भारत में समाचार पत्रों का इतिहास
भारत में समाचार पत्रों का इतिहास
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विवरण | 'समाचार पत्र' अथवा 'अख़बार' समाज और देश में हो रही घटनाओं पर आधारित एक प्रकाशन है। इसमें मुख्यत: ताजी घटनाएँ, खेल-कूद, व्यक्तित्व, राजनीति, विज्ञापन की जानकारियाँ सस्ते काग़ज़ पर छपी होती है। |
इतिहास | भारत में प्रथम समाचार पत्र निकालने का श्रेय 'जेम्स ऑगस्टस हिक्की' को मिला। उसने 1780 ई. में 'बंगाल गजट' का प्रकाशन किया, किन्तु इसमें कम्पनी सरकार की आलोचना की गई थी, जिस कारण उसका प्रेस जब्त कर लिया गया। |
प्रथम भारतीय समाचार पत्र | पहला भारतीय समाचार पत्र अंग्रेज़ी में 1816 ई. में कलकत्ता में गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा 'बंगाल गजट' नाम से निकाला गया। यह साप्ताहिक समाचार पत्र था। |
प्रथम हिन्दी समाचार पत्र | उदन्त मार्तण्ड हिन्दी का प्रथम समाचार पत्र था। इसका प्रकाशन 30 मई, 1826 ई. में कलकत्ता से एक साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू हुआ था। |
संबंधित लेख | समाचार पत्र, पत्रिका |
अन्य जानकारी | समाचार पत्र प्रायः दैनिक होते हैं लेकिन कुछ समाचार पत्र साप्ताहिक, मासिक एवं छमाही भी होते हैं। अधिकतर समाचारपत्र स्थानीय भाषाओं में और स्थानीय विषयों पर केन्द्रित होते हैं। |
भारत में समाचार पत्रों का इतिहास यूरोपीय लोगों के भारत में प्रवेश के साथ ही प्रारम्भ होता है। सर्वप्रथम भारत में प्रिंटिग प्रेस लाने का श्रेय पुर्तग़ालियों को दिया जाता है। 1557 ई. में गोवा के कुछ पादरी लोगों ने भारत की पहली पुस्तक छापी। 1684 ई. में अंग्रेज़ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भी भारत की पहली पुस्तक की छपाई की थी। 1684 ई. में ही कम्पनी ने भारत में प्रथम प्रिंटिग प्रेस (मुद्रणालय) की स्थापना की।
प्रथम समाचार पत्र
भारत में पहला समाचार पत्र कम्पनी के एक असंतुष्ट सेवक 'विलियम वोल्ट्स' ने 1766 ई. में निकालने का प्रयास किया, लेकिन अपने इस कार्य में वह असफल रहा। इसके बाद भारत में प्रथम समाचार पत्र निकालने का श्रेय 'जेम्स ऑगस्टस हिक्की' को मिला। उसने 1780 ई. में 'बंगाल गजट' का प्रकाशन किया, किन्तु इसमें कम्पनी सरकार की आलोचना की गई थी, जिस कारण उसका प्रेस जब्त कर लिया गया।
इस दौरान कुछ अन्य अंग्रेज़ी अख़बारों का प्रकाशन भी हुआ, जैसे- बंगाल में 'कलकत्ता कैरियर', 'एशियाटिक मिरर', 'ओरियंटल स्टार'; मद्रास में 'मद्रास कैरियर', 'मद्रास गजट'; बम्बई में 'हेराल्ड', 'बांबे गजट' आदि। 1818 ई. में ब्रिटिश व्यापारी 'जेम्स सिल्क बर्किघम' ने 'कलकत्ता जनरल' का सम्पादन किया। बर्किघम ही वह पहला प्रकाशक था, जिसने प्रेस को जनता के प्रतिबिम्ब के स्वरूप में प्रस्तुत किया। प्रेस का आधुनिक रूप जेम्स सिल्क बर्किघम का ही दिया हुआ है। हिक्की तथा बर्किघम का पत्रकारिता के इतिहास में महत्पूर्ण स्थान है। इन दोनों ने तटस्थ पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन का उदाहरण प्रस्तुत कर पत्रकारों को पत्रकारिता की ओर आकर्षित किया।
प्रथम साप्ताहिक अख़बार
