डी. वाई. चन्द्रचूड़
डी. वाई. चन्द्रचूड़
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पूरा नाम | धनञ्जय यशवंत चन्द्रचूड़ |
जन्म | 11 नवम्बर, 1959 |
जन्म भूमि | मुंबई, महाराष्ट्र |
अभिभावक | माता- प्रभा चन्द्रचूड़ |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | भारतीय न्यायपालिका |
शिक्षा | बीए (ऑनर्स) बेचलर ऑफ़ लॉ डिग्री |
विद्यालय | स्कूल- कैथेड्रल और जॉन कॉनन स्कूल, मुंबई; सेंट कोलंबिया स्कूल, दिल्ली कॉलेज- सेंट स्टीफंस कॉलेज, नई दिल्ली; दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली; हार्वर्ड लॉ स्कूल, यू.एस.ए. |
प्रसिद्धि | 50वें मुख्य न्यायाधीश, भारत |
नागरिकता | भारतीय |
पद | मुख्य न्यायाधीश, भारत- 9 नवम्बर, 2022 से पदस्थ न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय, भारत-- 13 मई, 2016 से 8 नवम्बर, 2022 |
पूर्वाधिकारी | यू. यू. ललित |
अन्य जानकारी | डी. वाई. चन्द्रचूड़ के दिन की शुरुआत सुबह 3.30 बजे होती है। हफ्ते में लगभग 250 केस पर काम करना होता है। इसीलिये सुबह 9-10 बजे तक वे काम खत्म कर देते हैं, ताकि 1-2 घंटे किताब पढ़ सकें। |
अद्यतन | 13:14, 11 नवम्बर 2022 (IST)
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धनञ्जय यशवंत चन्द्रचूड़ (अंग्रेज़ी: Dhananjaya Yeshwant Chandrachud, जन्म- 11 नवम्बर, 1959) भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश हैं। उन्हें 13 मई, 2016 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में चुना गया था। उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 45वें मुख्य न्यायाधीश (31 अक्टूबर, 2013 से 12 मई, 2016) और मुम्बई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश (29 मार्च, 2000 से 30 अक्टूबर, 2013) के रूप में कार्य किया है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश यू. यू. ललित के सेवानिवृत्त होने के बाद डी. वाई. चन्द्रचूड़ 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य करेंगे। वह भारत के 16वें और सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति वाई. वी. चन्द्रचूड़ के पुत्र हैं।
परिचय
न्यायाधीश डी. वाई. चन्द्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर, 1959 को महाराष्ट्र के मुंबई शहर में हुआ था। वह देशस्थ ऋग्वेदी ब्राह्मण परिवार से हैं। डी. वाई. चन्द्रचूड़ के पिता न्यायमूर्ति यशवंत विष्णु चन्द्रचूड़, भारत के 16वें मुख्य न्यायाधीश थे, जिन्होंने 1978 से 1985 तक सेवा की थी। वाई. वी. चन्द्रचूड़ भारत में सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले मुख्य न्यायाधीश हैं, जिन्होंने 2,696 दिनों के कार्यकाल के लिए सेवा की। उनकी मां प्रभा चन्द्रचूड़ एक शास्त्रीय संगीतकार थीं।[1]
शिक्षा
न्यायाधीश डी. वाई. चन्द्रचूड़ ने अपनी स्कूली शिक्षा कैथेड्रल और जॉन कॉनन स्कूल, मुंबई और सेंट कोलंबिया स्कूल, दिल्ली से की। उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज, नई दिल्ली से अर्थशास्त्र में बीए (ऑनर्स) किया। वर्ष 1979 में वहां से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। साल 1982 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में लॉ की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने 1983 में मास्टर ऑफ़ लॉ की डिग्री और 1986 में हार्वर्ड लॉ स्कूल, यूएसए से एसजेडी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
कॅरियर
सन 1982 में एलएलबी के बाद डी. वाई. चन्द्रचूड़ ने विभिन्न वकीलों और न्यायाधीशों की सहायता करने वाले एक ट्रैनी के रूप में कार्य किया, जिसमें एडवोकेट फली सैम नरीमन के लिए महत्वपूर्ण नोट तैयार करना भी शामिल था। हार्वर्ड से ग्रेजुएशन करने के बाद चन्द्रचूड़ ने यूएस में लॉ फर्म सुलिवन और क्रॉमवेल एलएलपी में काम किया। भारत लौटने पर, उन्होंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय और बॉम्बे उच्च न्यायालय में कानून का अभ्यास किया। उन्हें जून 1998 में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा एक सीनियर एडवोकेट के रूप में चुना गया था। एक सीनियर एडवोकेट के रूप में, वह जनहित याचिका, बंधुआ महिला श्रमिकों के अधिकार, कार्यस्थल में एचआईवी पॉजिटिव श्रमिकों के अधिकार आदि से जुड़े कई महत्वपूर्ण मामलों में पेश हुए। उन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा बॉम्बे बेंच की स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए नियुक्त किया गया था।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल
