ओलम्पिक आयोजन

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ओलम्पिक आयोजन
ओलम्पिक का प्रतीक चिह्न
ओलम्पिक का प्रतीक चिह्न
विवरण ओलम्पिक खेल अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली बहु-खेल प्रतियोगिता है।
सर्वोच्च नियंत्रण निकाय अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी या IOC)
शुरुआत सन 1896 में (एथेंस)
प्रकार ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेल, शीतकालीन ओलम्पिक खेल, पैरालम्पिक खेल
संबंधित लेख ओलम्पिक 2016, एशियाई खेल
अन्य जानकारी प्राचीन ओलम्पिक में मुक्केबाज़ी, कुश्ती, घुड़सवारी के खेल खेले जाते थे। खेल के विजेता को कविता और मूर्तियों के जरिए प्रशंसित किया जाता था। हर चार साल पर होने वाले ओलम्पिक खेल के वर्ष को ओलंपियाड के नाम से भी जाना जाता था।
अद्यतन‎
एथेंस (1896)

पहले आधुनिक ओलम्पिक खेल यूनान की राजधानी एथेंस में 1896 में आयोजित किए गए। एक बार तो ऐसा लगा कि वित्तीय समस्याओं के कारण एथेंस से ये खेल निकलकर हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट चले जाएँगे। पहले यह तय हुआ था कि पहले आधुनिक ओलम्पिक खेल 1900 में पेरिस में आयोजित होंगे, लेकिन चार साल पहले ही ओलम्पिक खेलों के आयोजन के लिए एथेंस को चुना गया, हालाँकि खेल शुरू होने से पहले ही यूनान गंभीर वित्तीय संकट में फँस गया था। उस साल हंगरी अपनी हज़ारवीं सालगिरह मनाने की तैयारी रहा था और उसने यूनान की जगह अपने यहाँ ओलम्पिक आयोजित कराने की पेशकश की। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, यूनान के राजकुमार ने ओलम्पिक आयोजन समिति का गठन किया और उसके बाद समिति को बड़ी मात्रा में सहायता राशि मिली। पहले आधुनिक ओलम्पिक खेलों में सिर्फ़ 14 देशों के 200 लोगों ने 43 मुक़ाबलों में हिस्सा लिया। ज़्यादातर मुक़ाबलों में मेजबान देश के खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। प्रमुख मुक़ाबलों में शामिल थे- टेनिस, ट्रैक एंड फ़ील्ड, भारोत्तोलन, साइकिलिंग, कुश्ती, तीरंदाज़ी, तैराकी और जिम्नास्टिक. क्रिकेट और फ़ुटबॉल प्रतियोगिताएँ इसलिए रद्द कर दीं गईं, क्योंकि इन मुक़ाबलों में हिस्सा लेने वाली टीमों की कमी थी। मुक़ाबले में जीतने वालों को सिल्वर मेडल, एक प्रमाणपत्र और ओलिव के पत्ते दिए जाते थे। दूसरे नंबर पर आने वाले खिलाड़ियों को काँस्य पदक दिए जाते थे, जबकि तीसरे नंबर पर आने वाले खिलाड़ियों को ख़ाली हाथ लौटना पड़ता था। पहले ओलम्पिक पदक विजेता बनें अमरीका के जेम्स ब्रेंडन कोनोली। उन्होंने ट्रिपल जंप में 13.71 मीटर छलांग लगाकर जीत हासिल की थी। यूनानी लोगों के ज़बरदस्त उत्साह के कारण पहले आधुनिक ओलम्पिक खेलों को काफ़ी सफल आयोजन माना गया।[1]

पेरिस (1900)

