मर्तबान
मर्तबान
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विवरण | 'मर्तबान' चीनी मिट्टी आदि के बने हुए एक प्रकार के गोलाकार पात्र को कहा जाता है। इसका इस्तेमाल अधिकांशत: अचार, मुरब्बे तथा रसायन आदि रखने के लिए किया जाता |
पर्यायवाची | हिन्दी में 'मर्तबान' को 'इमर्तवान', 'अमृतबान', 'बोईयान', म्रितबान, अमरितबान, मरतबान और 'बोट' भी कहते हैं। |
शब्द व्युत्पत्ति | 'मर्तबान' शब्द को यूँ तो अरबी मूल का माना जाता है और इसकी व्युत्पत्ति 'मथाबान' से बताई जाती है, जिसका अभिप्राय 'बैठी हुई मुद्रा' से है, अर्थात् 'सिंहासन पर बैठा शासक'। |
अन्य जानकारी | अफ़्रीकी यात्री इब्नबतूता, जो 1350 में भारत आया था, उसने लिखा है कि- "शहजादी ने मुझे परिधान, दो हाथियों के बराबर चावल, चार पात्र शर्बत के, दस भैंड़, दो भैंसें और चार मर्तबान भेंट में दिए थे। इन मर्तबानों में काली मिर्च और आम भरे हुए थे।" |
मर्तबान चीनी मिट्टी आदि के बने हुए एक प्रकार के गोलाकार पात्र को कहा जाता है। प्राचीन समय से ही यह पात्र प्रयोग में लाया जाता था। मर्तबान का इस्तेमाल अधिकांशत: अचार, मुरब्बे तथा रसायन आदि रखने के लिए किया जाता था। आज भी इसका प्रयोग गाँव देहातों में खूब किया जाता है। रंग-बिरंगे, चटकीले और आकर्षक शिल्पयुक्त मर्तबान घर की साज-सज्जा में भी चार चाँद लगा देते हैं। यही वजह है कि आजकल घर को सुन्दर बनाने और सजाने के लिए मर्तबान का चलन ख़ासा लोकप्रिय है। आधे फुट से लेकर चार-पाँच फुट तक के मर्तबान भी चलन में हैं। सजावट के काम आने वाले ये मर्तबान फेंग्शुई में भी विशेष महत्व रखते हैं। अब तो इनका प्रयोग गुलदस्ते की तरह भी किया जाता है, जिनमें कई प्रकार फूलों से इनकी सुन्दरता और भी बढ़ जाती है।
नाम तथा इतिहास
भारत में मर्तबान अधिकांशत: अचार, तेजाब और कई प्रकार के रसायन आदि रखने के लिए प्रयोग किया जाता है। अलग-अलग भाषाओं और देशों में इसके कई नाम भी प्राप्त होते हैं। इरावदी नदी के डेल्टा के पूर्व में पेंगू द्वीप की खाड़ी के निकट 'तेलंग' नाम का एक बंदरगाह था, जिसे बाद के समय में 'मुत-ता-वान' कहा जाने लगा था। नदी जहाँ समुद्र में मिलती थी, वहीं किनारे पर पेगू के राजपूत्र 'मोयारागिया' का यह नगर था। यह नगर आज म्यांमार नाम से प्रसिद्ध है। सन 1514 में यह 'मुत-ता-मान' कहलाने लगा। यूरोप के यात्रियों के अनुसार यहाँ के व्यापारी हिसाब-किताब रखने में कुशल माने जाते थे। यहाँ के मुख्य उत्पादन लाख और कपड़ा थे। 'मुतमान' नगर का नाम यूरोप और एशिया के व्यापारियों ने 'मर्तबान' कर दिया। 1545 में 'मर्तबान' को 'मर्तबानो' और 1568 में 'मारतौन' लिखा गया। 1680 और 1695 में अंग्रेज़ों ने इसे 'मोर्तबान' कहा।
भारत में आगमन