सन 1998 से 2000 तक उन्होंने न्यायाधीश के रूप में अपनी नियुक्ति तक अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में कार्य किया।
न्यायाधीश, बंबई उच्च न्यायालय
29 मार्च 2000 को उन्हें बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में प्रोमोट किया गया; उन्होंने बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में 13 साल तक सेवा की।
मुख्य न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय
31 अक्टूबर 2013 को उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 45वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली और 12 मई 2016 तक वहां सेवा की।
न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, भारत
13 मई 2016 को उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में प्रोमोट किया गया था। 24 अप्रैल 2021 से वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम का हिस्सा बन गए, जो देश की संवैधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।[1]
महत्वपूर्ण निर्णय
पिता की तरह न्यायाधीश डी. वाई. चन्द्रचूड़ 2016 में देश के सर्वोच्च न्यायालय में शामिल हुए और कई मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो कई सुधारों का मार्ग प्रशस्त कर चुके हैं। उनको देश में महिलाओं के अधिकारों की पैरोकार के रूप में भी जाना जाता है।
- सशस्त्र बलों में महिलाओं को स्थायी कमीशन
सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश डी. वाई. चन्द्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसले में भारतीय सशस्त्र बलों और भारत सरकार को कमांड पोस्टिंग सहित सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का निर्देश दिया।
- महिलाओं के लिए सबरीमाला मंदिर में प्रवेश
महिलाओं के अधिकारों की वकालत करने की अपनी प्रकृति के समान, न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में बहुमत की राय का हिस्सा थे। उन्होंने कहा कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक असंवैधानिक है। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ इस फैसले पर तब भी टिके रहे, जब नौ-न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ ने पिछले फैसले पर समीक्षा का फैसला किया।
- धारा 377 को अपराधमुक्त करना
सितंबर 2018 में जब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध से मुक्त करने के लिए धारा 377 को पढ़ा तो न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़ की सहमति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह किसी भी वयक्ति को यह निर्णय लेना की उसको किससे प्यार करना है और किसके साथ अपनी जिंदगी बितानी है यह उसका अधिकार है और हम उसको छीन नहीं सकते है, फिर चाहे कोई भी वयक्ति अपने किसी भी लिंग वाले वयक्ति के साथ जीना चाहे तो वो अपने फैसला लेने के लिए हम अपने फैसले उसके ऊपर नहीं थोप सकते है।
- गर्भपात कराने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश डी. वाई. चन्द्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने हाल ही में कहा था कि वैवाहिक स्थिति से गर्भपात कराने के किसी के अधिकार की जरुरत नहीं पड़नी चाहिए। इस निर्णय को अंतिम निर्णय माना गया माना गया।
- हदिया केस
लव जिहाद के इस मामले में न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़ की शीर्ष अदालत की खंडपीठ ने वयस्क महिला के स्वायत्तता के अधिकार और उसकी शादी और धर्म अपनाने के विकल्प के बारे में निर्णय लेने के अधिकार पर जोर दिया।[1]
- राइट ऑफ़ प्राइवेसी का अधिकार
एक मौलिक अधिकार के रूप में 'Right to Privacy' के अधिकार को बरकरार रखने वाली सशर्त पीठ के लिए निर्णय लिखते समय, न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़ ने आपात काल के युग के बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि मौलिक अधिकारों को ऐसे समय में निलंबित किया जा सकता है जब आपात काल की घोषणा की जाती है। खारिज किए गए फैसले को एक पीठ द्वारा पारित किया गया था, जिसमें न्यायमूर्ति वाई. वी. चन्द्रचूड़ शामिल थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की जीवनी (हिंदी) shubhamsirohi.com। अभिगमन तिथि: 11 नवंबर, 2022।
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