ज्यौं ज्यौं हरि गुण साँभलौं -कबीर
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ज्यौं ज्यौं हरि गुण साँभलौं, त्यौं त्यौं लागै तीर। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि मैं जितना ही प्रभु के गुण का स्मरण करता हूँ, उतना ही मिलन की उत्कण्ठा तीव्र होती जाती है और विरह की वेदना तीर के समान चोट करती है। किन्तु कबीर उस वेदना से भागनेवाला नहीं है। वह धैर्य से उसको सहन करता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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