1516 में 'मर्तबान' नगर में चीनी मिट्टी के पात्र बनते थे, जिनका निर्यात होता था। मर्तबान नगर के नाम पर ही इन पात्रों को विदेश में 'मर्तबान' कहा जाने लगा। माले में भी ऐसे पात्र बनते थे। वहाँ दो फुट ऊँचे पात्र को 'रंबा' और बड़े पात्र को 'मर्तबान' कहते थे। ओमान में बनने वाले पात्र भी 'मर्तबान' कहलाते थे। 'अरेबियन नाइट्स' में इन्हें 'बर्तमान' कहा गया है। भारत में यह पात्र मध्य काल में ही आने प्रारम्भ हो गये थे। विदेशी यात्री इब्नबतूता, जो कि 1350 में भारत आया था, उसने लिखा है कि- "शहजादी ने मुझे परिधान, दो हाथियों के बराबर चावल, चार पात्र शर्बत के, दस भैंड़, दो भैंसें और चार मर्तबान भेंट में दिए थे। इन मर्तबानों में काली मिर्च और आम भरे हुए थे। मेरी समुद्री यात्रा के लिए इन्हें नमक में तैयार किया गया था।" शहजादी ने आम का अचार इब्नबतूता को भेंट किया था। इब्नबतूता शहजादी का नाम नहीं जानता था।
- 1598 के एक विवरण के अनुसार भारत के लगभग प्रत्येक घर में 'मारतौन' है। डेम्पियर ने वर्ष 1688 में लिखा था कि- "भारतीय इन्हें 'मोंताबान' कहते हैं। ये पेगू से आते हैं।"
- वर्ष 1727 में हेमिल्टन ने इन्हें 'मर्तबान' लिखा।
- 1851 में प्रदर्शित एक प्रदर्शनी में पेगू के इन पात्रों के नमूनों को दिखाया गया था।
- मर्तबान को तेलुगू भाषा में 'मर्तबान', हिन्दी में 'मर्तबान' के अतिरिक्त 'इमर्तवान', 'अमृतबान', 'बोईयान', म्रितबान, अमरितबान, मरतबान और 'बोट' भी कहते हैं।
भाषाविद मतभेद
'मर्तबान' किस भाषा का शब्द है, इस पर भाषाविद एकमत नहीं हैं। इसे अक्सर अज्ञात मूल का माना जाता है, किंतु ऐसा नहीं है। कुछ साक्ष्य हैं, जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि 'मर्तबान' भारोपीय मूल का शब्द है। वैसे मर्तबान के लिए हिन्दी में इसके कई रूप मिलते हैं। किंतु मर्तबान का अमृत शब्द से कोई लेना देना नहीं है। 'मर्तबान' बर्तन भाण्डों की श्रंखला का एक शब्द है, जो हिन्दी में खूब प्रचलित है। यह शब्द शहरी संस्कृति में अब कम सुनाई पड़ता है, किंतु गाँवों-कस्बों की भाषा में यह खूब प्रचलित है। 'मर्तबान' यानी एक भारी पेंदे, संकरे मुँह और गहरे पेट वाला चीनी मिट्टी, काँच या धातु का ऐसा बरतन, जिसमें अचार-मुरब्बों के अलावा रसायन या दवाएँ आदि भरी जाती हैं। होम्योपैथी, आयुर्वेद और यूनानी हकीमों के यहाँ आज भी ये मर्तबान रखे हुए दिखाई देते हैं।[1]
शब्द व्युत्पत्ति
'मर्तबान' शब्द को यूँ तो अरबी मूल का माना जाता है और इसकी व्युत्पत्ति 'मथाबान' से बताई जाती है, जिसका अभिप्राय 'बैठी हुई मुद्रा' से है, अर्थात् 'सिंहासन पर बैठा शासक'। अंग्रेज़ी में एक शब्द है- 'मार्जपैन', जो यूरोपीय खान-पान शब्दावली से आया है, यानी मीठी ब्रेड, बादाम का जैम, कैंडी की तरह की एक मिठाई। अरब में शासक की सिंहासन पर बैठी मुद्रा के एक सिक्के का नाम भी 'मथाबान' था। अरबों के स्पेन से रिश्तों के माध्यम से यह शब्द यूरोप में पहुँचा था। वहाँ भी सलीब पर टंगे प्रभु ईसा मसीह की तस्वीर वाले एक सिक्के को यही नाम मिला। बाद में इस सिक्के के आकार की एक कैंडी को भी यही नाम मिल गया।
यह भी उल्लेखनीय है कि सिक्के के साथ-साथ मार्जपैन में सिक्के का वज़न अथवा आकार की माप का भाव भी आ गया। कैंडी के बंडल, जिस सन्दूक में रखे जाते थे, उसे भी यही नाम मिला।[1]
सजावट में प्रयोग
आजकल रंग-बिरंगे, चटकीले और आकर्षक शिल्पयुक्त मर्तबान घर की साज-सज्जा में चार चाँद लगा देते हैं। यही वजह है कि आजकल घर को अच्छा रूप देने के लिए भी मर्तबान का चलन ख़ासा लोकप्रिय है। आधे फुट से लेकर 4-5 फुट के मर्तबान भी खूब चलन में हैं। सजावट के काम आने वाले ये मर्तबान फेंग्शुई में भी विशेष महत्त्व रखते हैं। मर्तबान फेंग्शुई के अति प्राचीन और प्रभावशाली बर्तनों में से एक है। इनका सही उपयोग घर व कार्यालय में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यह संबंधों को मधुर बनाने में भी प्रभावशाली साबित होता है। मर्तबान प्राचीन चीनी वास्तुकला में भी अति उपयोगी माने जाते थे। आवश्यक नहीं कि बेहतर परिणाम के लिए किसी ऑर्ट मॉल में मिलने वाला महंगा मर्तबान ही ख़रीदा जाए। सस्ते मर्तबान भी उतने ही लाभकारी साबित होते हैं। ज़रूरत है सही मर्तबान के चयन और उनके सही उपयोग की।
घर में रखने का स्थान
फ़ेंग्शुई में पीले व लाल रंग के मर्तबान सबसे प्रभावशाली माने गये हैं। पीला व लाल रंग ऊर्जा, शक्ति व उत्साह का प्रतीक है। इन रंगों के मर्तबान घर के दक्षिण-पश्चिम भाग में रखने चाहिए। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। पोर्सलिन यानी चीनी मिट्टी के बने मर्तबान घर में रखना भी शुभ माना जाता है। चीनी मिट्टी के मर्तबान पर अगर ड्रैगन या फिनिक्स अर्थात् गरुड़ पक्षी का चिह्न बना हो तो ऐसा मर्तबान घर में रखना और भी सौभाग्यशाली होता है।[2]
ऐसा विश्वास किया जाता है कि यदि किसी के विवाह में विलम्ब हो रहा है तो गरुड़ या ड्रेगन के चिह्न वाला मतर्बान घर में रखना चाहिए। इससे विवाह का शीघ्र योग बनता है। इन मर्तबान में अगर पियोनिया के फूल रखे जाएँ तो शीघ्र विवाह की संभावना और बढ़ जाती है। घर में पृथ्वी तत्व के प्रभाव को बढ़ाने के लिए मर्तबान को छोटे-छोटे पत्थरों से भर सकते हैं। पत्थरों के स्थान पर फूलों को भी मर्तबान में सजाया जा सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 मर्तबान यानी अचार और मिट्टी बर्तन (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 04 जुलाई, 2013।
- ↑ ऊर्जा, शक्ति व उत्साह देगा मर्तबान (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 04 जुलाई, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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