कुल खोये कुल ऊबरै -कबीर
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कुल खोये कुल ऊबरै, कुल राखे कुल जाइ। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! जो केवल ससीम, कुटुम्ब, वंश आदि के मोह में पड़ा रहता है, वह वास्तविक कुल अर्थात् पूर्ण, ब्रह्म या भूमा को खो देता है। कुटुम्ब आदि ससीम के मोह में पड़े रहने से पूर्ण या सर्वस्व की प्राप्ति नहीं हो पाती है। राम निकुल हैं उसी में तू वंश आदि ससीम का समर्पण कर दे। उसी में ससीम समाया हुआ है अर्थात् वह सब में व्याप्त है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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