मक़्ता

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मक़्ता ग़ज़ल के आख़िरी शे'र को कहते हैं इस शे'र में शायर कभी कभी अपना तख़ल्लुस (उपनाम) लिखता है।

उदाहरण

अजनबी रात अजनबी दुनिया
तेरा मजरूह अब किधर जाये - (मजरूह सुल्तानपुरी)

  • यह मजरूह सुल्तानपुरी की ग़ज़ल का आख़िरी शे'र है जिसमें शायर ने अपने तख़ल्लुस 'मजरूह' (शाब्दिक अर्थ - घायल) का सुन्दर प्रयोग किया है।


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