नीलाम्बरा -महादेवी वर्मा
नीलाम्बरा -महादेवी वर्मा
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कवि | महादेवी वर्मा |
मूल शीर्षक | नीलाम्बरा |
प्रकाशक | राजपाल एंड सन्स |
प्रकाशन तिथि | 2005 (नया संस्करण) |
ISBN | 81-7028-495-3 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 105 |
भाषा | हिंदी |
प्रकार | काव्य संग्रह |
मुखपृष्ठ रचना | सजिल्द |
नीलाम्बरा महादेवी वर्मा का कविता-संग्रह है। ‘नीलाम्बरा’ में संग्रहीत कविताओं के बारे में स्वयं महादेवीजी ने यह स्वीकार किया है कि इसमें मेरी ऐसी रचनाएँ संग्रहीत हैं जो मेरी जीवन-दृष्टि, दर्शन, सौन्दर्यबोध और काव्य-दृष्टि का परिचय दे सकेंगी। महादेवी वर्मा की सम्पूर्ण काव्य-यात्रा न सिर्फ़ आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास बनने का साक्षी है, भारतीय मनीषा की महिमा का भी वह जीवन्त प्रतीक है। उनकी कविताएँ हिन्दी साहित्य की एक सार्थक कालजयी उपलब्धि हैं। इसमें महादेवी वर्मा की निम्नलिखित रचनाओं का संकलन है।
- नये घन
- यह संध्या फूली
- हुई विद्रुम बेला नीली
- सृष्टि मिटने पर गर्वीली
- मुरझाया फूल
पुस्तकांश
मानव किसी शून्य में जन्म न लेकर एक विशेष भौगोलिक परिवेश में जन्म और विकास पाता है, जो धरती, आकाश, नदी, पर्वत, वनस्पति आदि का संघात है। मनुष्य का शरीर, जिन पंच तत्त्वों का सानुपातिक निर्माण है, वे ही व्यापक रूप से उसके चारों ओर फैले हुए हैं। इस भौतिक परिवेश का स्वभाव ही प्रकृति है और किसी कारण से उसमें विरोधी तत्त्वों का उत्पन्न हो जाना ही विकृति कहा जाएगा। देवत्वपरक दृष्टि ने प्रकृति के विभिन्न रूपों को दैवी या अतिमानवीय शक्तियों से सम्पन्न माना है, अतः उसके द्वारा भिन्न-भिन्न कार्यों को सम्पादित करने वाले बहुदेववाद और एक सर्जन के रूप में एकेश्वरवाद की स्थापना सहज हो गई, जिसने अनेक धर्मों में विकास किया। अवश्य ही इस दृष्टि ने मनुष्य को आस्था का सम्बल दिया, परन्तु उसने सम्प्रदाय को जन्म देकर उसे विभाजित भी किया है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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