1896 के बाद पेरिस को ओलंपिक की मेजबानी का इंतज़ार नहीं करना पड़ा और उसे 1900 में मौक़ा मिल ही गया। पेरिस ओलंपिक खेलों में पहली बार महिला एथलीटों को भी अपना दमखम दिखाने का मौक़ा मिला, लेकिन क़रीब एक हज़ार प्रतियोगियों में सिर्फ़ 20 महिलाएँ थीं। इस बार भी ओलंपिक के आयोजन को लेकर विवाद हुआ। यूनान ने दावा किया कि उसे भविष्य के सभी ओलंपिक खेलों के आयोजन का हक़ है, लेकिन ओलंपिक समिति ने 1894 के अपने प्रस्ताव को आधार माना और पेरिस को चुना। यूनान और तुर्की के बीच चल रहे युद्ध के कारण भी यूनान का केस कमज़ोर पड़ गया। पेरिस में ओलंपिक तो आयोजित हो गए, लेकिन यूनान जैसा उत्साह यहाँ के लोगों में देखने को नहीं मिला, क्योंकि उन्हें न तो इतने बड़े आयोजन की सूचना थी और न आयोजन करने वालों ने इस पर ध्यान ही दिया। लेकिन जो लोग देखने आए, उन्हें भी अपनी उस समय अपनी जान निकलती महसूस हुई, जब डिस्कस थ्रो के चैंपियन हंगरी के रुडोल्फ़ बाऊर की डिस्क तीन पर दर्शकदीर्घा में जाकर गिरी। पेरिस ओलंपिक में भाग लेने वाले देशों की संख्या भी 14 से बढ़कर 28 हो गई और मुक़ाबले बढ़कर 75। लेकिन एक बार फिर मेजबान देश के एथलीट ही पूरे ओलंपिक के दौरान अपने प्रदर्शन के लिए चर्चित रहे। हालाँकि कई विजेताओं के नाम और उनकी राष्ट्रीयता को लेकर सालों तक विवाद बनें रहे। पेरिस ओलंपिक का पहला पदक जीता कनाडा के जॉर्ज ऑर्टन ने, लेकिन सालों तक इसकी जानकारी इसलिए नहीं मिल पाई क्योंकि ऑर्टन अमरीकन विश्वविद्यालय की ओर से आए थे और उन्हें अमरीकी खिलाड़ी के रूप में दर्ज किया गया था। क्रिकेट, कॉर्केट, नौकायन पहली बार ओलंपिक में शामिल किए गए, लेकिन कई प्रतियोगियों को तो यह भी मालूम नहीं था कि वे ओलंपिक में हिस्सा ले रहे हैं। पेरिस ओलंपिक के बारे में एक और रोचक बात ये कि ओलंपिक मई में शुरू हुए थे और अक्टूबर में ख़त्म हुए।

सेंट लुई (1904)

सेंट लुई को ओलंपिक के आयोजन में वही समस्याएँ आईं जो चार पहले पेरिस के सामने खड़ी हुईं थीं। क्योंकि ठीक इसी समय वर्ल्ड फ़ेयर चल रहा था। दरअसल ओलंपिक की मेजबानी दी गई थी शिकागो को, लेकिन सेंट लुई के आयोजकों ने धमकी दी कि वे एक समांतर प्रतियोगिता का करेंगे। बाद में अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने दख़ल देकर शिकागो की जगह सेंट लुई में ओलंपिक खेल कराने को मंज़ूरी दे दी। लेकिन साढ़े चार महीने चले ओलंपिक खेलों में जनता की रुचि ज़्यादा नहीं दिखी। आधुनिक ओलंपिक खेलों के संस्थापक पिया द कुबर्तां भी यहाँ नहीं पहुँचे। अमरीका आने-जाने के ख़र्च के कारण प्रतियोगियों और भाग लेने वाले देशों की संख्या में बड़ी गिरावट आई। कई मुक़ाबले तो ऐसे थे, जिनमें सिर्फ़ अमरीकी खिलाड़ी ही हिस्सा ले रहे थे और ज़ाहिर था इस ओलंपिक खेल में वे ही छाए रहे। ट्रैक एंड फ़ील्ड मुक़ाबलों में भी अमरीकी खिलाड़ियों का दबदबा बना रहा, लेकिन आयरिश खिलाड़ी थॉमस काइली ने संयुक्त मुक़ाबले में जीत हासिल की यह मुक़ाबला बाद में डेकेथलॉन बना। उस समय बड़ा अंतर यही था कि डेकेथलॉन में शामिल सभी 10 मुक़ाबले एक ही दिन में पूरा करना पड़ता था। अमरीकी जिम्नास्ट एंटन हाइडा ने पाँच स्वर्ण और एक रजत पदक जीता और इस ओलंपिक के सबसे सफल खिलाड़ी बने, लेकिन यूरोप में यही भावना थी कि यह ओलंपिक भी सफल नहीं बन पाया।

