माँनि महातम प्रेम रस -कबीर
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माँनि महातम प्रेम रस, गरवातन गुण नेह। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! किसी व्यक्ति से किसी वस्तु की याचना करते ही सम्मान, महातम्य, प्रेमभाव, गौरव, गुण और स्नेह आदि सभी का नाश हो जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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