भगति भजन हरि नाँव है -कबीर
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भगति भजन हरि नाँव है, दूजा दुक्ख अपार। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि प्रभु की भक्ति और उनके नाम का भजन (जप) यही वस्तुत: सार है और सब बातें अपार दु:ख हैं। कबीर का यह कहना है कि मन, वचन और कर्म से प्रभु का स्मरण ही जीवन का सार है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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