लंदन (1908)

1908 में ओलंपिक की मेजबानी सौंपी गई थी रोम को, लेकिन आयोजन पर लगने वाला ख़र्च 1906 में माउंट विसूवियस ज्वालामुखी के विस्फोट के कारण दूसरी जगह लगाना पड़ा। तब लंदन ने आगे आकर मेजबानी की पेशकश की और सिर्फ़ 10 महीनों के अंदर व्हाइट सिटी में एक भव्य स्टेडियम बना। यह पहला ओलंपिक खेल था, जिसमें एथलीटों में अपने देश के झंडे के साथ स्टेडियम में मार्च पास्ट किया। 100 मुक़ाबलों और 2000 से ज़्यादा प्रतियोगियों के कारण लंदन ओलंपिक का स्तर बहुत अच्छा था, लेकिन फिर भी यह ओलंपिक विवादों से अछूता नहीं रहा और देशों की आपसी प्रतिद्वंद्विता के कारण यह ओलंपिक कई कटु यादें भी छोड़ गया। अमरीकी टीम ने मेजबान देश पर आरोप लगाया कि उसके द्वारा नियुक्त जज उसका पक्ष ले रहे हैं। बाद में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने घोषणा की कि वह भविष्य में कई देशों के जजों को ओलंपिक में मौक़ा देगी। इन सबके बावजूद एक मौक़े पर खेल भावना भी देखने को मिली। ग्रीको रोमन कुश्ती के मिडिलवेट वर्ग में फ़ाइनल हुआ स्वीडन के फ़्रीथियोफ़ मार्तेन्सन और मौरित्ज़ एंडरसन के बीच। लेकिन मार्तेन्सन के बीमार होने के कारण मैच एक दिन टाला गया। बाद में मार्तेन्सन ने ख़िताबी जीत हासिल की। लंदन ओलंपिक में कुल 21 प्रतियोगिताएँ शामिल की गईं। आईस स्केटिंग और बाइसिकिल पोलो पहली बार आयोजित हुए, लेकिन सबसे ज़्यादा ध्यान खींचा मैराथन दौड़ ने। इटली के डोरंडो पिएत्री स्टेडियम में पहुँचने वाले पहले धावक थे, लेकिन वे कई बार गिरे और बाद में उन्हें उस समय अयोग्य घोषित कर दिया गया, जब कुछ अधिकारियों ने उन्हें 'फ़िनिशिंग लाइन' पार कराने की कोशिश की। बाद में अमरीका के जॉन हेस ने यह दौड़ जीती।

स्कॉटहोम (1912)

