जबीन जलील का फ़िल्मी कॅरियर
जबीन जलील का फ़िल्मी कॅरियर
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पूरा नाम | जबीन जलील |
जन्म | 1 अप्रॅल, 1936 |
जन्म भूमि | दिल्ली, भारत |
अभिभावक | पिता- सैयद अबू अहमद जलील, माता- दिलारा जलील |
पति/पत्नी | अशोक काक |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिन्दी फ़िल्में |
मुख्य रचनाएँ | 'लुटेरा', 'नई दिल्ली', 'चारमीनार', 'जीवनसाथी', 'रात के राही', 'बंटवारा', 'खिलाड़ी', 'ताजमहल' और 'राजू' आदि। |
विद्यालय | कोलकाता विश्वविद्यालय |
प्रसिद्धि | फ़िल्म अभिनेत्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | साल 1954 में रिलीज हुई ‘ग़ुज़ारा’ जबीन की पहली फ़िल्म थी, जिसमें उनके नायक करण दीवान थे। संगीत ग़ुलाम मोहम्मद का था। फ़िल्म तो ज़्यादा नहीं चली लेकिन जबीन अपनी तरफ़ लोगों का ध्यान आकृष्ट करने में ज़रूर कामयाब रहीं। |
जबीन जलील हिन्दी फ़िल्मों की कामयाब अभिनेत्रियों में से एक रही हैं। उन्होंने कई पंजाबी फ़िल्मों में भी काम किया था। साल 1962 में बनी पंजाबी फ़िल्म ‘चौधरी करनैल सिंह’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नेशनल अवार्ड भी मिला, जिसमें उनके हीरो प्रेम चोपड़ा थे।
फ़िल्मी कॅरियर
साल 1954 में रिलीज हुर्इ ‘ग़ुज़ारा’ जबीन जलील की पहली फ़िल्म थी, जिसमें उनके हीरो करण दीवान थे। संगीत ग़ुलाम मोहम्मद का था। फ़िल्म तो ज्यादा नहीं चली लेकिन जबीन अपनी तरफ़ लोगों का ध्यान आकृष्ट करने में ज़रूर कामयाब रहीं। साल 1955 में उनकी दूसरी फ़िल्म ‘लुटेरा’ रिलीज़ हुई जिसमें उनके नायक नासिर ख़ान थे।
सही मायनों में जबीन जलील को पहचान मिली अपनी तीसरी फ़िल्म ‘नई दिल्ली’ से जिसमें उन्होंने नायक किशोर कुमार की बहन निक्की का रोल किया था। 1956 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म में जबीन के नायक की भूमिका अभिनेत्री नलिनी जयवन्त के पति प्रभुदयाल ने की थी। शंकर-जयकिशन के संगीत से सजी, प्रोडयूसर-डायरेक्टर मोहन सहगल की ये फ़िल्म उस दौर की सफलतम फ़िल्मों में से थी।[1]
फ़िल्म ‘नई दिल्ली’ की सफलता का जबीन को भरपूर फायदा मिला। 1950 के दशक के आख़िर में उनकी ‘चारमीनार’, ‘फ़ैशन’, ‘जीवनसाथी’, ‘हथकड़ी’, ‘पंचायत’, ‘रागिनी’, ‘बेदर्द ज़माना क्या जाने’ और ‘रात के राही’ जैसी फ़िल्में रिलीज़ हुई। ‘तुम और हम’ (फ़ैशन), ‘मदभरे ये प्यार की पलकें’ (फ़ैशन), ‘ता थैय्या करते आना’ (पंचायत), ‘इस दुनिया से निराला हूं’ (रागिनी), ‘पिया मैं हूं पतंग तू डोर’ (रागिनी), ‘क़ैद में है बुलबुल सैय्याद मुस्कुराए’ (बेदर्द ज़माना क्या जाने), ‘दूर कहीं तू चल’ (बेदर्द ज़माना क्या जाने), ‘आ भी जा बेवफा’ (रात के राही), ‘तू क्या समझे तू क्या जाने’ (रात के राही) और ‘एक नज़र एक अदा’ (रात के राही) जैसे उन पर फ़िल्माए गए कई गीत भी उस दौर में बेहद मशहूर हुए थे।
1960 के दशक में जबीन जलील ने ‘बंटवारा’, ‘खिलाड़ी’, ‘सच्चे मोती’, ‘ताजमहल’ और ‘राजू’ जैसी कुछ फ़िल्मों में काम किया। फ़िल्म ‘ताजमहल’ में 'लाडली बानो' का उनका किरदार बेहद सराहा गया था। फ़िल्म ‘बंटवारा’ का 'जवाहर कौल' और जबीन पर पिक्चराइज़ हुआ गीत ‘ये रात ये फिजाएं फिर आएं या न आएं’ तो आज भी संगीतप्रेमियों के बीच उतना ही लोकप्रिय है। उसी दौरान उन्हें साल 1962 में बनी पंजाबी फ़िल्म ‘चौधरी करनैल सिंह’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नेशनल अवार्ड भी मिला, जिसमें उनके नायक प्रेम चोपड़ा थे। ‘चौधरी करनैल सिंह’ प्रेम चोपड़ा की पहली फ़िल्म थी। इसके बाद जबीन ने तीन और पंजाबी फ़िल्मों ‘कदी धूप कदी छांव’, ‘ऐ धरती पंजाब दी’ और ‘गीत बहारां दे’ में काम किया।
साल 1968 में जबीन की शादी हुई। जोधपुर के रहने वाले कश्मीरी मूल के उनके पति अशोक काक कोडक कम्पनी के प्रेसिडेण्ट थे और उस दौर में देश के सबसे कम उम्र के सी.ई.ओ. थे। पिलानी से एम.बी.ए. पास अशोक भी बेहद पढ़े-लिखे ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे और वह जबीन के छोटे भाई असजद जलील के दोस्त थे। जबीन कहती हैं- "मैं सैयद मुस्लिम थी और अशोक कश्मीरी पण्डित। लेकिन हम दोनों ही के परिवारों का माहौल इतना खुला हुआ था कि धर्म कहीं भी हमारी शादी में आड़े नहीं आया। शादी के बाद मैंने अपना पूरा ध्यान गृहस्थी सम्भालने में लगा दिया। शादी के बाद मैंने सिर्फ़ एक फ़िल्म की और वह थी ‘वचन’ जो 1974 में रिलीज़ हुई थी।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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