता है। बॉक्साइट का रासायनिक नाम हाइड्रेटेड एलुमिना है। बॉक्साइट के वैद्युत अपघटन में क्रायोलाइट (3NaF.AlF3) का उपयोग बॉक्साइट को कम ताप पर घुलने हेतु किया जाता है।
  • बॉक्साइट अयस्क बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश में पाया जाता है। भारत में ऐल्युमिनियम कार्पोरेशन ऑफ़ इण्डिया, इण्डियन ऐलुमिनियम कम्पनी आदि इसके प्रमुख निष्कर्षण केन्द्र हैं।

भौतिक गुण

रासायनिक गुण

  • तनु या सान्द्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में घुलकर ऐलुमिनियम हाइड्रोजन गैस देता है एवं ऐलुमिनियम क्लोराइड बनता है।
  • ऐलुमिनियम, तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ धीरे-धीरे प्रतिक्रिया कर यह हाइड्रोजन गैस देता है।
  • यह सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म किये जाने पर ऐलुमिनियम सल्फेट बनता है और SO2 गैस बाहर निकलती है।
  • सोडियम हाइड्रॉक्साइड या पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड में यह घुलकर ऐलुमिनेट लवण बनाता है, एवं H2 गैस बाहर निकलती है।
  • यह हैलोजन से संयोग कर हैलाइड बनाता है।
  • यह नाइट्रोजन के साथ प्रतिक्रिया कर ऐलुमिनियम नाइट्राइड बनाता है।

उपयोग

  1. ऐलुमिनियम तथा इसकी मिश्रधातु वायुयान, मोटर आदि बनाने में व्यवह्रत होती है।
  2. ऐलुमिनियम घरेलू बर्तन बनाने में प्रयुक्त होता है।
  3. ऐलुमिनियम के तार विद्युत संचालन में प्रयुक्त होते हैं।
  4. लोहा (Fe), मैंगनीज (Mn) आदि धातुओं के ऑक्साइडों को धातु में अवकृत करने में यह प्रयुक्त होता है।
  5. इन मिश्र धातुओं में वाई मिश्रधातु, मैग्नेलियम का प्रयोग वायुयान आदि बनाने में किया जाता है।
  6. ऐलुमिनियम ब्रांज (ऐलुमिनियम+तांबा) से बर्तन व सिक्के बनाये जाते हैं।
  7. ऐलुमिनियम का अन्य उपयोग चादरें ऐलुमिनियम पाउडर, पेंट, सिगरेट व टॉफी की चमकीली पन्नी आदि बनाने में होता है।

ऐलुमिनियम की मिश्रधातुएँ

ऐलुमिनियम लगभग सभी धातुओं के साथ संयुक्त होकर मिश्र धातुएँ बनाता है, जिनमें से तांबा, लोहा, जस्ता, मैंगनीज, मैग्नीशियम, निकिल, क्रोमियम, सीसा, बिसमथ और वैनेडियम मुख्य हैं। मिश्रधातुएँ दो प्रकार के काम की हैं- पिटवाँ और ढलवाँ।

ढलवाँ

तांबा 8%, लोहा 1%, सिलिकॉन 1.2%, ऐल्यूमिनियम 89.8% ।

पिटवाँ

ताँबा 0.9%, सिलिकॉन 12.5%, मैगनीशियम 1.0 %, निकिल 0.9%, ऐल्यूमिनियम 84.7%।

धातु प्रतिशत निर्माण
ऐलुमिनियम ब्रांज Cu (90%), Al (10%) बरतन, सिक्का आदि
मैग्नेलियम Mg (2%), Al (95-96%), Cu-Fe (2- 3%) वायुयान
निकलॉय Al (95%), Cu (4%), Ni (1%) वायुयान
ड्यूरेलुमिन Cu (4%), Mn (0.5%), Mg (0.4%), Al (95%) प्रेशर कुकर वायुयान आदि