स्टॉकहोम ओलंपिक में मुक़ाबलों की संख्या घटकर 14 रह गई, लेकिन एक नई प्रतियोगिता आयोजित हुई पेंटेथलॉन। पेंटेथलॉन में शामिल थे- घुड़सवारी, फ़ेन्सिंग, तैराकी, निशानेबाज़ी और क्रॉस कंट्री रनिंग। इस ओलंपिक में दबदबा क़ायम किया अमरीकी खिलाड़ी जिम थोर्प ने। थोर्प ने पेंटेथलॉन और डेकेथलॉन ने आसानी से जीत हासिल की। स्वीडन के राजा गुस्ताव पंचम ने जिम थोर्प को दुनिया का महानतम एथलीट कहा, लेकिन थोर्प की प्रतिष्ठा पर उस समय प्रश्नचिन्ह लग गया, जब पता चला कि उन्होंने बेसबॉल खेलने के लिए पैसे लिए थे। दरअसल उस समय ओलंपिक में उन्हीं खिलाड़ियों को जगह मिलती थी जो ग़ैर पेशेवर थे। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने थोर्प का पदक इस आधार पर वापस ले लिया कि उन्होंने ओलंपिक के नियमों का उल्लंघन किया है। थोर्प दुनिया के पहले ऐसे खिलाड़ी बनें, जिन्हें पेशेवर खिलाड़ी होने के कारण अपने पदक से हाथ धोना पड़ा। लेकिन 1982 में थोर्प की मौत के 29 साल बाद आईओसी ने उन्हें आधिकारिक रूप से क्षमा कर दिया। यह उस महान् एथलीट को सच्ची श्रद्धांजलि थी जिसे महानतम एथलीटों में से एक चुना गया था। फ़िनलैंड के हैनेस कोलेहमैनेन ने सफलता की एक और कहानी गढ़ी। उन्होंने 5000, 10,000 और 12,000 मीटर क्रॉस कंट्री में तीन स्वर्ण पदक जीते। यह लंबी दूर की दौड़ प्रतियोगिता में फ़िनलैंड के वर्चस्व की शुरुआत थी, जो लगभग 30 सालों तक चली। स्टॉकहोम ओलंपिक इसलिए भी यादगार रहा कि इसमें पहली बार समय का पता लगाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का इस्तेमाल हुआ। स्टॉकहोम ओलंपिक में ही पहली बार महिलाओं ने तैराकी मुक़ाबले में हिस्सा लिया। 4x100 मीटर रिले में ब्रिटेन ने स्वर्ण पदक जीता।

बेल्जियम (1920)

विश्व युद्ध के कारण 1916 में ओलंपिक खेलों का आयोजन नहीं हुआ, लेकिन 1920 में बेल्जियम के एंटवर्प को मेजबानी का मौक़ा मिला। हालाँकि विश्व युद्ध की पीड़ा बेल्जियम को भी झेलनी पड़ी थी, लेकिन इसके बावजूद आयोजकों ने ज़रूरी व्यवस्था पूरी कर ली। विश्व युद्ध में शामिल होने के कारण जर्मनी, ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, हंगरी और तुर्की को ओलंपिक का न्योता नहीं दिया गया, लेकिन फिर भी इसमें बड़ी संख्या में एथलीटों ने हिस्सा लिया। एंटवर्प ओलंपिक से ही ओलंपिक खेलों का आधिकारिक झंडा सामने आया। इस झंडे में आपस में जुड़े पाँच गोलों को दिखाया गया जो एकता और मित्रता का प्रतीक हैं। पहले ओलंपिक की तरह इस ओलंपिक में भी देशों के बीच शांति प्रदर्शित करने के लिए कबूतर उड़ाए गए। दौड़ मुक़ाबलों में फ़िनलैंड ने अमरीका के वर्चस्व को चुनौती दी। हेनेस कोहेमेनन और पावो नुरमी ने अपना दमखम दिखाया। दोनों ने मिलकर दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीते। किसी दक्षिण अमरीकी देश ने पहली बार 1920 में स्वर्ण पदक जीता। ब्राज़ील के गिलहेर्म पैरेंस ने रैपिड फ़ायर पिस्टल प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। दूसरी ओर अमरीका के विली ली ने चार और लॉयड स्पूनर ने पाँच स्वर्ण पदक जीते। अमरीका के ऐलिन रिगिन सबसे कम उम्र में स्वर्ण जीतने वाले खिलाड़ी बनें। उन्होंने गोताख़ोरी में गोल्ड मेडल जीता सिर्फ़ 14 वर्ष और 119 दिन की आयु में। 1500 मीटर में ब्रिटेन के फ़िलिप नोएल बेकर ने सिल्वर मेडल जीता और बाद में वे ब्रिटेन के एमपी भी बने। 1959 में वे पहले ऐसे ओलंपियन बनें, जिन्हें 'नोबेल शांति पुरस्कार' से नवाज़ा गया।

पेरिस (1924)

