खंभा एक गयंद दोइ -कबीर
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खंभा एक गयंद दोइ, क्यों करि बंधसि बारि। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! खम्भा रूपी शरीर एक ही है और अहं भाव और प्रेम रूपी हाथी दो हैं। दोनों को तुम एक साथ कैसे बाँध सकेगा? यह कैसे सम्भव है? यदि तू अहंभाव में रहता है तो उसके साथ प्रिय नहीं रह सकते। यदि तू प्रिय अर्थात् प्रभु को रखना चाहता है तो मान को निकालना पड़ेगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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