ऐलुमिनियम के यौगिक

ऐलुमिनियम क्लोराइड

ऐलुमिनियम क्लोराइड का उपयोग उत्प्रेरक के रूप में फ्रिडल क्राफ्ट प्रतिक्रिया में व्यापक तौर पर होता है। यह गैसोलिन के उत्पादन में भी उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त होता है। पेट्रोलियम के भंजन में अनार्द्र ऐलुमिनियम क्लोराइड का प्रयोग होता है।

ऐलुमिना

ऐलुमिना प्रकृति में बॉक्साइट, कोरंडम, नीलम आदि कई रूपों में पाया जाता है। बड़े पैमाने पर यह बॉक्साइट अयस्क से तैयार किया जाता है। यह सफ़ेद तथा बेरवेदार चूर्ण होता है, जो जल में घुलनशील है। यह एक उभयधर्मी ऑक्साइड है। अतः यह अम्ल और क्षार दोनों से प्रतिक्रिया करता है। इसका उपयोग कृत्रिम रत्न बनाने में, ऐलुमिनियम धातु बनाने में, ऐलुमिनियम के अन्य लवणों के निर्माण में, उत्प्रेरक के रूप में तथा भट्ठियों में अस्तर लगाने के काम में होता है।

पोटाश एलम

पोटाश एलम का रासायनिक नाम पोटैशियम ऐलुमिनियम सल्फेट होता है। पोटाश एलम का रासायनिक सूत्र K2SO4. Al2(SO4)3.24H2O होता है। यह एक द्विक लवण है। इसका उपयोग रक्त प्रवाह रोकने में, काग़ज़ एवं चमड़ा उद्योग में, जल को मृदु बनाने आदि में होता है।

ऐलुमिनियम कार्बाइड

ऐलुमिनियम कार्बाइड (Al4C3) को मिथेनाइड कहते हैं। ऐलुमिनियम कार्बाइड पर जल की प्रतिक्रिया से मिथेन गैस बनती है।

ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड

कपड़ों को अदाहय बनाने तथा जलरोधी कपड़े तैयार करने में ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड [Al(OH)3] का प्रयोग किया जाता है।

ऐलुमिनियम सल्फेट

Al2(SO4)318H2O को हेयर सॉल्ट कहते हैं। ऐलुमिनियम सल्फेट [Al2(SO4)3] का प्रयोग कपड़ों की छपाई और रंगाई में रंगबंधक के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग फिटकरी बनाने में भी होता है।

बौक्साइट–आजकल ऐल्यूमिनियम का सर्वाधिक सामान्य अयस्क बौक्साइट है। बौक्साइट वाणिज्य स्तर पर मुख्यत: इस कारण प्रयुक्त होता है कि इसमें ऐल्यूमिनियम के जलयुक्त (हाइड्रेटेड) आक्साइड होते हैं, जिससे अल्प व्यय एवं सुगमता से ऐल्यूमिना प्राप्त किया जा सकता है। बौक्साइट में तीन जलयुक्त आक्साइड पहचाने गए हैं :

बोकमाइट : ऐल्फ़ा मोनोहाइड्रेट, जिसमें ऐल्यूमिना 85.01% हैं डायसपोर : बीटा मोनोहाइड्रेट, जिसमें ऐल्यूमिना 85.01% हैं गिबसाइट : ऐल्फ़ा ट्राइहाइड्रेट, जिसमें ऐल्यूमिना 65.41% हैं

बौक्साइट एक यथार्थशिला है जा उपरिष्ठ विघटन (सुपरफ़िशल डिकंपोज़िशन) की विधि द्वारा उत्पन्न हुई है। फलत: ऐल्यूमिनियम के अतिरिक्त इसमें लौह तथा टाइटेनियम के आक्साइड भी रहते हैं, जो जलयुक्त मिश्रण के अवशिष्ट संचयन (ऐक्युमुलेशन) का रूप धारण करते हैं। इसमें सिलिका तथा प्रांगारिक पदार्थो की भी कुछ मात्रा रहती है।

भारत के सभी बौक्साइट निक्षेप लैटराइट प्रकार के हैं और उनमें से अधिकांश बेसाल्ट लावा के ऋतुक्षरण द्वारा उत्पन्न हुए हैं। प्राथमिक बौक्साइट साधारणत: ऊँचे मैदानों (प्लेटो) अथवा छोटे सपाट श्रृंगशैलों के टोप के रूप में प्राप्त होता है।

