डागल ऊपरि दौरनां -कबीर
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डागल ऊपरि दौरनां, सुख नींदड़ी न सोइ। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! यह मानव जीवन पुष्पों की शय्या नहीं अपितु ऊबड़-खाबड़ कंटकाकीर्ण मार्ग पर दौड़ने के समान है। लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठिन साधना करनी पड़ेगी। क्षुद्र सांसारिक सुखों में लिप्त होकर सुख की नींद न सो। अपने शुभ कर्मों और पुण्य के प्रताप से तुझे देवालय के समान यह पवित्र मानव शरीर प्राप्त हुआ है। इसे तुच्छ कार्यों में लगाकर तू नष्ट न कर।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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