काया मंजन क्या करै -कबीर
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काया मंजन क्या करै, कपड़ा धोइम धोइ। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! तूने स्वच्छता के वास्तविक मर्म को नहीं समझा है। तू शरीर और कपड़ों को धोकर स्वच्छता का व्यर्थ आडम्बर करता है। वास्तविक स्वच्छता मन की है। काया और वस्त्र के स्वच्छ होने से नहीं वरन् केवल मन की स्वच्छता से ही मुक्त होगा। इसलिए बाह्य स्वच्छता को वास्तविक स्वच्छता समझकर निश्चिन्त मत रह। सर्वदा आन्तरिक परिष्कार का प्रयास करता रह।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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