अत्याधुनिक अनुमानों के अनुसार सारे विश्व में बौक्साइट का भांडार दो अरब टन आँका गया है। किंतु इस अनुमान को यदि वास्तविकता से कम कहा जाए तो भी अतिशयोक्ति न होगी, क्योंकि यह भांडार इतना प्रचुर है कि भविष्य में किसी भी आवश्यकता की पूर्ति कर सकने में समर्थ होगा।

भारतीय भूतात्विक समीक्षा द्वारा किए गए आँकड़ों के अनुसार भारत में बौक्साइट का भांडार 20-25 करोड़ टन का है, जिसमें सभी श्रेष्ठताओं का बौक्साइट संमिलित है। यह अनुमान भी अब अविश्वसनीय प्रतीत होने लगा है, क्योंकि संभवत: वास्तविक भांडार इस मात्रा से कहीं अधिक है। कुछ नवीन आँकड़े यह प्रदर्शित करते हैं कि भारत में उच्च श्रेणी के बॉक्साइड की मात्रा लगभग 2.8 करोड़ टन है। इलेक्ट्रो केमिकल सोसाइटी की भारतीय शाखा की अक्टूबर, 1955 ई. की पत्रिका में देश में अच्छे वर्ग के बौक्साइट की अनुमित मात्रा 3.55 करोड़ टन के लगभग बताई गई है। 1957 ई. में फ्रांसीसी प्रतिनिधिमंडल ने, जिसमें फ्रांस की एक सुप्रसिद्ध कंपनी के श्री जे. सेबोट भी थे, निम्नांकित मात्राओं को उपलभ्य बताया है :

क्रं. क्षेत्र भांडार आलोचना

संख्या

1. कटनी क्षेत्र (म.प्र.) 10 लाख टन महत्वपूर्ण नहीं

2. सौराष्ट्र (बंबई)

3. शिवारोय पहाड़ियाँ 30-40 लाख टन लगभग दस वर्षो तक

एक लघु ऐल्युमिनियम कारखाने के लिए पर्याप्त

4. कोल्हापुर क्षेत्र (महाराष्ट्र) 500 लाख टन उत्तम

5. बिलासुपर क्षेत्र (अमर-कई करोड़ टन विशाल कारखाने के कंटक) म.प्र. तथा मैन-अपेक्षाकृत विस्तृत लिए अत्यंत उपयोगी पट निक्षेप (अमरकंटक क्षेत्र में, पर्याप्त से 150 किलोमीटर की लाभप्रद बौक्साइट दूरी पर)म.प्र.

भारत में बौक्साइट का वितरण –बौक्साइट बिहार, उड़ीसा, महाराष्ट्र तमिलनाडु, जम्मू तथा कश्मीर और मध्य प्रदेश आदि प्रांतों में प्रचुर मात्रा में विद्यमान है। बौक्साइट निक्षेपों का विशेष विवरण इस प्रकार है :

बिहार राज्य –बौक्साइट निक्षेप राँची तथा पलामू जिलों में विद्यमान हैं। इन निक्षेपों पर खनन कार्य भी कुछ दिनों से हो रहा है।

ऐल्यूमिनियम कॉर्पोरेशन ऑव इंडिया तथा इंडियन ऐल्यूमिनियम कं. प्रति वर्ष लाखों टन बौक्साइट का खनन इस क्षेत्र से करती हैं।

उड़ीसा राज्य –कालाहाँडी तथा संबलपुर जिलों में बौक्साइट पाया जाता है। ऐल्यूमिनियम के लिए उपयुक्त बौक्साइट की मात्रा केवल 4,00,000 टन तक ही सीमित है।

