गावन ही मैं रोवना -कबीर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
| ||||||||||||||||||||
|
गावन ही मैं रोवना, रोवन ही मैं राग। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! एक दिखावे में गाता है, किन्तु भीतर से रोता है। दूसरा ऊपर से तो रोता हुआ प्रतीत होता है, किन्तु भीतर से गाता है। ठीक इसी प्रकार एक वैरागी होते हुए भी भीतर से आसक्त रहने के कारण गृहस्थी से बँधा है और दूसरा ऊपर से घर-गृहस्थी तो बनाये हुए है, किन्तु भीतर से वह अनासक्त है अर्थात् उसमें सांसारिक विषयों के प्रति वास्तविक वैराग्य है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख