काँची कारी जिनि करै -कबीर
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काँची कारी जिनि करै, दिन दिन बधै बियाधि। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! तू टालमटोल की प्रवृत्ति का परित्याग कर। तेरी भव-व्याधि दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। कबीर को राम के प्रति अनुराग हो गया है, जिससे यह उसे तंग नहीं कर पाती। हे जीव! तू भी इसी औषधि का अपने बचाव के लिए प्रयोग कर।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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