महाराष्ट्र राज्य –कोल्लापुर तथा बेलगाँव जिलों में बौक्साइट के मुख्य निक्षेप मिलते हैं। इन दोनों में भी कोल्हापुर के निक्षेप विशाल हैं तथा सिलिका कम होने के कारण अधिक उपयोगी हैं। फ्रांसीसी मिशन (1957) के अनुसार कोल्हापुर क्षेत्र के निक्षेपों में पाँच करोड़ टन बौक्साइट है। यद्यपि ये निक्षेप ऐल्यूमिनियम उद्योग के लिए उपयुक्त एवं पर्याप्त हैं, तथापि निक्षेपों के समीप कोयला अथवा अन्य ईधन उपलब्ध न होने के कारण, देश के अन्य स्थानों की तुलना में, इन निक्षेपों का खनन लाभप्रद नहीं है।

तमिलनाडु राज्य –तमिलनाडु में सेलम जिले की शिवारोय पहाड़ियों में बौक्साइट के मुख्य भांडार स्थित हैं। ऐल्यूमिनियम के लिए उपर्युक्त बौक्साइट की मात्रा 30-40 लाख टन है। निक्षेप पूर्णत: गिबसाइट के हैं जिसमें टाइटेनियम आक्साइड तथा सक्रिय (रिऐक्टिव) सिलिका अल्प मात्रा में हैं। अत: यह बौक्साइट ऐल्यूमिनियम उद्योग के लिए अत्यंत लाभप्रद हैं। परंतु इस क्षेत्र में कोयले तथा अन्य ईधन का अभाव है। शिवारोय बौक्साइट प्रौडक्ट कंपनी यहाँ खनन कार्य करती है।

जम्मू तथा कश्मीर –इस प्रदेश के पूँच तथा रियासी जिलों में लगभग 20 लाख टन बौक्साइट प्राप्त होने का अनुमान है। यहाँ का बौक्साइट पूर्णत: डायसपोर (ऐल्यूमिनियम हाइड्रॉक्साइड) के रूप में हैं।

मध्य प्रदेश –यह निर्विवाद है कि भारत में ऐल्यूमिनियम उद्योग के लिए सर्वाधिक उपर्युक्त तथा विशालतम भांडार मध्य प्रदेश में हैं। मुख्य निक्षेप निम्नलिखित क्षेत्रों में विद्यमान हैं :

जबलपुर जिले का कटनी क्षेत्र, बालाघाट जिला, उत्तर पूर्वी मध्य प्रदेश क्षेत्र जिसमें बिलासपुर, सरगुजा, शहडोल, तथा रायगढ़ जिले संमिलित हैं।

कटनी क्षेत्र में बौक्साइट के भांडारों का अनुमान लगभग 46 लाख टन है। कुछ लघु निक्षेप सिहोरा में भी हैं। इस समय यह बौक्साइट घर्षक (अब्रेसिब) तथा रासायनिक उद्यागों के लिए प्रयुक्त होता है।

बालाघाट क्षेत्र में अभी कोई विशेष अन्वेषण कार्य नहीं किया गया है, किंतु यहाँ विशाल निक्षेपों के मिलने की पूर्ण संभावना है।

मध्य प्रदेश के उत्तर -पूर्वी क्षेत्र के निक्षेप अत्यंत महत्वपूर्ण तथा विस्तृत हैं। इस क्षेत्र में अन्वेषण कार्य भी पर्याप्त हो चुका है तथा यहाँ कई करोड़ टन बौक्साइट प्राप्त होने का अनुमान है। फ्रांसीसी कैमरून खनन सेवा की रिपोर्ट के अनुसार यदि अमरकंटक के पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम स्थित उच्च स्थलियों का दो तिहाई भी संमिलित कर लिया जाए तो पड़ोस में स्थित बड़े से बड़े ऐल्यूमिनियम कारखाने की आवश्यकता पूरी हो सकेगी। इस क्षेत्र के उपयोगी अयस्क की अनुमानित मात्रा 20 से 30 करोड़ टन तक होगी। मैनपट के निक्षेप अमरकंटक क्षेत्रीय निक्षेपों से अपेक्षाकृत अधिक उपयुक्त हैं। अप्रैल 1974 में कोरबा (मध्य प्रदेश) में भारत ऐल्यूमिनियम कंपनी के 2,00,000 टन क्षमतावाले संयंत्र ने ऐल्यूमिनियम उत्पादन का कार्य प्रारंभ कर दिया है जिसमें इस बौक्साइट का उपयोग होता है।

