न्यू थियेटर फ़िल्म कम्पनी

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न्यू थियेटर फ़िल्म कम्पनी कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) की फ़िल्म निर्माण संस्था थीं। इस संस्था का भारतीय सिनेमा निर्माण के इतिहास में अप्रतिम योगदान रहा है। न्यू थियेटर की पहली फ़िल्म "नातिर पूजा" बंगला भाषा में सन 1932 में बनी थी। इस फ़िल्म की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसका निर्देशन रवीन्द्रनाथ टैगोर ने किया था।

स्थापना

बी. एन. सरकार ने 10 फ़रवरी, 1931 में कलकत्ता के टोलीगंज में न्यू थियेटर के नाम से एक फ़िल्म निर्माण संस्था की स्थापना की। बी. एन. सरकार पेशे से इंजीनियर थे। इंग्लैंड से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर लौटने के बाद अपने कारोबार में जब उन्हें कोई भविष्य नहीं दिखाई दिया तो वे सिनेमा की ओर मुड़ गए। सर्वप्रथम उन्होंने एक साऊण्ड स्टुडियो खोला, फिर उन्होंने इंपीरियल फ़िल्म कम्पनी के आर्देशिर ईरानी से हॉलीवुड से आयातित मशीनों और अन्य आधुनिक उपकरणों को खरीदकर अपने न्यू थियेटर में लगाया।[1]

फ़िल्म निर्माण

कई युवा फ़िल्म निर्माता न्यू थियेटर की ओर आकर्षित होने लगे। धीरे-धीरे उस समय के मशहूर फ़िल्म निर्माता और दिग्गज कैमरा मैन और निर्देशक नितिन बोस, चारु रॉय, प्रफुल्ल रॉय जैसे लोग जुड़ने लगे। दुर्गादास बनर्जी, अमर मल्लिक, जीवन गांगुली, पी. सी. बरुआ और धीरेन गांगुली आदि जैसे कलाकार भी अपनी रुचि न्यू थियेटर में दिखाने लगे। इनमें पी. सी. बरुआ अभिनय के साथ निर्देशन भी करने लगे थे। उस समय के कला सम्राट कुन्दन लाल सहगल ने भी न्यू थियेटर के लिए कई फ़िल्मों में अभिनय किया और गीत गाये थे। न्यू थिएटर एक ऐसा स्टुडियो था, जिसने बंगला और हिंदी में एक साथ कई सफल और लोकप्रिय फ़िल्मों का निर्माण किया। बी. एन. सरकार ने हमेशा बंगला की फ़िल्मों के लिए बंगाल के कलाकार और हिंदी फ़िल्मों के लिए हिंदी भाषी मशहूर कलाकारों को लेकर एक साथ फ़िल्मों का निर्माण कर प्रतिष्ठा अर्जित की।

न्यू थियेटर की पहली फ़िल्म "नातिर पूजा" बंगला भाषा में सन 1932 में बनी थी। इस फ़िल्म की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसका निर्देशन रवीन्द्रनाथ टैगोर ने किया था। सन 1933 में देवकी बोस ने बंगला में "मरा बाई" और हिंदी में "राजरानी मीरा" फ़िल्मों का निर्माण किया। अपने समय के दो महान् गायक कुन्दन लाल सहगल और के. सी. डे. को साथ लेकर देवकी बोस ने सन 1933 में हिंदी में "पुराण भक्त" नाम से फ़िल्म बनाई। के. एल. सहगल की यह न्यू थियेटर के लिए दूसरी फ़िल्म थी। इससे पहले वे "राजरानी मीरा" में अभिनय कर चुके थे। इस फ़िल्म में उनके साथ पृथ्वीराज कपूर ने भी अभिनय किया था। इसके बाद सन 1933 में बनी "यहूदी की लड़की" में भी के. एल. सहगल ने अभिनय किया था।

'चंडीदास' की सफलता

न्यू थियेटर की सफलतम पहली फ़िल्म सन 1932 में बंगला में बनी "चंडीदास" थी, जिसका निर्देशन देवकी बोस ने किया था। इस फ़िल्म ने लोकप्रियता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। यह फ़िल्म कलकत्ता में बी. एन. सरकार के थियेटर "चित्रा" में एक वर्ष से भी अधिक समय तक चली। इसके अतिरिक्त "चंडीदास" वह पहली फ़िल्म थी, जिसमें दृश्यों के प्रभाव को उभारने के लिए पार्श्व संगीत का उपयोग किया गया था। यह फ़िल्म सामाजिक रूढ़िवादी परम्पराओं पर सीधा प्रहार करती है जिसमें जात-पांत, छूत–अछूत, अनमेल विवाह जैसी कुरीतियाँ शामिल हैं। बंगला में "चंडीदास" की अपार सफलता से उत्साहित होकर बी. एन. सरकार ने इसे हिंदी में इसी नाम से नितिन बोस के निर्देशन में पुन: निर्माण किया। हिंदी में भी यह फ़िल्म बहुत लोकप्रिय हुई। इसमें भी मुख्य भूमिका में के. एल. सहगल ही थे।[1]

