व्योमकेश चक्रवर्ती
व्योमकेश चक्रवर्ती ( जन्म- 1855, जैसोर, पूर्वी बंगाल, मृत्यु- 1929) प्रसिद्ध बैरिस्टर और सार्वजनिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने कटक और कोलकाता में अध्यापन का कार्य किया और बाद में छात्रवृत्ति पर कृषि का अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए।
परिचय
प्रसिद्ध बैरिस्टर और सार्वजनिक कार्यकर्ता व्योमकेश चक्रवर्ती का जन्म 1855 ई. में पूर्वी बंगाल के जैसोर जिले में हुआ था। यूनिवर्सिटी से गणित में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने कुछ वर्षों तक कटक और कोलकाता में अध्यापन का कार्य किया बाद में छात्रवृत्ति पर कृषि का विशेष अध्ययन करने के लिए वे इंग्लैंड गए और वहां से कानून की डिग्री भी लेकर आए। 1885 से उन्होंने कोलकाता हाईकोर्ट में वकालत आरंभ की और शीघ्र ही उनकी गणना अत्यंत सफल बैरिस्टरों में होने लगी।[1]
सार्वजनिक जीवन
1905 में बंगाल के विभाजन का विरोध करने के साथ व्योमकेश चक्रवर्ती का सार्वजनिक जीवन आरंभ हुआ। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी सम्मिलित हुए और बाद में स्वराज्य पार्टी में चले गए। वे संघर्ष के स्थान पर वार्तालाप की राजनीति में विश्वास करते थे। वे जमींदारी प्रथा बनाए रखने के समर्थक थे किंतु स्वदेशी के भी समर्थक थे। 1920 में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन कोलकाता में हुआ था। उसकी स्वागत समिति के अध्यक्ष व्योमकेश चक्रवर्ती ही थे। 1924 में वे बंगाल लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए। बाद में उन्होंने स्वराज्य पार्टी से संबंध तोड़कर बंगाल में मंत्री पद स्वीकार कर लिया। लेकिन कुछ ही समय बाद अविश्वास प्रस्ताव के कारण उन्हें अपने पद से हट जाना पड़ा।
योगदान
व्योमकेश चक्रवर्ती का बंगाल में उद्योगों की स्थापना के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने इस क्षेत्र में कई सफल प्रयत्न किए। उनका एनी बीसेंट, गांधीजी, लाला लाजपत राय, अरविंद, सुरेंद्रनाथ बनर्जी आदि से घनिष्ट संबंध था। वे संस्कृत के अच्छे जानकार थे।
मृत्यु
व्योमकेश चक्रवर्ती का 1929 ई. में निधन हो गय
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 818 |
बाहरी कड़ियाँ
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