पहला भारतीय अंग्रेज़ी समाचार पत्र 1816 ई. में कलकत्ता में गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा 'बंगाल गजट' नाम से निकाला गया। यह साप्ताहिक समाचार पत्र था। 1818 ई. में मार्शमैन के नेतृत्व में बंगाली भाषा में 'दिग्दर्शन' मासिक पत्र प्रकाशित हुआ, लेकिन यह पत्र अल्पकालिक सिद्ध हुआ। इसी समय मार्शमैन के संपादन में एक और साप्ताहिक समाचार पत्र 'समाचार दर्पण' प्रकाशित किया गया। 1821 ई. में बंगाली भाषा में साप्ताहिक समाचार पत्र 'संवाद कौमुदी' का प्रकाशन हुआ। इस समाचार पत्र का प्रबन्ध राजा राममोहन राय के हाथों में था। राजा राममोहन राय ने सामाजिक तथा धार्मिक विचारों के विरोधस्वरूप 'समाचार चंद्रिका' का मार्च, 1822 ई. में प्रकाशन किया। इसके अतिरिक्त राय ने अप्रैल, 1822 में फ़ारसी भाषा में 'मिरातुल' अख़बार एवं अंग्रेज़ी भाषा में 'ब्राह्मनिकल मैगजीन' का प्रकाशन किया।
समाचार पत्र | स्थान | वर्ष |
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टाइम्स ऑफ़ इंडिया | बम्बई | 1861 ई. |
स्टेट्समैन | कलकत्ता | 1878 ई. |
इंग्लिश मैन | कलकत्ता | - |
फ़्रेण्ड ऑफ़ इंडिया | कलकत्ता | - |
मद्रास मेल | मद्रास | 1868 ई. |
पायनियर | इलाहाबाद | 1876 ई. |
सिविल एण्ड मिलिटरी गजट | लाहौर | - |
प्रतिबन्ध
समाचार पत्र पर लगने वाले प्रतिबंध के अंतर्गत 1799 ई. में लॉर्ड वेलेज़ली द्वारा पत्रों का 'पत्रेक्षण अधिनियम' और जॉन एडम्स द्वारा 1823 ई. में 'अनुज्ञप्ति नियम' लागू किये गये। एडम्स द्वारा समाचार पत्रों पर लगे प्रतिबन्ध के कारण राजा राममोहन राय का मिरातुल अख़बार बन्द हो गया। 1830 ई. में राजा राममोहन राय, द्वारकानाथ टैगोर एवं प्रसन्न कुमार टैगोर के प्रयासों से बंगाली भाषा में 'बंगदूत' का प्रकाशन आरम्भ हुआ। बम्बई से 1831 ई. में गुजराती भाषा में 'जामे जमशेद' तथा 1851 ई. में 'रास्त गोफ़्तार' एवं 'अख़बारे सौदागार' का प्रकाशन हुआ।
लॉर्ड विलियम बैंटिक प्रथम गवर्नर-जनरल था, जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया। कार्यवाहक गर्वनर-जनरल चार्ल्स मेटकॉफ़ ने 1823 ई. के प्रतिबन्ध को हटाकर समाचार पत्रों को मुक्ति दिलवाई। यही कारण है कि उसे 'समाचार पत्रों का मुक्तिदाता' भी कहा जाता है। लॉर्ड मैकाले ने भी प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया। 1857-1858 के विद्रोह के बाद भारत में समाचार पत्रों को भाषाई आधार के बजाय प्रजातीय आधार पर विभाजित किया गया। अंग्रेज़ी समाचार पत्रों एवं भारतीय समाचार पत्रों के दृष्टिकोण में अंतर होता था। जहाँ अंग्रेज़ी समाचार पत्रों को भारतीय समाचार पत्रों की अपेक्षा ढेर सारी सुविधाये उपलब्ध थीं, वही भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा था।
- सभी समाचार पत्रों में 'इंग्लिश मैन' सर्वाधिक रूढ़िवादी एवं प्रतिक्रियावादी था। 'पायनियर' सरकार का पूर्ण समर्थक समाचार-पत्र था, जबकि 'स्टेट्समैन' कुछ तटस्थ दृष्टिकोण रखता था।
पंजीकरण अधीनियम
1857 ई. में हुए विद्रोह के परिणामस्वरूप सरकार ने 1857 ई. का 'लाईसेंसिग एक्ट' लागू कर दिया। इस एक्ट के आधार पर बिना सरकारी लाइसेंस के छापाखाना स्थापित करने एवं उसके प्रयोग करने पर रोक लगा दी गई। यह रोक मात्र एक वर्ष तक लागू रही।