1924 का ओलंपिक पहले एम्सटर्डम में आयोजित होना था, लेकिन ओलंपिक समिति के अध्यक्ष पिया द कुबर्तां के प्रभाव के कारण ये खेल आख़िरकार आयोजित हुए पेरिस में। कुबर्तां को उम्मीद थी कि इस बार पेरिस के ओलंपिक पूरी तरह सफल होंगे। दरअसल 1900 में पेरिस में हुए ओलंपिक ने सबको निराश किया था। कुबर्तां की कोशिशों के बावजूद जर्मनी को एक बार फिर ओलंपिक में शामिल होने की अनुमति नहीं मिली, लेकिन 1920 ओलंपिक में शामिल नहीं किए गए अन्य चार देशों को शामिल कर लिया गया। 1924 ओलंपिक में पहली बार एक अश्वेत खिलाड़ी ने व्यक्तिगत मुक़ाबले में स्वर्ण पदक जीता। अमरीका के विलियम डी हार्ट हुबार्ड ने लंबी कूद में जीत हासिल की। उनके प्रतिद्वंद्वी 7.76 मीटर छलांग लगाकर लंबी कूद में विश्व रिकॉर्ड बनाया, लेकिन उन्होंने यह प्रदर्शन पेंटेथलॉन में किया और उन्हें काँस्य पदक से संतोष करना पड़ा। फ़िनलैंड के खिलाड़ियों ने एक बार फिर मध्यम दूरी की दौड़ प्रतियोगिताओं में अपना दबदबा साबित कर दिखाया। पावो नूरमी ने पाँच स्वर्ण पदक जीते। इनमें से दो तो उन्होंने एक घंटे के अंतराल पर जीते। नूरमी को अपनी इस उपलब्धि का ईनाम भी मिला, जब उनकी एक प्रतिमा हेलसिंकी स्टेडियम के बाहर लगाई गई। इस ओलंपिक में तो टेनिस मुक़ाबले रखे गए, लेकिन इसके बाद इसे ओलंपिक खेलों में जगह नहीं दी गई। टेनिस प्रतियोगिता एक बार फिर 60 साल बाद सियोल ओलंपिक में ही शामिल की गई। पेशवेर खिलाड़ियों के प्रति अपने अड़ियल रुख़ वाली ओलंपिक समिति को अब इस पर संदेह होने लगा कि क्या वाकई ओलंपिक में सिर्फ़ पेशेवर खिलाड़ी ही शामिल हो रहे हैं। तैराकी की फ़्री स्टाइल में जॉनी वाइजमूलर ने तीन स्वर्ण पदक जीते। उन्होंने पुरुषों के वाटर पोलो में भी काँस्य पदक जीता। बाद में वाइजमूलर फ़िल्मों में टार्जन की भूमिका के लिए चर्चित रहे।

नीदरलैण्ड (1928)

कई बार असफल कोशिशों के बाद 1928 में नीदरलैंड को ओलंपिक की मेजबानी मिल ही गई। प्रथम विश्व युद्ध के बाद पाबंदी झेल रहे जर्मनी को इस ओलंपिक में खेलने का मौक़ा मिल गया। जर्मनी पर 16 साल प्रतिबंध लगे रहे। इस ओलंपिक से ही ओलंपिक मशाल जलाने की प्रक्रिया शुरू हुई जो पूरे ओलंपिक के दौरान जलती रहती थी। ओलंपिक के संस्थापक कहे जाने वाले पिया द कुबर्तां 20 सालों में पहली बार बीमारी के कारण किसी ओलंपिक खेल देखने नहीं जा सके। कुबर्तां की आपत्तियों के बावजूद ट्रैक एंड फ़ील्ड प्रतियोगिताओं में पहली बार महिला खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। हालाँकि सिर्फ़ पाँच मुक़ाबलों में ही वे शामिल हो पाईं। जर्मनी की लीना रादके बैशर अपने देश के लिए ट्रैक एंड फ़ील्ड मुक़ाबलों में सिर्फ़ दूसरा स्वर्ण जीतने वाली खिलाड़ी बनीं। उन्होंने 800 मीटर में जीत हासिल की। लेकिन महिलाओं की इस दौड़ में कम प्रतियोगियों के शामिल होने, कुछ के बीच में ही दौड़ छोड़ देने के कारण ओलंपिक समिति ने इस प्रतियोगिता को 1960 ओलंपिक तक टाल दिया। इस ओलंपिक में भी दो खिलाड़ी छाए रहे। पहले थे पावो नूरमी, जिन्होंने तीन और गोल्ड जीते। दूसरे थे जॉनी वाइजमूलर, जिन्होंने तैराकी में अपना जलवा दिखाया। भारतीय हॉकी टीम ने इसी ओलंपिक में पहली बार स्वर्ण पदक जीता और इसे देखने के लिए 50,000 लोग जुटे। मिस्र के इब्राहीम मुस्तफ़ा ग्रीको रोमन कुश्ती में स्वर्ण जीतने वाले पहले ग़ैर यूरोपीय खिलाड़ी बने। लुजिनिया जियावोती सबसे कम उम्र में पदक जीतने वाली खिलाड़ी बनीं, जिन्होंने जिम्नास्टिक में 11 वर्ष और 302 दिन की आयु में रजत पदक जीतकर रिकॉर्ड बनाया जो अभी भी क़ायम है।

