साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध
साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध
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लेखक | महादेवी वर्मा |
मूल शीर्षक | साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध |
प्रकाशक | लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद |
प्रकाशन तिथि | 1962 (पहला संस्करण) |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
शैली | निबंध |
मुखपृष्ठ रचना | अजिल्द |
साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध महादेवी वर्मा के आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह है। इसका प्रकाशन 1962 में हुआ था।
पुस्तकांश
महादेवी जी का साहित्य-विषयक प्रतिमानस किसी भी प्रकार की पूर्वग्रह-प्रवृत्ति से सीमित न होकर जीवन के विविधता के साथ संचरणशील है। जीवन के विविध मूल्यों के सम्बन्ध में इतना व्यापक और सुसंगत दृष्टिकोण उपस्थिति करने के कारण विवेचना आधुनिक समालोचना के लिए अभिनव पथ निर्माण करने में सफल सिद्ध हुई है। सामयिक साहित्यक प्रवृत्तियों के विवेचन के साथ-साथ इनकी समालोचना सांस्कृति एवं ऐतिहासिक अनुशीलन की दृष्टि से भी अत्यन्त उपयोगी है। इनका सन्तुलित तथा संयमित विवेचन आधुनिक समालोचना की गति के लिए प्रेरक और प्राणप्रद सिद्ध हुआ है।
लोक हित-तन्त्री सँभाले
सिंधु लहरों पर अधिश्रित,
बह चला कवि क्रान्तदर्शी
सब दिशाओं में अबाधित !
समीक्षा की कसौटी
महादेवी जी की समीक्षा की मुख्य कसौटी अनुभूति, विचार और कल्पना से समन्वित उनका जीवन-दर्शन है, जो समीक्षा की प्रगति के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुआ है। उनकी मान्यता है- ‘किसी मानव समूह को, उसके समस्त परवेश के साथ तत्वतः जानने के लिए जितने माध्यम उपलब्ध हैं उनमें सबसे पूर्ण और मधुर उसका साहित्य ही कहा जाएगा। साहित्य में मनुष्य का असीम, अतः अपरिचित और दुर्बोध जान पड़ने वाला अन्तजर्गत बाह्य-जगत में अवतरित होकर निश्चित परिधि तथा सरल स्पष्टता में बँध जाता है तथा सीमित, अतः चिर परिचय के कारण पुराना लगने वाला बाह्यजगत अन्तर्जगत के विस्तार में मुक्त होकर चिर नवीन रहस्यमयता पा लेता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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