1867 ई. के 'पंजीकरण अधिनियम' का उद्देश्य था, छापाखानों को नियमित करना। अब हर मुद्रित पुस्तक एवं समाचार पत्र के लिए यह आवश्यक कर दिया कि वे उस पर मुद्रक, प्रकाशक एवं मुद्रण स्थान का नाम लिखें। पुस्तक के छपने के बाद एक प्रति निःशुल्क स्थानीय सरकार को देनी होती थी। वहाबी विद्रोह से जुड़े लोगों द्वारा सरकार विरोधी लेख लिखने के कारण सरकार ने 'भारतीय दण्ड संहिता' की धारा 124 में 124-क जोड़ कर ऐसे लोगों के लिए आजीवन निर्वासन, अल्प निर्वासन व जुर्माने की व्यवस्था की।
अधिनियम | वर्ष | व्यक्ति |
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समाचार पत्रों का पत्रेक्षण अधिनियम | 1799 ई. | लॉर्ड वेलेज़ली |
अनुज्ञप्ति नियम | 1823 ई. | जॉन एडम्स |
अनुज्ञप्ति अधिनियम | 1857 ई. | लॉर्ड केनिंग |
पंजीकरण अधिनियम | 1867 ई. | जॉन लॉरेंस |
देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम | 1878 ई. | लॉर्ड लिटन |
समाचार पत्र अधिनियम | 1908 ई. | लॉर्ड मिण्टो द्वितीय |
भारतीय समाचार पत्र अधिनियम | 1910 ई. | लॉर्ड मिण्टो द्वितीय |
भारतीय समाचार पत्र (संकटकालीन शक्तियाँ) अधिनियम | 1931 ई. | लॉर्ड इरविन |
स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव
1857 ई. के संग्राम के बाद भारतीय समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई और अब वे अधिक मुखर होकर सरकार के आलोचक बन गये। इसी समय बड़े भयानक अकाल से लगभग 60 लाख लोग काल के ग्रास बन गये थे, वहीं दूसरी ओर जनवरी, 1877 में दिल्ली में हुए 'दिल्ली दरबार' पर अंग्रेज़ सरकार ने बहुत ज़्यादा फिजूलख़र्ची की। परिणामस्वरूप लॉर्ड लिटन की साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के ख़िलाफ़ भारतीय अख़बारों ने आग उगलना शुरू कर दिया। लिंटन ने 1878 ई. में 'देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम' द्वारा भारतीय समाचार पत्रों की स्वतन्त्रता नष्ट कर दी।
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट
'वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट' तत्कालीन लोकप्रिय एवं महत्त्वपूर्ण राष्ट्रवादी समाचार पत्र 'सोम प्रकाश' को लक्ष्य बनाकर लाया गया था। दूसरे शब्दों में यह अधिनियम मात्र 'सोम प्रकाश' पर लागू हो सका। लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए 'अमृत बाज़ार पत्रिका' (समाचार पत्र), जो बंगला भाषा की थी, अंग्रेज़ी साप्ताहिक में परिवर्तित हो गयी। सोम प्रकाश, भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर आदि के ख़िलाफ़ मुकदमें चलाये गये। इस अधिनियम के तहत समाचार पत्रों को न्यायलय में अपील का कोई अधिकार नहीं था। वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को 'मुंह बन्द करने वाला अधिनियम' भी कहा गया है। इस घृणित अधिनियम को लॉर्ड रिपन ने 1882 ई. में रद्द कर दिया।
समाचार पत्र अधिनियम
