जस गीत
जस गीत छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में काफ़ी प्रसिद्ध है। मुख्यत: यह देवी शक्ति की अराधना के लिये ओजपूर्ण स्वर में पारम्परिक वाद्य यन्त्रों के साथ गाया जाने वाला गीत है। जस गीत, 'यश गीत' का अपभ्रंश है।
छत्तीसगढ़ का लोक गीत
छत्तीसगढ़ का लोक जीवन गीतों के बिना अधूरा है। यहाँ के लोक गीतों में जस गीत का प्रभाव बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह गीत देवी की स्तुति, उनसे विनती तथा प्रार्थना आदि के लिए गाया जाता है। छत्तीसगढ़ में देवी का स्थान बहुत ऊँचा है। अनेक जगह महामाया देवी का मंदिर देखने को मिलता है, जैसे- रतनपुर, आरंग, रायपुर, पाटन, दन्तेवाड़ा, अम्बागढ़ चौकी, डोंगरगढ़, कांकेर। न जाने कितने सालों से देवी के भक्तजन जस गीत लिखते चले आये हैं। गीतकार खो गये हैं, लेकिन उनके लिखे गीत लोक जीवन का अंश बन गये हैं।[1]
नवरात्र में गायन
नवरात्रि का पर्व वर्ष में दो बार आता है। एक शरद नवरात्रि, दूसरा बसन्त नवरात्रि। शरद में देवी दुर्गा की पूजा होती है। उस वक्त पूरे छत्तीसगढ़ में जस गीत गाये जाते हैं। नवरात्रि में पहले दिन जवारा बोया जाता है और नवमी के दिन उसका विसर्जन होता है। जब विसर्जन करने जाते हैं तो महिलाएँ निम्न गीत गाती हुई आगे बढ़ती हैं-
तुम खेलव दुलखा
रन बन रन बन हो
का तोर लेवय रइंय बरम देव
का तोर ले गोरइंया
का लेवय तोर बन के रक्सा
रनबन रन बन हो ..
नरियर लेवय रइंया बरमदेव
बोकरा ले गोरइंया
कुकरा लेवय बन के रक्सा
रन बन रन बन हो ....
- देवी को फूलों से सजा रही हैं महिलाएँ-
मोर चले महामाई दुलख लेवर बर हो
खोखमा फूल के हाथ बिजुलिया
कंवत फूल पैजनिया
दौना -
मखवना के अनवट बिछिया
सेंदूर सिर में सोहे
केकती केवरा दसमत सोहे
रवि छबि झलके माता
जँवारा का जस गीत
जँवारा के जस गीत में देवी धनैया और देवी कौदैया का जिक्र बार-बार होता है। इसके बारे में जीवन यदु छत्तीसगढ़ी गीत में लिखते हैं- "देवी धनैया और देवी कौदैया क्षेत्रीय स्तर की लोक मातृकाएँ हैं। पुराणों में इनका कहीं उल्लेख नहीं मिलता। लोक गीतों में ये दोनों मातृकाएँ पुरान्वा स्वीकृता देवी दुर्गा की सखियाँ या सेविका के रूप में पूजित होती हैं।... लोक गीतों में देवी दुर्गा मूल मातृका के रूप में आती हैं और उन्हें "बूढ़ी-माय" कहा जाता है।"[1]
"लिमवा के डारा मं गड़ेला हिंडोेलवा,
लाखों आये, लाखों जाये
कौन ह झूले
कौन ह झुलाये?
कौन ह देखन आये?
बूढ़ी माय झूले
कोदैया माय झुलाये
धनैया देखन आये।"
"कौन माई पहिरे गजरा?
कौन माई पहिरे हार?
कौन माई पहिरे माथ मटुकिया
सोला ओ सिंगार
मैया फूल गजरा
धनैया पहिरे गजरा
कोदैया पहिरे हार।
बुढ़ी माई पहिरे माथ मटुकिया
सोलाओं सिंगार
मैया फूल गजरा।।
दोनों देवियों के नाम का लोकगीतों में हमेशा साथ-साथ ज़िक्र होता है। छत्तीसगढ़ विख्यात है धान के लिये और कोदो की फ़सलों के लिए। दोनों देवियों को फ़सलों की देवी के रूप में लोग मानते थे। इसीलिये लोकगीतों में उनका नाम आदर के साथ लिया जाता है। दोनों देवियों की कहीं मूर्ति नहीं मिलती और न ही कहीं मन्दिर दिखाई देता है। जस गीतों के माध्यम से दोनों देवियों ने लोगों के मन में अपनी जगह बना ली है।[1]
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