गोर
गोर हेरात तथा हेलमन घाटी के बीच में स्थित वह भाग, जिसमें आधुनिक हज़ारिस्तान सम्मिलित है। यह स्थान चाँदी तथा सोने की खदानों के लिए प्रसिद्ध रहा है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी यह स्थान काफ़ी महत्त्व का रहा है।
इतिहास
10वीं सती ई. में इब्ने होकल नामक भूगोलवेत्ता के अनुसार यह स्थान बड़ा ही आबाद एवं चाँदी तथा सोने की खानों के लिये प्रसिद्ध था। 1148 तथा 1215 ई. के मध्य 'साम' के वंशज गोरी सुल्तानों के कारण इस स्थान को बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त हुई। 1149 ई. में बहाउद्दीन साम ने गोर पर अधिकार जमा लिया और ज़कोह ने क़िले को पूरा करवा कर उसे सेना के रहने के योग्य बनाया। शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर उसका भाई अलाउद्दीन सिंहासनारूढ़ हुआ। उसने ग़ज़नी पर आक्रमण कर उसे नष्ट-भ्रष्ट कर और ग़ज़नवी सुल्तानों की क़ब्रों से उनकी हड्डियाँ खोद-खोदकर जलवा डालीं, इसी कारण उसका नाम अलाउद्दीन जहाँसोज़ (संसार को जलाने वाला) पड़ गया।[1]
कुछ समय उपरांत सुल्तान सजर सलजूक ने उस पर आक्रमण कर उसे परजित कर दिया। अलाउद्दीन बंदी बना लिया गया, किंतु संजर ने कुछ समय उपरान्त उसे मुक्त कर गोर का राज्य उसे वापस कर दिया। उसने अपनी शक्ति उत्तर की ओर गरजिस्तान में बढ़ा ली और तूलक नामक क़िले को अपने अधिकार में कर लिया। 1156. ई. में उसकी मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर उसका पुत्र सैफ़ुद्दीन मुहम्मद फ़ीरोज़कोह में सिंहासनारूढ़ हुआ। उसने साम के दोनों पुत्रों गयासुद्दीन तथा मुईजुद्दीन को मुक्त कर दिया और मलाहिदा अथवा इस्माईलियों की शक्ति को भी नष्ट करने का प्रयत्न किया; किंतु 1162 ई. में गुज़ तुर्कों से युद्ध करता हुआ मर्व के समीप मारा गया। सेना गयासुद्दीन बिन साम के साथ फ़ीरोज़कोह लौट आई और उसे वहाँ सिंहासनारूढ़ कर दिया। उसका भाई मुईनुद्दीन उसका मुख्य सहायक बन गया। 1173 ई. में मुईजुद्दीन ने ग़ज़नवियों के पूरे राज्य को अपने अधिकार में कर लिया। गयासुद्दीन ने हेरात पर भी आक्रमण किए, जो उस समय सुल्तान संजर के तुर्क दास तुगरिल के अधीन था और 1175 ई. में उस पर अधिकार जमा लिया। किंतु तुगरिल निरंतर अपने राज्य के लिये संघर्ष करता रहा।[1]
भारतीय इतिहास से सम्बंध
मुईजुद्दीन ने ग़ज़नी में अपनी सत्ता बढ़ाकर भारत पर आक्रमण करने प्रारंभ कर दिए। उस समय लाहौर में ग़ज़नवियों का अंतिम बादशाह खुसरो मलिक राज्य करता था और मुल्तान करामतियों के अधिकार में था। मुईजुद्दीन ने 1174 ई. में मुल्तान और उसके उपरांत उच्च पर अधिकार कर लिया। उच्च उस समय भट्टी वंश के राजा के अधीन था। 1178 ई. में अन्हिलवाड़ा (गुजरात) के राजा भीमदेव पर आक्रमण कर दिया किंतु सुल्तान को वापस होना पड़ा। 1179 ई. में उसने पेशावर पर अधिकार किया। 1182 ई. में उसने सिंध के समुद्री तट पर स्थित देवल को जीता। 1186 अथवा 1187 ई. में उसने खुसरो मलिक को पराजित कर लाहौर पर क़ब्ज़ा कर लिया। 1191 ई. में भटिंडा के दृढ़ क़िले पर अधिकार कर उसने पृथ्वीराज चौहान पर चढ़ाई की। तराइन के युद्ध में पृथ्वीराज ने मुईजुद्दीन को बुरी तरह पराजित कर दिया और सुल्तान स्वयं बड़ी कठिनाई से रणक्षेत्र से भाग सका। पृथ्वीराज भटिंडा तक बढ़ता चला गया, किंतु 1192 ई. में सुल्तान ने पुन: पृथ्वीराज पर आक्रमण किया और तराइन के युद्ध में उसे पराजित कर दिया।
सुल्तान ग़ज़नी वापस चला गया। 1193 ई. में उसने कन्नौज पर आक्रमण किया। इटावा के समीप चंदावर में घोर युद्ध हुआ। जयचंद मारा गया। दूसरे वर्ष उसने 'थनकिर' (बयाना) तथा ग्वालियर पर भी अधिकार कर लिया। 1204 ई. में उसने ख्वारिज्म पर पुन: आक्रमण किया, किंतु उसे पराजित होकर ग़ज़नी वापस आना पड़ा। इसी बीच में पंजाब के कबीलों, विशेषकर खोक्खरों ने लाहौर के समीप विद्रोह कर दिया। सुल्तान उन्हें दंड देने के लिये पुन: भारत पहुँचा, किंतु वापस होते समय सिंध नदी पर स्थित 'दमियक' नामक स्थान पर मुलहिदों ने 1206 में उसकी हत्या कर दी। उसकी मृत्यु के उपरांत गोर वंश की भी शक्ति छिन्न-भिन्न हो गई और 1215 ई. में ख्वरिज्मशाहियों ने उनका पूर्णत: अंत कर दिया।[1]
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