कबीर सुपनै रैनि कै -कबीर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
| ||||||||||||||||||||
|
कबीर सुपनै रैनि कै, ऊघड़ि आए नैन। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! जीवन अज्ञान रूपी रात्रि का स्वप्न है। उसमें जीव नाना प्रकार के सुख-दु:ख, लाभ-हानि का अनुभव करता है। परन्तु वे सब अनुभव स्वप्न के समान हैं। ज्ञान-चक्षु खुल जाने पर जीव को यह विश्वास हो जाता है कि अज्ञान रूपी निद्रा में पड़े हुए लाभ-हानि का जीवन स्वप्नवत व्यर्थ है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख