मतला
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मतला ग़ज़ल का पहला शे'र होता है जिसके दोनों मिसरों में क़ाफ़िया रदीफ़ होता है।
- उदाहरण
बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
गुज़र चुकी है ये फ़स्ल-ए-बहार हम पर भी ॥ (मतला)
ख़ता किसी कि हो लेकिन खुली जो उनकी ज़बाँ
तो हो ही जाते हैं दो एक वार हम पर भी ॥ (दूसरा शे'र) --- अकबर इलाहाबादी[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ (हिंदी) open books online। अभिगमन तिथि: 23 फ़रवरी, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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