'देवदास' की सफलता

'चंडीदास' के बाद न्यू थियेटर की दूसरी सबसे बड़ी लोकप्रिय फ़िल्म थी सन 1935 में पी. सी. बरुआ के निर्देशन में हिंदी और बंगला में एक साथ बनी फ़िल्म "देवदास"। महान् उपन्यासकार शरतचंद्र के लोकप्रिय उपन्यास पर बनी इस फ़िल्म के बंगला संस्करण में देवदास की मुख्य भूमिका स्वयं पी. सी. बरुआ ने निभाई थी और हिंदी में बनी इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका के. एल. सहगल ने निभाई थी। एक साथ दोनों फिल्म सुपरहिट हुईं। इस तरह सामाजिक फ़िल्मों के निर्माण में "न्यू थियेटर" ने भारतीय सिनेमा में अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया। बी. एन. सरकार एक प्रतिष्ठित फ़िल्म निर्माता के रूप में भारत में लोकप्रिय हो गए।

अन्य फ़िल्में

इसके बाद नितिन बोस ने सन 1937 में बंगला भाषा में "दीदी" और हिंदी में "प्रेसिडेंट" नाम की फ़िल्में एक साथ एक ही कथ्य पर बनाईं। "प्रेसिडेंट" में फिर पृथ्वीराज कपूर के साथ मुख्य भूमिका के. एल. सहगल ने निभाई थी। इस फ़िल्म के कई गीत आज भी सुनाई देते हैं, जैसे- सहगल का गाया यह गीत "एक बंगला बने न्यारा ...."। सन 1938 में फणी मजुमदार की बंगला में "साथी" और हिंदी में "स्ट्रीट सिंगर" 1939 में बनी। बंगला में "बड़ी दीदी", हिंदी में भी "बड़ी दीदी", हेमचन्द्र चुंद की बंगला में "पराजय" - हिंदी में "जीवन की रात", देवकी बोस की बंगला में "सुपरे" और हिंदी में "सपेरा" फ़िल्में चर्चित और लोकप्रिय रहीं हैं।

भीषण आग का लगना

न्यू थियेटर फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में सफलता की नई ऊँचाइयों को छूता रहा। अचानक 1940 में न्यू थियेटर में भीषण आग लग गई। बी. एन. सरकार इस दुर्घटना से स्तब्ध रह गए। आग लगने के कारणों का पता नहीं चल सका। इस दुर्घटना से बी. एन. सरकार बहुत आहत हुए, किन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। स्टूडियो के बचे-खुचे संसाधनों को इकट्ठा करके 1941 में सुबोध मित्र की "डॉक्टर" और नितिन बोस की बंगला में "परिचय" और हिंदी में "लगन" फ़िल्मों का निर्माण किया, जो उनके दृढ़ आत्मविश्वास का परिचायक है।[1]

बिमल रॉय का निर्देशन

इसके बाद 1941 में किन्हीं कारणों से कम्पनी के अति महत्वपूर्ण सदस्य, कैमरामैन और निर्देशक नितिन बोस ने कम्पनी छोड़ दी। उनके साथ कुछ अन्य लोगों ने भी न्यू थियेटर का साथ छोड़ दिया। फिर भी बी. एन. सरकार फ़िल्में बनाते रहे। 1944 में बनी बंगला फ़िल्म "उदयेर पाथे" और हिंदी में एक साथ बनी फ़िल्म "हमराही" का निर्देशन बिमल रॉय ने किया। बिमल रॉय की निर्देशक के रूप में यह पहली फ़िल्म थी। इसी वर्ष हेमचन्द्र चुंद ने के. एल. सहगल को लेकर लोकप्रिय फ़िल्म "मेरी बहन" बनाई। इस फ़िल्म की कथा द्वितीय विश्वयुद्ध में एक गाँव के स्कूल शिक्षक और ज़मींदार की बहन की प्रेम कथा पर आधारित थी। इस फ़िल्म के गीतों में से "दो नैना मतवाले तुम्हारे ...." और "ऐ क़ातिबे तकदीर मुझे इतना बता दे ....." आज भी सुने जाते हैं।

अंत

समय के साथ-साथ न्यू थियेटर भी पीछे छूटने लगा और अंतत: यह मशहूर कम्पनी सन 1945 में बंद हो गई। बी. एन. सरकार को कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें 1972 का दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रमुख है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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