लॉर्ड कर्ज़न द्वारा 'बंगाल विभाजन' के कारण देश में उत्पन्न अशान्ति तथा 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' में चरमपंथियों के बढ़ते प्रभाव के कारण अख़बारों के द्वारा सरकार की आलोचना का अनुपात बढ़ने लगा। अतः सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए 1908 ई. का समाचार पत्र अधिनियम लागू किया। इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई कि जिस अख़बार के लेख में हिंसा व हत्या को प्रेरणा मिलेगी, उसके छापाखाने व सम्पत्ति को जब्त कर लिया जायेगा। अधिनियम में दी गई नई व्यवस्था के अन्तर्गत 15 दिन के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की सुविधा दी गई। इस अधिनियम द्वारा नौ समाचार पत्रों के विरुद्व मुकदमें चलाये गये एवं सात के मुद्रणालय को जब्त करने का आदेश दिया गया।
1910 ई. के 'भारतीय समाचार पत्र अधिनियम' में यह व्यवस्था थी कि समाचार पत्र के प्रकाशक को कम से कम 500 रुपये और अधिक से अधिक 2000 रुपये पंजीकरण जमानत के रूप में स्थानीय सरकार को देना होगा, इसके बाद भी सरकार को पंजीकरण समाप्त करने एवं जमानत जब्त करने का अधिकार होगा तथा दोबारा पंजीकरण के लिए सरकार को 1000 रुपये से 10000 रुपये तक की जमानत लेने का अधिकार होगा। इसके बाद भी यदि समाचार पत्र सरकार की नज़र में किसी आपत्तिजनक साम्रगी को प्रकाशित करता है तो सरकार के पास उसके पंजीकरण को समाप्त करने एवं अख़बार की समस्त प्रतियाँ जब्त करने का अधिकार होगा। अधिनियम के शिकार समाचार पत्र दो महीने के अन्दर स्पेशल ट्रिब्यूनल के पास अपील कर सकते थे।
अन्य अधिनियम
प्रथम विश्वयुद्ध के समय 'भारत सुरक्षा अधिनियम' पास कर राजनीतिक आंदोलन एवं स्वतन्त्र आलोचना पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 1921 ई. सर तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में एक 'प्रेस इन्क्वायरी कमेटी' नियुक्त की गई। समिति के ही सुझावों पर 1908 और 1910 ई. के अधिनियमों को समाप्त किया गया। 1931 ई. में 'इंडियन प्रेस इमरजेंसी एक्ट' लागू हुआ। इस अधिनियम द्वारा 1910 ई. के प्रेस अधिनियम को पुनः लागू कर दिया गया। इस समय गांधी जी द्वारा चलाये गये सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रचार को दबाने के लिए इस अधिनियम को विस्तृत कर 'क्रिमिनल अमैंडमेंट एक्ट' अथवा 'आपराधिक संशोधित अधिनियम' लागू किया गया। मार्च, 1947 में भारत सरकार ने 'प्रेस इन्क्वायरी कमेटी' की स्थापना समाचार पत्रों से जुड़े हुए क़ानून की समीक्षा के लिए किया।
भारत में समाचार पत्रों एवं प्रेस के इतिहास के विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि जहाँ एक ओर लॉर्ड वेलेज़ली, लॉर्ड मिण्टो, लॉर्ड एडम्स, लॉर्ड कैनिंग तथा लॉर्ड लिटन जैसे प्रशासकों ने प्रेस की स्वतंत्रता का दमन किया, वहीं दूसरी ओर लॉर्ड बैंटिक, लॉर्ड हेस्टिंग्स, चार्ल्स मेटकॉफ़, लॉर्ड मैकाले एवं लॉर्ड रिपन जैसे लोगों ने प्रेस की आज़ादी का समर्थन किया। 'हिन्दू पैट्रियाट' के सम्पादक 'क्रिस्टोदास पाल' को 'भारतीय पत्रकारिता का ‘राजकुमार’ कहा गया है।
समाचार पत्र | संस्थापक/सम्पादक | भाषा | प्रकाशन स्थान | वर्ष |
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अमृत बाज़ार पत्रिका | मोतीलाल घोष | बंगला | कलकत्ता | 1868 ई. |
अमृत बाज़ार पत्रिका | मोतीलाल घोष | अंग्रेज़ी | कलकत्ता | 1878 ई. |
