कबीर मधि अंग जे को रहै -कबीर
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कबीर मधि अंग जे को रहै, तो तिरत न लागै बार। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! जो मध्य मार्ग का अनुसरण करता है, उसे संसार रूपी भवसागर पार करते देर नहीं लगती। जो द्वन्द्व अर्थात् सुख-दु:ख, प्रवृत्ति-निवृत्ति आदि में लिप्त रहता है, वही संसार में डूबता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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