प्राण कृष्ण पारिजा

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प्राण कृष्ण पारिजा
पूरा नाम प्राण कृष्ण पारिजा
जन्म 1 अप्रैल, 1891
जन्म भूमि बालीकुडा, बंगाल प्रेसीडेंसी (अब ओडिशा)
मृत्यु 2 जून, 1978
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र वैज्ञानिक
विषय वनस्पति विज्ञान
शिक्षा स्नातक
विद्यालय कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी
पुरस्कार-उपाधि 'पद्मभूषण'
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी प्राण कृष्ण पारिजा विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे। प्राण कृष्ण पारिजा ने सक्रिय राजनीति में भाग नहीं लिया। ये मानते थे कि देश में अनुशासन लाने के लिए अल्पकालिक 'डिक्टेटरशिप' और फिर केंद्र में सुदृढ़ सरकार होनी चाहिए।

प्राण कृष्ण पारिजा (अंग्रेज़ी: Prana Krushna Parija, जन्म: 1 अप्रैल, 1891; मृत्यु: 2 जून, 1978) भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। इंग्लैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से वनस्पति विज्ञान का अध्ययन करने के कारण ये इस विषय में वहां से पुरस्कार पाने वाले भारत के प्रथम भारतीय छात्र बने। विज्ञान के क्षेत्र में योगदान के लिए इन्हें राष्ट्रपति ने 'पद्मभूषण' की उपाधि से सम्मानित किया। प्राण कृष्ण पारिजा विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे।[1]

परिचय

प्राण कृष्ण पारिजा का जन्म 1 अप्रैल, 1819 को उड़ीसा के कटक ज़िले में एक निर्धन ग्रामीण परिवार में हुआ था। आर्थिक कठिनाई के कारण बड़ी उम्र होने पर ही ये स्कूल जा सके थे। फिर भी ये अपने अध्यवसाय से स्नातक की शिक्षा के लिए कॉलेज तक पहुंच गए। उसी समय उड़ीसा पृथक् प्रदेश बना था। वहाँ की सरकार की छात्रवृत्ति पर प्राण कृष्ण पारिजा को इंग्लैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ने का अवसर मिला और इन्होंने वहाँ वनस्पति विज्ञान का अध्ययन किया और इस विषय में वहां से पुरस्कार पाने वाले प्रथम भारतीय छात्र बने। विश्वयुद्ध के कारण इन्हें अधिक समय तक ब्रिटेन में रुकना पड़ा था।

भारत मेंं कार्य

प्राण कृष्ण पारिजा भारत आने पर कटक कॉलेज के प्रोफेसर और प्रिंसिपल बने। ये प्रदेश के कृषि निदेशक भी रहे। इसके बाद 1943 से 1948 तक ये उत्कल विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने। 1949 में प्राण कृष्ण पारिजा ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति का भार संभाला। 1951 से 1966 तक ये पुन: उत्कल विश्वविद्यालय के कुलपति बने। वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में इनके योगदान के लिए इन्हें राष्ट्रपति ने 'पद्मभूषण' की उपाधि देकर सम्मानित किया। प्राण कृष्ण पारिजा विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे। प्राण कृष्ण पारिजा ने सक्रिय राजनीति में भाग नहीं लिया। ये मानते थे कि देश में अनुशासन लाने के लिए अल्पकालिक 'डिक्टेटरशिप' और फिर केंद्र में सुदृढ़ सरकार होनी चाहिए।

मृत्यु

प्राण कृष्ण पारिजा की मृत्यु 2 जून, 1978) को हो गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 484 |

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