कबीर सुपनैं रैनि कै, पारस जीय मैं छेक -कबीर
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कबीर सुपनैं रैनि कै, पारस जीय मैं छेक। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! अज्ञान की रात्रि में जब जीव स्वप्न देखता है तो ब्रह्म और जीव में सर्वाथा पृथक् प्रतीत होता है। वह जब तक इस अज्ञान-निद्रा में रहता है, तब तक आत्मा और परमात्मा दो अलग-अलग जान पड़ते हैं। जब वह अज्ञान-निद्रा से जगता है, तब उसे दोनों एक ही प्रतीत होते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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