सोम प्रकाश | ईश्वरचन्द्र विद्यासागर | बंगला | कलकत्ता | 1859 ई. |
बंगवासी | जोगिन्दर नाथ बोस | बंगला | कलकत्ता | 1881 ई. |
संजीवनी | के.के. मित्रा | बंगला | कलकत्ता | |
हिन्दू | वीर राघवाचारी | अंग्रेज़ी | मद्रास | 1878 ई. |
केसरी | बाल गंगाधर तिलक | मराठी | बम्बई | 1881 ई. |
मराठा | बाल गंगाधर तिलक[1] | अंग्रेज़ी | - | - |
हिन्दू | एम.जी. रानाडे | अंग्रेज़ी | बम्बई | 1881 ई. |
नेटिव ओपीनियन | वी.एन. मांडलिक | अंग्रेज़ी | बम्बई | 1864 ई. |
बंगाली | सुरेन्द्रनाथ बनर्जी | अंग्रेज़ी | कलकत्ता | 1879 ई. |
भारत मित्र | बालमुकुन्द गुप्त | हिन्दी | - | - |
हिन्दुस्तान | मदन मोहन मालवीय | हिन्दी | - | - |
हिन्द-ए-स्थान | रामपाल सिंह | हिन्दी | कालाकांकर (उत्तर प्रदेश) | - |
बम्बई दर्पण | बाल शास्त्री | मराठी | बम्बई | 1832 ई. |
कविवचन सुधा | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | हिन्दी | उत्तर प्रदेश | 1867 ई. |
हरिश्चन्द्र मैगजीन | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | हिन्दी | उत्तर प्रदेश | 1872 ई. |
हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड | सच्चिदानन्द सिन्हा | अंग्रेज़ी | - | 1899 ई. |
ज्ञान प्रदायिनी | नवीन चन्द्र राय | हिन्दी | - | 1866 ई. |
हिन्दी प्रदीप | बालकृष्ण भट्ट | हिन्दी | उत्तर प्रदेश | 1877 ई. |
इंडियन रिव्यू | जी.ए. नटेशन | अंग्रेज़ी | मद्रास | - |
मॉडर्न रिव्यू | रामानन्द चटर्जी | अंग्रेज़ी | कलकत्ता | - |
यंग इंडिया | महात्मा गाँधी | अंग्रेज़ी | अहमदाबाद | 8 अक्टूबर, 1919 ई. |
नव जीवन | महात्मा गाँधी | हिन्दी, गुजराती | अहमदाबाद | 7 अक्टूबर, 1919 ई. |
हरिजन | महात्मा गाँधी | हिन्दी, गुजराती | पूना | 11 फ़रवरी, 1933 ई. |
इनडिपेंडेस | मोतीलाल नेहरू | अंग्रेज़ी | - | 1919 ई. |
आज | शिवप्रसाद गुप्त | हिन्दी | - | - |
हिन्दुस्तान टाइम्स | के.एम.पणिक्कर | अंग्रेज़ी | दिल्ली | 1920 ई. |
नेशनल हेराल्ड | जवाहरलाल नेहरू | अंग्रेज़ी | दिल्ली | अगस्त, 1938 ई. |
उद्दण्ड मार्तण्ड | जुगल किशोर | हिन्दी (प्रथम) | कानपुर | 1826 ई. |
द ट्रिब्यून | सर दयाल सिंह मजीठिया | अंग्रेज़ी | चण्डीगढ़ | 1877 ई. |
अल हिलाल | अबुल कलाम आज़ाद | उर्दू | कलकत्ता | 1912 ई. |
अल बिलाग | अबुल कलाम आज़ाद | उर्दू | कलकत्ता | 1913 ई. |
कामरेड | मौलाना मुहम्मद अली | अंग्रेज़ी | - | - |
हमदर्द | मौलाना मुहम्मद अली | उर्दू | - | - |
प्रताप पत्र | गणेश शंकर विद्यार्थी | हिन्दी | कानपुर | 1910 ई. |
गदर | ग़दर पार्टी द्वारा | उर्दू/गुरुमुखी | सॉन फ़्रांसिस्को | 1913 ई. |
गदर | गदर पार्टी द्वारा | पंजाबी | - | 1914 ई. |
हिन्दू पैट्रियाट | हरिश्चन्द्र मुखर्जी | अंग्रेज़ी | - | 1855 ई. |
मद्रास स्टैंडर्ड, कॉमन वील, न्यू इंडिया | एनी बेसेंट | अंग्रेज़ी | - | 1914 ई. |
सोशलिस्ट | एस.ए.डांगे | अंग्रेज़ी | - | 1922 ई. |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (आरम्भ में आगरकर ने 'केसरी' का एवं केलकर ने 'मराठा' का सम्पादन किया)
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