ऐल्यूमिनियम उद्योग में प्रयुक्त अन्य कच्चे पदार्थ

बेयर विधि द्वारा बौक्साइट से ऐल्यूमिना की प्राप्ति के लिए चूने तथा सोडा भस्म (सोडा देश) अथवा कास्टिक सोडा की आवश्यकता होती है। इन पदार्थो के लिए भारतीय उद्योग को अंशत: आंतरिक एवं अंशत: बाह्म साधनों पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐल्यूमिना के विद्युद्विश्लेषण के लिए तापन पदार्थ :

(क) क्रायोलाइट। यह ऐल्यूमिना का विलेय है जिसका आयात ग्रीनलैंड से होता है

(ख) फ़्लोरस्पार तथा ऐल्यूमिनियम फ़्लोराइड : इनकी आवश्यकता तापन समायोजन (बाथ ऐडजस्टमेंट) में होती है। ये विदेशों से आयात किए जाते हैं।

विद्युदग्रों (एलेक्ट्रोड) तथा टंकी के अस्तर के लिए कार्बनिक पदार्थ : पेट्रोलियम कोक डिग्बोई (आसाम) से प्राप्त किया जाता है, जिससे आंशिक पूर्ति होती है। शेष माँग पूरी करने के लिए विदेशों से आयात करना पड़ता है। मृदु पिच, कोक ओवन, अलकतरा और कारखाने की राख बंगाल के कोयला-क्षेत्र से प्राप्त किए जाते हैं।

ऐल्यूमिनियम के कारखाने–इस समय भारत में ऐल्यूमिनियम के कई कारखाने हैं। आसनसोल में स्थित एक कारखाने में ऐल्यूमिना से ऐल्यूमिनिय बनाने की व्यवस्था है। मूरी (टाटानगर में 50 मील दूर) में पहले से ऐल्यूमिना को परिष्कृत करके ऐल्यूमिनियम उत्पन्न करने की व्यवस्था है। ऐसी ही व्यवस्था केरल राज्य में अलवे नामक स्थान पर भी है। सेलम तथा हीराकुंड में 10-10 हजार टन प्रति वर्ष उत्पादन के कारखाने हैं। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में रेणुकूट नामक स्थान पर हिंदालको (हिंदुस्तान ऐल्यूमिनियम कार्पोरेशन) का कारखाना है जो इस समय भारत में ऐल्युमिनियम का सबसे बड़ा कारखाना है। मार्च, 1960 ई. में इस कारखाने ने उत्पादन प्रारंभ कर दिया था। प्रारंभ में इसका वार्षिक उत्पादन केवल 20,000 टन था परंतु 1969 ई. में बढ़कर यह 80,000 टन प्रति वर्ष और 1972 ई. में 1,20,000 टन प्रति वर्ष हो गया था।

अप्रैल, 1974 ई. में कोरबा (मध्य प्रदेश) में भारत ऐल्यूमिनियम कंपनी के 2,00,000 टन क्षमतावाले कोरबा ऐल्युमिना संयंत्र ने उत्पादन कार्य आरंभ कर दिया है। 1,00,000 टन की अधिकतम क्षमतावाला इसका प्रदावक (smelter) 1974 ई. के अंत से प्रारंभ होकर 1975 ई. के अंत तक विभिन्न चरणों में काम करने लगेगा।

भारत ऐल्यूमिनियम कंपनी का रत्नगिरि (महाराष्ट्र) में भी एक ऐल्यूमिनियम संयंत्र 1975-76 ई. तक कार्य करने लगेगा जिसकी उत्पादन क्षमता प्रतिवर्ष 50,000 टन होगी। पाँचवीं योजना के अंतिम चरण तक इन दोनों संयंत्रों की क्षमता 2,80,000 टन तक होने की संभावना है। इस धातु में 1976 ई. तक देश आत्मनिर्भर हो जाएगा।[3]


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐलुमिनियम मोनोक्साइड
  2. ऐलुमिनियम आयोडाइड
  3. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 284 |

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