चिंता छांड़ि अचिंत रहु -कबीर
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चिंता छांड़ि अचिंत रहु, साँई है समरत्थ। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! तू चिंता छोड़कर निश्ंचित रह। प्रभु सामर्थ्यवान है। पशु, पक्षी और अन्य जीव-जन्तुओं को भी उनकी आवश्यकता के अनुसार प्रभु ने सम्पदा एकत्र कर रखी है। जिसने उनके लिए सभी आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति की है, वही तेरे लिए करेगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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