लॉस एंजेलेस (1932)

लॉस एंजेलेस में 1932 में ओलंपिक खेल आयोजित तो हुए, लेकिन उस समय दुनियाभर में आर्थिक संकट मँडरा रहा था। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने खिलाड़ियों के आने-जाने और खाने का प्रबंध करके आयोजन के ख़र्च को कम करने की कोशिश की। आने-जाने का ख़र्च उस समय विवाद में आ गया, जब महान् पावो नूरमी को ओलंपिक में शामिल होने से रोक दिया गया। आईओसी ने पाया कि नूरमी ग़ैर पेशेवर खिलाड़ी वाले अनुबंध को तोड़ रहे हैं। नूरमी ने अपने आने-जाने के ख़र्च का दावा किया और उसी ख़र्च से जर्मनी में एक प्रतियोगिता में शामिल होने चले गए। लेकिन नूरमी एक बार फिर ओलंपिक परिदृश्य में उभरे, जब उन्होंने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में मशाल जलाई। 1932 ओलंपिक में कई तकनीकी सुधार हुए और कई नए उपकरणों को आज़माया गया। पहली बार इस ओलंपिक फोटो फ़िनिश कैमरा इस्तेमाल हुआ। इस ओलंपिक में तीन विजेताओं के लिए अलग-अलग पोडियम पहली बार अस्तित्व में आए।

बर्लिन (1936)

अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि बढ़ते नाज़ीवाद के कारण ओलंपिक का आयोजन बर्लिन में हो पाएगा या नहीं। लेकिन ठीक एक साल पहले बर्लिन में शीतकालीन ओलंपिक आयोजित हुए थे और उनकी सफलता से आईओसी का उत्साह बढ़ा। कई देशों ख़ासकर अमरीका ने बर्लिन ओलंपिक के बहिष्कार की पेशकश की, लेकिन ग़ैर हाज़िर रहा सिर्फ़ स्पेन वो भी अपने गृह युद्ध के कारण। ओलंपिक का उदघाटन किया एडोल्फ़ हिटलर ने और कई टीमों ने उन्हें नाज़ी सैल्यूट भी दिया, लेकिन उदघाटन समारोह से ब्रिटेन और अमरीका की टीमें अनुपस्थित रहीं। बर्लिन ओलंपिक के स्टार रहे अमरीका के अश्वेत खिलाड़ी जेसी ओवंस। ओवंस ने चार स्वर्ण पदक जीते। उन्होंने 100 मीटर, 200 मीटर, लंबी कूद में स्वर्ण जीता और 4 गुणा 100 मीटर रिले दौड़ में भी वे अमरीकी टीम में शामिल थे, जिसने गोल्ड जीता था। जर्मनी की टीम मेडल तालिका में सबसे ऊपर रही। उसने 33 स्वर्ण जीते। अमरीका के हिस्से में 24 और हंगरी के हिस्से में 10 स्वर्ण पदक आए। दूसरे विश्व युद्ध के कारण इसके बाद लंबे समय तक ओलंपिक आयोजित नहीं हुए।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद

1950 के दशक में सोवियत-अमेरिका प्रतिस्पर्धा के खेल के मैदान में आने के साथ ही ओलंपिक की ख्याति चरम पर पहुंच गई। इसके बाद तो खेल कभी भी राजनीति से अलग नहीं हुआ। खेल केवल राजनीति का विषय नहीं रहे। ये राजनीति का अहम हिस्सा बन गए। चूंकि सोवियत संघ और अमेरिका जैसी महाशक्तियां कभी नहीं खुले तौर पर एक दूसरे के साथ युद्ध के मैदान में भिड़ नहीं सकीं। लिहाजा उन्होंने ओलंपिक को अपनी श्रेष्ठता साबित करने का माध्यम बना लिया। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी ने एक बार कहा था कि अंतरिक्ष यान और ओलंपिक स्वर्ण पदक ही किसी देश की प्रतिष्ठा का प्रतीक होते हैं। शीत युद्ध के काल में अंतरिक्ष यान और स्वर्ण पदक महाशक्तियों का सबसे बड़ा उद्देश्य बनकर उभरे। बड़े खेल आयोजन इस शांति युद्ध का अंग बन गए और खेल के मैदान युद्धस्थलों में परिवर्तित हो गए। सोवियत संघ ने वर्ष 1968 के मैक्सिको ओलंपिक में पदकों के होड़ में अमेरिका के हाथों मिली हार का बदला 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में चुकाया। सोवियत संघ की 50वीं वर्षगांठ पर वहां के लोग किसी भी कीमत पर अमेरिका से हारना नहीं चाहते थे। इसी का नतीजा था कि सोवियत एथलीटों ने 50 स्वर्ण पदकों के साथ कुल 99 पदक जीते। यह संख्या अमेरिका द्वारा जीते गए पदकों से एक तिहाई ज्यादा थी। साल 1980 में अमेरिका और उसके पश्चिम के मित्र राष्ट्रों ने 1980 के मॉस्को ओलंपिक में शिरकत करने से इनकार कर दिया. इसके बाद हिसाब चुकाने के लिए सोवियत संघ ने 1984 के लॉस एंजलिस ओलंपिक का बहिष्कार कर दिया। साल 1988 के सियोल ओलंपिक में सोवियत संघ ने एक बार फिर अपनी श्रेष्ठता साबित की। उसने 132 पदक जीते। इसमें 55 स्वर्ण थे। अमेरिका को 34 स्वर्ण सहित 94 पदक मिले थे। अमेरिका पूर्वी जर्मनी के बाद तीसरे स्थान पर रहा। वर्ष 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में भी सोवियत संघ ने अपना वर्चस्व कायम रखा। हालांकि उस वक्त तक सोवियत संघ का विघटन हो चुका था। एक संयुक्त टीम ने ओलंपिक में हिस्सा लिया था। इसके बावजूद उसने 112 पदक जीते। इसमें 45 स्वर्ण थे। अमेरिका को 37 स्वर्ण के साथ 108 पदक मिले थे। साल 1996 के अटलांटा और 2000 के सिडनी ओलंपिक में रूस (सोवियत संघ के विभाजन के बाद का नाम) गैर अधिकारिक अंक तालिका में दूसरे स्थान पर रहा। 2004 के एथेंस ओलंपिक में उसे तीसरा स्थान मिला। बीजिंग ओलंपिक 2008 को अब तक का सबसे अच्छा आयोजन माना जा गया है। पंद्रह दिन तक चले ओलंपिक खेलों के दौरान चीन ने ना सिर्फ़ अपनी शानदार मेज़बानी से लोगों का दिल जीता बल्कि सबसे ज़्यादा स्वर्ण पदक जीत कर भी इतिहास रचा। पहली बार पदक तालिका में चीन सबसे ऊपर रहा। जबकि अमरीका को दूसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा। भारत ने भी ओलंपिक के इतिहास में व्यक्तिगत स्पर्धाओं में पहली बार कोई स्वर्ण पदक जीता और उसे पहली बार एक साथ तीन पदक भी मिले।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ओलम्पिक का इतिहास (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 06 अगस्त, 2016।
  2. 1896 से अबतकः ओलंपिक खेलों का इतिहास (हिन्दी) आजतक। अभिगमन तिथि: 7 अगस्त, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

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